संवेदना दुनियाका सबसें सुंदर और महत्वपूर्ण अहसास है, पर यही अहसास कितनाअ होना चाहिये, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है, इसलिए अपनी संवेदनाका पलके खुले रखिये और खुले दिमाग से आजकल की प्रोसी जा न्यूस पढ़िये सारा माजरा आपकी समझ में आ जायेगा।

10 जून की सुबह 8 बजकर 49 मिनट पर दावायर और दाव कंट में कच्चित तोर परकाम करने वाले कचित पात्रकर्ता प्रमाण्त कननोजिया एक ट्वीट करते हैं कि मैं साही धर्मों को सम्मान करता हूँ पर जिस धर्म ने हममें शुद्र-अछूत बननाया है उसी कब्र जरूर खोदेंगे और उसी बरबादी तक लडेंगे।

वोसे देखा जाये तो धर्म कैसी को अछूत या शुद्र नहीं बनाता व्यवस्थायेँ और इंसान क्रम है उसे कुच बनाना दे तो कहा नहीं जा सकता लेकिन कचित पात्रकर्ता प्रमाण्त को ध्यां रखना चाहिये कि उनका वाजूद तब तक है जब तक यही धर्म और राश्ट्र है जिसमें बरबादी की जंग ये लढ रहे हैं।

वैसे आपinke इस ट्वीट सेसमझ जाये कि ये लोग सिर्फ़ सत्ता के लिए नहीं लड़े रहे हैं बल्कि उनका असली मकसद क्या है। इसीलिए दाविंट बीबीसीी समेत सभी संवेदनशील मीडिया द्वारा दिखाए जाने वाले अब्दुल के द्रष्टादान और गरीब असिफा की द्रष्टि भर खानी से अगर आपकी संवेदनना जाग गई है तो उसी वापसी तपकी देकर सुला दीजिये और छुट्टी पर गई अपनी तार्किकता और व्यावहारिक बुद्धि को व्हाट्सएप कर दीजिये कि छुट्टी खत्म हो गई, वापस आ जाए, यह मनोवैज्ञानिक युद्घ है और हमे इसे मिलकर लड़ना है।

दाव कंट पर दो खबरें एक साथ चली रही है एक खबर में अमेरिका में अमेरिका के प्यूलिस अध्यक्ष के गुटने के नीचे दबे जोर फ्‍लायड को दिखाया जा रहा है दूसरी खबर में दिल्ली दंगे में सीलमपुर के वो लड़काए दिखाए जा रहे है जिनसे प्यूलिस वाले भारत माता की जय बुलवा रहे हैं। दिनों वीडियोज को जौझकर दाव कंट दुबारा अफरा तफरी फैला ना चाह रहा है।

कै रोज पहले आपको देखा होगा जब बातचीत नेता कपिल मिश्रा ने वामपंथी वेबसाइट द क्विंट की एक बातचीत अपील के स्क्रीनशॉट को ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा था कि किस परिवार द क्विंट’ भारत के लोगों को उकसाकर उन्हें सज़कों पर उतार आने की अपील कर रहा है। यहाँ नहीं इस ट्वीट में कपिल मिश्रा ने यह भी लिखा था कि द क्विंट ने देश भर में हजारों इमेज वीडियो हैं और लोगों से अपील की है कि अमेरिका की तरह भारत में सज़कों पर लोग उतरें और दंगे करें।

मौलब अब पीएफ़आई का पैसा, पंजाब तोय ग्रुप की डिजाइन लड़ीकरिएं, वामपंथी प्रोपगैंडा और कट्टरपंथि मुल्लाओं की नफरत भारी तकरीरे कही भी कहीं भी खूच भी खेल रच सकती है। वामपंथी जानते हैं कि उनके बिना हिंसा के सत्ता नहीं मिलती रूस में करोज़ोयों मजदूर चीनी में करोज़ोयों किसानों की लाश गिरने पर ही मार्क्स और लेनिन की आलोड़ों को सत्ता नसीब हुई थीं। अब एक बार फिर कुच्कर रचा जाता दिख रहा है।

2014 और 2019 की विभिन्न दो लोकसभा चुनावों में हार और राजयों में सिमटतीinkgoई विक्षारधारा आब कमजोर पजने लगी तो इन्होने कई मोर्चों पर काम करना शुरू कर दिया है, जिसका भांडाफोड़ खूब समय पहले ज़िआइए समुह ने किया था।

साल 2015 में दिल्ली विश्वविद्यालयीय से जुड़े कई लोगों ने एक समूह बनाया था जिसका नाम है ग्रुप ऑफ़ इंटेलेक्चुअल एंड एकेडेमीज़ यानि ज़िआइए इस समूह ने दिल्ली दंगों पर जाकर के बाद अपनी एक रिपोर्ट सोँपी थी इस समूह ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली हिंसा की राष्ट्र्रीय जांच एजेंसी दवारा जाँच कराया जाने की बात कही थी, रिपोर्ट में कहा गया था कि ये हिंसा एक शहरी नकस्ल-जिहादी नेटवर्क का सबूत था, इसके दिल्ली के विश्वविद्यालयीयों में काम कर रहे वामपंथी अरबन नकस्ल नेटवर्क द्वारा दंगों की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया गया है। यानी दिल्ली हिंसा एक सुनियोजित प्लान था, पंजाब तोय ग्रुप के सम्मन के बाद साफ हो गया है कि यहाँ वामपंथी-जिहादी मॉडल का सबूत था जिससे दिल्ली में अंजाम दिया गया था और अब इस सफ़ल मॉडल को अन्य राज्यों पर दोहराए जाने की भी कोशिस है।

अब सवाल ये है कि इससे दोहराया कैसे जाता है, तो संभवतः यहां पूरा भाषणों संवादनों का गेम है जिसमें आम इंसान तब सक्षम है जब वह लूट पिट चुका होता है, और संवादनों के जरिए दूसरी जगह आने जाकर जा चुके होते हैं। मुसलन जो आज अमेरिको में हो रहा है उसको स्क्रिप्ट अप्रेल में लिखनी शुरू हो गई थी क्योंकि 9 अप्रैल को बीबीसी ने खबर दी कि अमेरिका में ज्यादातर कॉलै लोगों को क्यों हो रहा कोरोनो वायरस का संक्रमण?

यानि रँग भेद नस्ल भेद का पाया maximum पहलकर एक खबर सड़क पर उठता दी आप सोच रहे होंगे इसी खबरों से क्या फर्क पड़ा है तो खेले संभवतः इसी खबरों को जब वाहं के काले लोगों में पढ़ा तो उन्हके अंदर डर पैदा हो गया कि कहीं ये साजिश तो नहीं और गोरे लोगों ने पढ़ा तो उन्होंने तो स्पेशल दूरी बनानी शुरू कर दी, नस्ल भेदी टिकटणी बँदी स्वयंविक थी और वो बँदी भा। नतीजा आज अमेरिकोâ ज़ुल्स रहा है बाकी का काम एंटीफा संगठन ने सुनिश्चित किया वरना आप सोचिए अमेरिको में दंगों के दौरान नर्रा एक तथाकबीर अल्लाह हू अकबर के नारे कहाँ से आये? मतलब नकस्ल-जिहादी नेटवर्क का सीधा हाथ वहाँ भे दाखने को मिला।

भारत में भी इसी तरीके से काम किया जाता है व्यापकताओं की न्यून वेबसाइट बड़ी सफाई से अपना काम करने निकली जाती है। और आपकों पता भी नहीं चलता जिससे कईसे खबर होती है, लेकिन ग्राउंड में सेड मूजिक होता है जबाना रहमा कह रही होती हैं,merce घर को आगजनी करने वालों ने जलाया अबmerce बढ़चों का भाविष्य क्या होगा। दूसरी खबर घर से बूढ़े वालिद के लिए किसीट लेने निकले मासूम जाहिद को किसने मारा, और नमाज पड़ने के लिए जा रहे अब्दुल पर हुमला किसने किया इसी अनैकों खबरें आपकोंinkenे दौरान की गयी हिंसा के बाद पड़ने और सुनने को मिलीगी।

हालांकि दिल्ली दंगों के समय बीबीसी द्वाराऽ इस एकतरफा और भड़काॆं रिपोटिंग के कारण सरकारेprsaran एजेंसी प्रेसर भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पटी ने बीबीसी को जुमकर लताय़ लगाई थी लेकिन लगाते रहा लोगों कोम का था गया था जो वह लोग चाहते थे। यानी हिंसा करने वाले धजे को विश्व भर में मासूम दिखाना और लुटने वाले हिंदुओं समेत दूसरे वर्गों को साम्प्रदायिक दिखाना।

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दिल्ली_dil्ली_dil्ली_dil्ली_dil्ली_dil्ली_dil्ली_dil्ली_ के पहले मैंडिया का यह वर्ज़ सिएए के साथ राश्ट्र निगरिक्त पंजीकरण का प्रमुखला_lagakar मूस्लिम समाज के मन में झूआ दर भर्ने में लगा था। हर दिन पहले से तीखे, तेज़ और कड़वे-कसैले होते इस मीडिया के लिए यह लंबा दौर शुरू था। एक खास रंग देने और मुस्लिम_utpiज़न की चाहनियाँ के मौका था। अख़बारों के पन्ने प्राइम-टाइम की टीवी बहस, जहां इस्लामी प्रदाज़ना से पलायन करने वालों के आंसुओं और सियेए के सेकरेटमक पक्श को कभी छहरा के लाइक नहीं समझा गया बाद में वे सारे वामपंथि मीडिया मंच दंगों को सिर्फ़ ‘हिंसक हिंदुओं का उत्पात’ बताने-साबित करने में जुट गये।

केवल मीडिया ही नहीं इनका एक पूरा समुदाय होता है उस समुदाय में सबकी जिम्मेदारियाँ तय होती हैं। पहलां राजनितिक ढांचा कैम होता Bryan देने ये लोग दलित और मज़दूर के हितों के बयां देने या मज़दूरों के मन में एकचिंगारई पैदा करनेगे ताकि उनके स्वतंत्र का तंदर गरम रहे।हालांकि इनके पास देश या दुनिय़ा के क़िसे कोनें में इन दोनों की बल्कि का ऐसा कोई ‘मोडल’ नहीं है, जिन्हेंunka भला हुआ हो इसलिये आज इनके निशाने पर भारत का गरीब दलित और मज़दूर वर्ग है। गढ़नाओं को जतित-धरम, ऊंच-नीच के हिस्स्मे से दिल़ाते हैं,हालांकि हाल में कई बार ऐसे मौके आए जब औरों का घर स्थानीय हाथ सेंकने वाले राजनीतिक माहारथियों का झू पका गया

अगरinka दुनिया के प्रत्येक को देखेंगे तोinka मोर्चा सिँरंजी का है, यानि अल्गHOOKर भी एक रहना और अपनी साजाutate को दोगुने की बजाया चार गुना करना, यह वह मोर्चा है जहाँinka कट्टरता को मेडिया का एक वर्ग पूरी बेहतरमी से विकंडन की राजनैति के साथ सिँरंजी कायकर्ता नज़र आता है। आंतकी को गिरफ़्तारी के बाद चात्र बताना देश के टुकड़े करने वाला शरज़ील इमाम इसी मोर्चे पर कै बोर्डिक लेखक लिखने वाले पात्रकार के तौर पर तैनात था उसे भी बाद में चात्र बताया गया। अल्गं मश्लिम विश्वविविध्यालय में कट्टरता पर कायकर्ता रहनें और इसे सेकुलर लबादे से ढकने की तरकीब बताती ख़ातून भी अब तक वर्ष पात्रकार के वेष में थीं। दिल्ली हिंसा में पहले आम आदमी पार्टी के पार्षद शादीर कहानी, फिर कांग्रेस की पूरी निगम पार्षद ईशरत जहाँ का नाम सामने आया एक ईशारा जारी कर कर रहा है दिल्ली को हिंसा, उपद्रव और अराजिकता में झोंकने के मामलें में भी दोनों के इरादे एक-दूसरे से अलग नहीं थे। क्योंकि वहांीर की छत से जिस तरह पेट्रोल बम लोगों पर फेंके गए, गोलियां चलाई गईं, छत से पात्र बरामद हुए हैं, वह साफ जाहिर करता है कि नफरतन की भट्टी में जलता ताहिर दंगा करने की पूरी तैय्यारी से बैंआ था।

क्योंकि हर एक चीज़ का पूरा ध्याना रख्ता गया राजधानी स्कूल के मालीक का नाम मुस्लिम थाना स्कूल सुरक्षीत रहा लेकिन डीपियर कून्वेंट फूंका गया क्योंकि उसका मालीक हिन्दू थाना

दंगों के बाद इनके पहले यानि राजनीतिक कमान संभाली और कहा कि हिंदुस्थान की ताकत बातचीतारा, एकता और प्यार को दिल्ली में जलाया गया है, लेकिन किसी ने सबाल नहीं किया कि चतों पर हथियार जमा करती लांम्बंदियां कैसी थीं! सिएए वीडो का ‘कैनवास’ अल्गं से शहडोल-जबलपुर तक कोन फैला रहा था और किसीने हौली से पहले दिल्ली के माहौल में खूनि रंग भरे और आर-पार की लज़ाई के नारे कोन लगा रहा था, पूरी तरह भारत को अल्ग करने की बात कीसने की, आजादी के नारे कहां से आये यह सवाल अभी गया्ब है जवाब खोजिये और अपनी तार्किकता को सोने मत दीजिये, संविधान को तपकी देकर जगा दीजिये तभी इन ज्यादण्डों से इस राश्ट्र और धर्म की रक्षा हो सकती है।

राजिकव चौधरी

 

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