राम मंदिर भूमि पूजन में धर्मनिरपेक्षता कहाँ गई? एक लंबी सियासी और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगस्त को पू...


Author
Rajeev ChoudharyDate
07-Aug-2020Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
9173Total Comments
1Uploader
RajeevUpload Date
07-Aug-2020Top Articles in this Category
- फलित जयोतिष पाखंड मातर हैं
- राषटरवादी महरषि दयाननद सरसवती
- सनत गरू रविदास और आरय समाज
- राम मंदिर भूमि पूजन में धर्मनिरपेक्षता कहाँ गई? एक लंबी सियासी और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगस्त को पू...
- बलातकार कैसे रकेंगे
Top Articles by this Author
- राम मंदिर भूमि पूजन में धर्मनिरपेक्षता कहाँ गई? एक लंबी सियासी और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगस्त को पू...
- साईं बाबा से जीशान बाबा तक क्या है पूरा मज़रा?
- तिब्बत अब विश्व का मुद्दा बनना चाहिए
- क्या आत्माएँ अंग्रेजी में बोलती हैं..?
- शरियत कानून आधा-अधूरा लागू कयों
एक लंबी siyasi और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी जी के हाथों द्वारा राम मंदिर का भूमि पूजन शिलान्यास किया गया। करीब 493 साल लंबा कालखंड के संघर्ष के पश्चात मर्यादा पुरुषोत्तम राजा रामचन्द्र जी के मंदिर का भूमि पूजन हुआ। लेकिन इसी बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की टिप्पणी आई है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म ट्विटर के माध्यम पर पर्सनल लॉ बोर्ड ने बयान जारी कर कहा कि बाबरी मस्जिद थी और हमेशा मस्जिद ही रहेगी। हम सब के लिए हागिया सोफिया एक उदाहरण है। दिल दुखाने की कोई बात नहीं है। सच्चाई हमेशा एक जैसी नहीं रहती है।
सिर्फ इतना ही नहीं, इसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर एक विवादित कहे जा रहे घोलने वाली प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल और मक्का मदीना के उदाहरण दिये गये हैं। यानी ये तक कहा गया कि एक समय वहां भी मूर्ति पूजा होती थी लेकिन आज मस्जिदें हैं। इससे साफ समझा जा सकता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भविष्य में क्या योजना बना रहा है।
असल में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो कुछ भी कह रहा है वह डर या धमकी स्वरूप नहीं कह रहा है। बल्कि जो कुछ कहा जा रहा है इसके ऐतिहासिक रूप से प्रमाण हैं। राम मंदिर से लेकर काशी मथुरा इसके प्रमाण हैं। इसके अलावा हाल ही में तुर्की के हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद बनाया जाना भी इसी लकीर का हिस्सा है। इसके अलावा मध्य युगीन भारत में करीब चालिस हजार हिंदू मंदिरों का विध्वंस भी इसी मानसिकता या हिस्सा है, 1974 में उत्तरी साइप्रस में तुर्की द्वारा चर्च का विध्वंस करना, 1990 के दशक में मक्का की प्राचीन कलाकृतियों को सऊदी द्वारा ध्वस्त किया जाना, फिलिस्तीनियों द्वारा सन 2000 में यहूदियों की मजार को हटाया जाना, 2001 में तालिबान द्वारा बामियान बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ा जाना, वर्ष 2002 में अल कायदा द्वारा ट्यूनिशिया में गरीबा गिरिजाघर पर बम गिराया जाना, 2003 में इराकी संग्रहालय, पुस्तकालय और अभिलेखागार को लूटा जाना। मिस्र के प्राचीन पिरामिड से लेकर विश्व भर की अति प्राचीन महत्व की सभ्यताओं को नष्ट कर ये मानसिकता अपना समय समय पर परिचय देती है।
दूसरा आगे बढ़े तो एक बार फिर उस धर्मनिरपेक्षता का नकाब भी इनके चेहरे से उतर गया जिसे लगाकर ये लोग अक्सर अपने तमाशे करते रहते हैं। तीसरा दरअसल यह टकराव आज लुकाछिपी का नहीं रहा, एशिया से लेकर यूरोप और अमेरिका भर में, ये अतिवाद बढ़ रहा है। कुछ समय पहले धार्मिक समूहों से जुड़ी एक पत्रकार कैरोलिन व्हाइट का इस संबंध में एक विस्तृत आलेख प्रकाशित हुआ था।
कैरोलिन ने लिखा था कि दुनिया में 56 मुसलमान राष्ट्र हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि एक देश में जितनी विचारधारा के मुसलमान हैं वे अपने सत्ता स्थापित करने की जुगाड़ लगाते रहते हैं। इसलिए इन देशों में मुसलमानों के अनैक गुट सत्ता हथियाने के लिए लड़ने और युद्ध करने के लिए, हमेशा तैयार रहते हैं। जिन देशों में उनकी संख्या कम होती है वे पहले तब्लीग और कन्वर्जन के नाम पर अपना संख्या बढ़ाते हैं। इस संख्या को बढ़ाने के लिए कन्वर्जन से लेकर अधिक बच्चे पैदा करने, लव जिहाद की मुहिम चलाकर वे अपना संख्या बढ़ाते हैं और फिर कुछ ही वर्षों में एक नये देश की मांग करने लगते हैं। एशिया को विजय कर लेने के बाद वे अफ्रीका की ओर बढ़ते हैं। अवसर मिला और यूरोप में भी घुसे। आज इस्लाम पर्स्तों की यह लालसा है कि वे नंबर एक पर पहुंच जाएं। वे किसी न किसी बहाने युद्ध को निमंत्रण देते रहते हैं। यह मुस्लिम कट्टरवादियों की बुनियादी रणनीति है जिस पर चलकर मुस्लिम जनता को युद्ध के लिए तैयार किया जाता है।
Fantastic