भगवान श्रीकृष्ण जी को सुनील पर किसने छँदाया


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Rajeev ChoudharyDate
11-Jul-2020Category
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पहले तत्कालीन में भुगवान श्रीकृष्ण जी क्रोस् लिए खोजे हैं दुसरे में बैहे हैं” और तीसरी तत्कालीन में भगवान श्रीकृष्ण जी को ही सूली पर लटका दिया गया है, मतलव इसका पिछ्ले 2500 सौ सालों से जो इसका जीस्स को सूली से नहीं उतार पाए अब उनहोंने योगिराज भगवान श्रीकृष्ण जी को भी सूली पर चढ़ा दिया है, भगवान श्रीकृष्ण जी को सूली पर लटकाने का ईन्का उद्देश्य साफ है कि इस तसवीर को दिखाकर ना जाने कितने होने वाले भाले आदि वासिस बयानो को ये लोग जीस्स की सूली पर चढ़ाएंगे।
असल में जिसे हम आज जाकर देखते हैं, एक समय यहाँ बिहार का हिस्सा था, उस दौरान मिशनरीज ने एक अफवाह फैलायी कि आदिवासी हिन्दू नहीं बल्कि इसाई है, उस समय कार्तिक उरांव नाम के एक प्रेसिडेंट नेता हुआ करते थे राजस्थान में उनका काद इंडिरा के समान था कार्तिक जी को आदिवासियों का माइसेहा भी कहा जाता है, तो कार्तिक उरांव जी ने इसका बजा विरोध किया क्योंकि बिहार में उस दौरान मिशनरीज आदिवासियों को मूलनिवासी के जुट्टी पिलाना शुरू कर चुकी थे, तब कार्तिक जी ने सवाल उठाया कि पहले सरकार इस बात को सुनिश्चित करे कि बहार से कौन आया था? यादि हम यहाँ के मूलवासि हैं तो फिर इसका केस कैसे हुए..? योंकी इसाई पंथ तो यूरोप से निकला है, और यादि हम इसायत को लेकर बाहर से आये हैं तो फिर हमारे मूलनिवासी नहीं हैं, आर्य ही यहाँ के मूलनिवासी हैं क्योंकी जिनका विस्वास यहाँ के वहि धरम पर है वही यहाँ का मूलनिवासी है,itana कार्तिक ने एक सवाल उठाला था कि यादि हम ही बाहर से आये तो फिर जीस्स के जन्म से हजारों वर्ष पहले हमारें समुद्राज में निश्चदाराज, महर्षि बाल्मीकि, शबरै, कणप्पा उंका धरम क्या था? क्या वह इसाई थे मिशनरीज इस बात का जवाब देते कि जीस्स से पहले उन्हका धरम क्या था? इसके बाद कार्तिक उरांव जी ने कहा था कि हम सदैव हिन्दू थे हिन्दू हैं और हिन्दू रहेंगे।
"इसके बाद कार्तिक उरांव जी ने बिना किसी पूर्व सूचना एवँ बातचीत के भारत के बीच बीच कोनों से वनवासियों आदिवासियों के बुजुर्ग लोगों, विधि तथा जादू टोना भागतों को बुलाया और यहाँ कहा कि आप अपने जन्मोत्सव, विवाह आदि में जौ लोकतिगत गातें हैं वहाँ गाकर सुनाइए और फिर वहाँ सेकड़ोंों गईत गाये गये और सब लोगों में यहाँ वर्णन मिला कि यशोदा जी बालकृष्ण को पालना झूला रही हैं, सीता माता राम जी को पूष्पवाटिका में निहार रही हैं, कोशल्या जी राम जी को दूध पिला रही हैं, कुशल्या जी रुक्मिणी से पहरा कर रही हैं, आदि आदि, साठ हुई उरांव जी यहाँ भी कहा कि हम एकादशी को अनन नहीं खाते, जगन्नाथ भगवन की रथयात्रा, विजायदशमी, रामनवमी, रक्शाबन्धन, देवोत्तान जीसे उक्तर भारत में देव उ़आन भी बोला जाता है, होली, दीपावली आदि बजे धूमधाम से मनातें हैं, तो हम ईस्टर क्योकाँ मनायें.?
कार्तिक उरांव जी यहाँ ही नहीं रुके उन्होंने वहाँ बैची मिशनरीज से पूछाaydi him isai है तो यहाँ बैचा एक भी व्यक्तिकोई ऐसा गीत गा दे कि जिसमेँ मरियम ऐसा को पालना झुला रही हो, और यहाँ गीत हमारे प्रम्परा में प्राचीन काल से यहाँ है तो में अभी का अभी ऐसा बन जाँचगा, अंत में उरांव जी कहा कि में वनवासियों के उरांव समुदय से हूँ, हनुमानजी हमारे आदिगुरु हैं हम हिन्दू हैं पैडा हुए हैं और हिन्दू हैं मरेंगे, ना कि ऐसा बंकर जमीं में गाजे जायेंगे।
कार्तिक उरांव जी अब नहीं रहे इसी का फायदा़ जानकारी जेसे राज्यौं में ज़मकर ऊनाया जा रहा है, मिशनरीज ने काफी जी को जीसस बनाकर सूली पर लटका दिया, माता मरियम के मंदिर बना डाले, और जीसस को आदिवासी जिससे दिनने वाला बनाकर नये रंग, नये रूप में रक्षक बेच दिया। अभी तक इस कैम के लिए विदेशों से मिशनरी लोग बुलाए जाते थे, वो यहीं अकसर जीसस का बख़ान करते थे किन्तु अब मुंंबई के लोनावाला में बीटीसीपी यानि बाइबल ट्रेनीग सेंटर पास्टर खोलागया है, यहीं एक से चर्च में धर्माने में धरमांतरण करने के तरीके सिखाये जाते हैं, इसीके बाद अपनों के खिलाफ़ अपनों द्वारा जाटे हैं, हिन्दुओं से ही हिन्दुओं को कोसना, अपने भगवाण महापुरुषों राम और श्रीकृष्ण को अपशब्द बकना सिखाया जाता है,
असल में ये एक हवा एक लहर होती है जो लहर आज़ादी बनने की शुरुआत में दीखाई दे रही है कही ये लहर दाख़िल कोरियाया में भी चली थी 1940 के दशक में, दाख़िल कोरियाया में सिर्फ़ 2 प्रशासनिक ईसाई थे, 2014 में, ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या वहाँं 30 प्रशासनिक से अधिक हो गई यानि कितीन पीढ़ियों के अंतराल में 15 गुना वृद्धि, लेकिन अत्याचानक, वहाँं के युवाओंं ने इनका पाठंड झूठ देखा पार्टीयोंं द्वारां किया जा रहा यौन शोषण देखा तो किनारा कर लिया और चर्च में जाना बंद कर दिया। आज वहाँं से झोला ऊपाकर ये लोग भारत नेपाल और म्यांमार जैसे देशो में निकल लिए।
निकल क्याों लिए क्योंकि हम लोग अहिंसा परेम दया मानवता सर्व धर्म सम्पभाव में विश्वास करते है और वसुधैव कुटुम्बकम मतलब सारी दुनिया एक परिवार है जैसे hammeriora नारा है जबकि आती की तो हम नहीं कहते लेकिन अब इस नारे ने हमेशा अधिक कमजो़र किया,आंबेडकर जी ने कहा था कि मुस्लिम सिर्फ़ मुस्लिम को अपना भाई मानता है, दुसरों को नहीं, गीता में भी लिखा है कि धर्म की हानि करने वाला कभी अपना नहीं होता एक समय अर्जुन के मन में भी थी यही वसुधैव कुटुम्बकम वाली भावना को लेकर भंगवाण श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन की इस कमजोरी को दूर किया और बताया कि धर्म को हानि करने वाले कभी अपना नहीं होते,
आज देखा क्यों कोई मुस्लिम या इसी वसुधैव कुटुम्बक का पालन करता है? इसliye वसुधैव कुटुम्बकम एक सद्भाव का नारा हो सकता है, रचनात्मक नहीं, परिवार की भावना का अभयास करना ठीक है किन्तु जब तक संबन्धित व्यक्ति परिवार की तरह व्यवहार करता हो न कि तब जब आपकों लूटने की योजना बना रहा हो, जैसे ये लोग आज लव जिहाद धरमांतरण का кучकर रहे हैं और हम फालतू का नारा वसुधैव कुटुम्बकम लेकर बै हे रहे कहा ओछित्य है इस नारे का..?
इसके बाद कहा जाता है कि सब धरम बराबर है जब सब धरम बराबर है तो धर्मांतरण पर कानूनी परमिशनरीज बिलबिला क्यों जाती है, जब सब धरम बराबर है तो वेटिकन सिटी और मक्का में मंदिर क्यों नहीं हैं.? जैसे अयोध्या काशी मिथुरा में चर्च और मस्जिद खोली है इसी तरहवाहां भी मंदिर बननें चाहिये की नहीं बनने चाहिये..?
हालांकि सब ज़गह ऐसा नहीं है जब खूब समय पहले जब अंडमान निकोबार के द्वीप समुद्र के ऊतरी सेंटी널 द्वीप पर सेंटीरल जनजाति समुदाय के लोगों ने अपने क्शेत्र में घुस रहे एक अमेरिकी इसाई धर्म प्रचारक को तोड़ से मार डाला था। असल में सेंटीजल जनजाति के लोग अपने द्वीप पर किसी बाहरी को आने नहीं देते और अगर कोई बाहरी व्यक्ति अपने वांछित मर्यादा का उल्लंघन कर यहीं आया तो इस जनजाति के लोग उससे तीर्की की सहायता से मार देते हैं, इनके यहाँ कोई भाशाई जवाब नहीं है, न इनके यहाँ धर्मनिर्पेक्षता के खोखले सिद्धांत, यहाँ एक जनजाति है जिसकी अपनी परम्परा और संस्कृति है जिसकी रक्षा ये लोग तीर्की की सहायता से करते आये हैं।leken iske vipreet आज खूब ज़गह भागवान श्रीकृष्ण को सूली पर लटकाकर और माता मरियम के मंडिर बनाकर भोले भाले आदिवासियों का धार्मिक शोषण ये लोग कर रहे हैं..
राजीव चौधरी
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