चीन सीमा से पीछे हट गया है लेकिन अब हमें चीन की कमज़ोरियों की और विश्व का ध्यान खींचना होगा। क्योंकि चीन की सबसे बड़ी कमजोरी है तिब्बत और भारत अकेला ऐसा देश है, जो चीन को तिब्बत के कारण पानी पिला-पिला कर मार सकता है। तिब्बत का क्षेत्रफल 12 लाख वर्ग किलोमीटर का है जो हमारे एक-तिहाई क्षेत्रफल से थोड़ा बड़ा है, हमारा 32 लाख है और तिब्बत का 12 कमाल देखिए इतने बड़े क्षेत्र को जबरदस्ती चीन ने अपने में मिला लिया। जो आज तक उसके कब्जे में है।

ऐसा नहीं है जैसा भारत की मीडिया में हमेशा कई चैनल चीन को ताकतवर बताते हैं और दुबके रहने की सलाह देते हैं। बस यही चीन की ताकत है वरना चीन की कमज़ोरी ही कमजोरी है। दूसरा सर्फ हत्यारों से कोई देश ताकतवर नहीं होता इसका सबसे बड़ा उदाहरण रूस है। तीन हजार परमाणु हथियार उसके जेब में थे। लेकिन फिर भी अमेरिका ने उसके दस टुकड़े कर दिए हैं और रूस के हथियार रखे रह गए थे।

तिब्बत की चीन से मुक़्ति जरूरी क्यों है असल में तिब्बत कभी विश्व के सबसे अहिंसक देशों में था, पूरी तरह बौद्ध मत का पालन करने के कारण इसके पास पर्याAPT सेना भी नहीं होती थी। हालाँकि हमेशा ऐसा नहीं रहा एक समय वो भी था जब सन 763 में तिब्बत की सेनाओं ने चीन की राजधानी पर भी कब्ज़ा कर लिया था और चीन से टैक्स लेना शुरू कर दिया था। लेकिन जैसे-जैसे बौद्ध मत में उनकी रूचि बढ़ी, उनके अन्य देशों से संबंध राजनीतिक न रहकर आध्यात्मिक होते चले गए। यही आध्यात्मिक उनकी कमजोरी बन गई, अहिंसा का ताबीज़ पीकर चीन के साथ एक संधि की। यह संधि सन 821-22 के आसपास हुई जिसके अनुसार एक देश कभी भी दूसरे पर आक्रमण नहीं करेगा। दिलचस्प बात यह है कि तिब्बत में जोखांग मंदिर सबसे पवित्र माना जाता है, इसके प्रवेश द्वार पर खुदा एक पत्थर का स्तंभ है। जो तिब्बत के प्राचीन इतिहास और उसकी शक्ति का परिचायक है, इस पर तिब्बती और चीनी दोनों भाषाओं में सन 821-22 में दोनों देशों के मध्य हुई स्थायी संधि का विवरण खुदा हुआ है। जो इस प्रकार है तिब्बत के महाराज-तथा चीन के महाराज दोनों का रिष्टा भतीजे और चाचा का है। दोनों ने एक महान संधि की और उसकी पुष्टि की है। सब...

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