पाकिस्तान में मंदिर को लेकर तकरार


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Rajeev ChoudharyDate
18-Jul-2020Category
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ख़बर है पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में बने वाले पहले भगवन श्री कृष्ण जी के मंदिर को कुछ मजहबी गुटों ने ढहा दिया। नवीनिर्मित मंदिर की नींव को उखाड़ फेंका, कमाल देखिए भारत में हुए ज़रा से मामले पर एक साथ 50 ट्वीट ठोकने वाले इमरान ख़ान ने इनके तथ्यों के आगे घुटने टेक दिए हैं। जबकि इस मंदिर का निर्माण पाकिस्तान की कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी कर रही थी। अब इमरान की सरकार कह रही है कि इस मामले पर इस्लामिक विद्वानों से सलाह ली जाएगी कि मंदिर बनाया जाए या नहीं और फिलहाल मंदिर के निर्माण पर रोक लगा दी गई है।
यह कोई अवैध निर्माण नहीं था बल्कि खुद पाकिस्तान सरकार ने ज़मीन दी थी और निर्माण को मंज़ूरी भी। लेकिन अब वो भी मुल्लाओं से सलाह लेंगे और वो क्या सलाह देंगे इस पर दुनिया जानती है क्योंकि उनके फतवे को बड़े बड़े मुफ्तियों का समर्थन हासिल है। खुद मुफ्ती मुहम्मद जकारिया ने अपने फतवे में साफ लिखा है कि हम कुरान और सुन्नत के ज़रिए लोगों का मार्गदर्शन करने की कोशिश करते हैं। हम अपने मन से कुछ भी नहीं बोलते। मेरी समझ है कि एक इस्लामी मुल्क में नए मंदिर और या कोई अन्य धर्मस्थल बनाना ग़ैर-इस्लामी है। तो मंदिर का सवाल ही पैदा नहीं होता है, अगर मंदिर बना शव कुत्तों के आगे डाल देंगे।
असल में ये पहली घटना नहीं है, इससे पहले भी पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों को तोड़ा जाता रहा है, और जो ऐसा करता है उन्हें पाकिस्तान में सम्मान के साथ देखा जाता रहा है। भारत में भी 800 साल ये क्रम चलता रहा और मजहबी किताब के अनुसार वो लोग बराबर सम्मान पाते रहे।
अब पूरा मामला समझिए कि भारत में कैसे मस्जिदों की भरमार और पाकिस्तान में क्यों मंदिरों की दुर्दशा हुई कि आज एक मंदिर की नींव भी वो लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते, किसी केवळ नफ़रत भर का ही नहीं है बल्कि एक सोची समझी रणनीति का भी है। क्योंकि कभी पाकिस्तान में भी हज़ारों ऐतिहासिक मंदिर हुआ करते थे, पाकिस्तान की भूमि आर्यों की प्राचीन भूमि हुआ करती थी। सिंधु, सरस्वती और गंगा नदी के किनारे ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता का उत्थान और विकास का आरम्भ होना बताया जाता है।
बंद क्यों है बंद होने के पीछे का कारण सिरफ हिन्दू या सिखों का कम और मुस्लिम समुदाय ज्यादा होना नहीं है बल्कि एक जो बड़ा कारण वो है एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ी पंडित ज्वाहर लाल नेहरू और लियाकत अली खाँ के बीच महत्वपूर्ण के तहत पाकिस्तान में ईटिपीबी यानी इवैक़्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड का गठन हुआ था और भारत में मुस्लिम परिसनों पर बोर्ड की स्थापना हुई थी। अब जेलें भारत में मुस्लिमों और इस्लामिक संस्थाओं का अधिकतम हिस्सा लोग मुसलमान बना दिए गये लेकिन पाकिस्तान में इवैक़्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड में हिन्दू नहीं लिए गये। महत्वपूर्ण के तहत एक बोर्ड का तो गठन हुआ लेकिन उसमें एक भी सिख या हिन्दू नहीं लिया गया। बोर्ड के चेयरमैन से लेकर सभी पदों पर मुस्लिम रहे उनहोंने लालच में संपत्तियों को या बेच दिया या फिर उन्होंने मुस्लिमों में तबदील करा दिया।
कुछ मंदर और गुरूद्वारे शान के साथ एक वक्त तक खोजे भी रहे लेकिन यही फैसला, 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद पाकिस्तान और बंग्लादेश में इस्की प्राधिकृत होना में ज्यादा वक्त नहीं लगा। बाबरी मस्जिद के बाद पाकिस्तान में तकरीबन 100 मंदर या तो जमीनों कर दिये गए या फिर उन्होंने भारी नुक्सान पहुंचाया गया। बंद पड़े मंदिरों से भी इस्लाम को खतरा हो गया था और पंछ वक्त के मामलोों द्वारा उन्हे तोड़ा गया। जबकि इनमें से कुछ मंदिरों में 1947 में हुए बंदवारे के बाद पाकिस्तान आये लोगों ने शरण तक ले रखी थी।
आधुनिक इस्लाम, 1992 को लाहौर के एक जैन मंदिर को उनमादियों ने ढहा दिया। वहाँ अब केवल इस्लाम के ध्रुव फांक्तेंखदर बाकी रह गए हैं। रावलपिंडी के कुछ मंदिर में आज भी हिंदू पूजा-पाठ करने आते हैं। इस मंदिर का शिखर बाबरी विध्वंस के बाद तोड़ा गया था। जो आज तक उस हाल में खड़ा है, ये तथ्य रावलपिंडी के कल्याण दास मंदिर की है। फिलहाल इसमे नेत्रहीन बच्छों के लिए एक सर्कारी स्कूल चलता है। लाहौर के अनारकली बाजार के बंसीधर मंदिर को 1992 में क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। लाहौर की ही शीतला देवी मंदिर विध्वंस के बाद पाकिस्तान में मुस्लिमों के गु्स्से का शिकार बनने वाले मंदिरों में से एक है।
इसके अलावा लाहौर के प्रसिद्ध अनारकली बाजार के बंसीधर मंदिर को 1992 में क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। कराची के मालीर इलाके में एक मंदिर हुआ करता था। अर्किटेक्चर के लिहाज से यह एक शानदार मंदिर था। मंदिर में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों पर बहुत ही बारीकी से नक्काशी का काम किया गया था। जब मंदिर पर हमला हुआ तब लोगों ने यहाँ की मूर्तियों भी तबाह कर दी थी, जिससे देखें पाकिस्तान में मानवाधिकार संगठनों के उपाध्यक्ष अमरनाथ मोटुमल ने एक बार कहा था कि ये लोग हिंदुओं पर और मंदिरों पर हमला कर के इन्हें जन्नत नसीब होती है।
सिर्फ़ 1992 ही नहीं इसके बाद भी कट्टरपंथी तंजीमों को जन्नत जाने के लिए जब भी वहाँ भे मोका मिला है वो अपनी नफरत बाहर निकालने से नहीं चूकते जो उनकों अनदर समुदायों और मदरसों से बराबर भरी जाती है। 27 जनवरी को पाकिस्तान की विदेशी पत्रकार नायला इनायत ने सोशल मीडिया पर मंदिरों की कुछ तस्वीरें शेयर की थीं। नायला ने लिखा था कि पहले सिंध में अब एक और हिंदू मंदिर में तौज़फूज़ की गई, थारपरकर के चाचरो में भीख़ ने माटा रानी भाटीयानी मंदिर में पवित्र मूर्ति और हिंदू ग्रंथों को नुक्सान पहुँचाया है और पाकिस्तान सरकार मौन है। यह नफरत सर्फ मंदिर तक सीमित नहीं है पाकिस्तान में 500 गुरुद्वारों भी हैं जो आज भी बंद हैं। गुरुद्वारों की देखभाल करने वाला कोई नहीं बशा। जिनके आज कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बना दिये गये।
पिछले दिनों पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में नारोवल जनपद में गुरुनानक देव जी का चार सौ साल पुराना ऐतिहासिक महल है, इस महल की देखरेख की जिम्मेदारी पाकिस्तान सरकार की है, महल में गुरुनानक के जीवन काल से जुड़ी अहम वस्तुओं को संरक्षित करके रखा गया था। लेकिन मज़हबी गुंडों ने गुरुनानक देव के महल में भी तौज़फूज़ कर क्षतिग्रस्त कर दिया और उन्से जुड़े चीज़े चोरी कर ली थी।
यानि बंटवारे के बाद से पाकिस्तान में सैंकड़ों मंदिर ध्वस्त किए गए, हालाँकि पूरे आंकड़े किसे के पास नहीं हैं 1130 मंदिर और 517 गुरुद्वारों का आंकड़ा भी वहां है जो कितागजों में लिखित रूप से शामिल है। इनके अलावा छोड़े मोटे मंदिरों और गुरुद्वारों का तो अस्थित्व ही मिटा दिया गया और आज जो बेहद हैं वे बेहद उपेक्षा का शिकार हैं। वहां की हिन्दू आबादी न अपनी पूजा कर सकती न प्राथमिकता। यहीं तक की उंकी युवा और नाबालिग बच्चों तक उंहा लाई जाती हैं और इस सबके बावजूद यहाँ सवाला किया जाता है कि सिऐए कनून क्या गया और मुस्लिम इस्में क्यों शामिल नहीं किये गये ? जबकी सवाल यह होना चाहिए था कि मुस्लिम परसनल ला बोर्ड में एक भी हिन्दू क्यौं शामिल नहीं किया जाता?
राजीव चौधरी
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