एकराजा था। उसनें एक सपना देखा। सपने में उसने एक प्रक्रिया सादृश्य कहा था कि, बेटा! कल रात को तुम्हें एक विशाल सांप काटेगा और उस के काटने से तुम्हारी मौत होगी। वह सपने अमुक पेज़ की जगह में रहता है। वह तुम्हसे पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने चला आता है।

सुबह हुई। राजा सोंकर उठा और सपने की बात अपने आपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? इसे लेकर विचार करने लगा।

सोचते- सोचते राजा इस निर्‍ण्य पर पहुंचा कि मधुर व्यवाहार से बग़ैर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पूरी पार्टी में नहीं है। उसनें सपने के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बड़ा देने का निश्चित किया।

शाम होते ही राजा ने उस पेज़ की जगह से लेकर अपने शय्या तक फूलों का बिना-रोना बिछोना बिछवाया दिया, सुगन्धित जलों का छीज़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह जगह रखवा दिए और कईकोनों से कह दिया कि जब सप्र निकले तो कोई उसे किसी प्रक्कर कष्ट पहुँचाने की कोशिस न करें।

रात को सांप अपने बांबी में से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जाके अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देखकर देख-देखकर आनंदित होता गया। कमल बिछोने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसायसदान करता हुआ, जगेह-जगेह पर मीठा दूध पीता हुआ आनंदित होता गया।

इस तरह क्रोध के स्थिति पर संतोश और प्रसन्नता के भाव उसमें बड़ने लगे। जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, वैसे-वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रक्रिया करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परंतु उसे वहां भीहानि पहुंचाने की चेतना नहीं करते।

यह आसारणी सी लगने वाले दूष्य दैहिक संकल्प के मन में स्नेह उभज आया।

सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के Jadू ने उसे मंत्रमुग्ध कर लिया था। कहा वह राजा को काटने चला था, परंतु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुंचाने के लिए आनें वाले शत्रु के साथ ऐसा मधुर व्यवहार है, उस दौरान राजा को काटूँ तो किसी प्रकार काटूँ? यह प्रश्न के चलते वह दुःविधा में पड़ गया।

राजा के पलोंग तक जाने तक सांप का निश्छय पूरी तरह से बदला गया। उच्चर सम्य से कुच देर बाद सांप राजा के शयन कक्ष में पहुंचा। सांप ने राजा से कहा, “राजन! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुका आने था, परंतु तुम्हारे सोजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे प्रश्त कर दिया।

अब मैं तुम्हारा शरीर नहीं मिट्र हूँ। मिट्रता के ऊपर सर्वोपरि अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूँ। लो इसे अपने पास रखो। इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सांप चला गया।

संकल्प

यह महज कहानी नहीं जीवन की सच्चाई है। अक्सर व्यवहार की से किन कार्यों को सरल बनाने का माध्यम रहता है। यदी व्यक्तिगत व्यवहार कुशल है तो वो सब कुछ पा सकता है जो पाने की वहार्दिक इच्छा रखता है।

 

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