देहरादून। वैदिक साधन आशरम तपोवन, देहरादून का पांच दिवसीय शरदतसव आज 7 अकतूबर, 2015 को सोतसाह आरमभ हआ। परातः 5:00 बजे योग वं धयान साधना शिविर का शभारमभ हआ जिसका परशिकषण आरयजगत के विखयात संनयासी सवामी दिवयाननद सरसवती जी दवारा दिया गया। परातः 6:30 बजे अथरववेद पारायण यजञ का शभारमभ हआ जिसके मखय यजमान आशरम के परधान शरी दरशन कमार अगनिहोतरी थे। मखय यजञशाला सहित अनय तीन वृहद यजञकणडों में भी यजञ हआ और अनेक यजमानों वं धरमपरेमी शरदधालओं ने यजञ में घृत व साकलय की शरदधा भकति के साथ आहतियां दीं। यजञ समापती पर सवामी दिवयाननद जी ने सभी यजमानों को आशीरवाद दिया। सवामी दिवयाननद जी ने उपासना की चरचा की और बताया कि उपासक का शरीर सवसथ रहता है, यह लाभ भी अनेक लाभों के साथ उपासना करने वाले को मिलता है। उनहोंने कहा कि यजञ में सबको आना चाहिये। इससे वातावरण की शदधि, अनतःकरण की शदधि तथा मन को लाभ होता है। उनहोंने बताया कि ईशवर परदतत जञान चार वेद ऋगवेद, यजरवेद, सामवेद तथा अथरववेद हैं। विजञान अथरववेद का मखय विषय वा तातपरय है। ऋगवेद में सकल पदारथों का जञान है। करतवय करमों का जञान यजरवेद से होता है। यदि हम अपने सभी शभ कारयों को ईशवर को समरपित कर दें तो हमारी उपासना सफल हो जाती है। उनहोंने कहा कि समरपण में ईशवर को कहें कि मैंने सभी करम आपकी दी हई शकति से ही किये हैं, अतः इनकी सफलता का सारा शरेय आपको है। इस परकार समरपण कर देने से मनषय अहंकार से बच सकता है। उनहोंने कहा कि सभी मनषयों को ईशवर के निज नाम ‘‘ओ३म नाम का चिनतन-मनन करना चाहिये और ईशवर का धनयवाद करना चाहिये। सवामीजी ने बताया कि सरववयापक का वाची ओ३म शबद ही है। परमातमा हमारा सवामी है। परमातमा के ओ३म नाम का हम उचचारण करते रहें। परमातमा को अपने जीवन को समरपित कर चलाने से मनषय मकति की ओर अगरसर होते हैं। यजञ का संचालन शरी उततममनि जी ने किया और मनतरपाठ गरूकल पौंधा के बरहमचारियों ने किया।

यजञ के बाद आयोजन में उपसथित आरयजगत के विदवान संनयासी सवामी चिततेशवराननद सरसवती ने शरदधालओं को समबोधित कर कहा कि जब हम पैदा ह थे, तब न तो हम किसी को जानते थे और न कोई हमें ही जानता था। कोई माता यह नहीं जानती कि उसका शिश कैसे बना है? उनहोंने कहा कि यहां बहत मातायें बैठी हैं परनत कया कोई कह सकती है कि अपने शिश को उसी ने बनाया? इसका उततर हां में नहीं, न मे है। कोई माता अपने शिश को नहीं बनाती। शिश को परमातमा बनाता है। माता का सथान सनतानों के लि बहत गौरवमय सथान है। विदवान वकता ने कहा कि यह बात सचची है कि हम आज भी क दूसरे को नहीं जानते। हम क दूसरे को उसका चैखटा देखकर ही पहचानते हैं। हमारे परसपर जो समबनध हैं, वह सब सचचे हैं, ूठे नहीं है। हमारा शरीर व इसमें इनदरिय आदि जो साधन हमारे पास हैं, वह हमारे नहीं अपित हमें ईशवर ने उपयोग हेत बनाकर दे रखे हैं। यही नहीं अपित मनषय का शरेषठ शरीर भी हमें परमातमा ने ही अपनी कृपा व दया से दिया है। उनहोंने कहा कि हमें अपने जीवन को सबके लि उपयोगी व सखकारी बनाना है। परमातमा चाहता है कि हम क दूसरे के साथ परेमपूरवक मिल कर रहे। सवामी जी आगे कहा कि परमातमा से जड़ने वा मिलने से हमें सख मिलता है और परकृति से जड़ने पर दःख मिलता है। सख इनदरियों की अनकूलता को और दःख इनदरियों की परतिकूलता को कहते हैं। उनहोंने कहा कि ईशवर सदा सरवदा, हर कषण हमारे साथ रहता है और कभी हमसे दूर नहीं होता। हम ही ईशवर से दूर रहते व संसार में फंसे रहते हैं। परमातमा सब पराणियों को जानता है और सबके साथ रहता है। सवामी जी ने सबको सावधान किया कि हम यहां सदा रहने वाले नहीं है। हमारे सभी समबनध माता-पिता, पति-पतनी, भाई-बहिन, पतर-पतरी व मितर आदि आने वाले दिनों में निशचय ही छूट जायेंगे। उनहोंने सबको अपने आपको परम सतता परमातमा के साथ जोड़ने की अपील की। उनहोंने सावधान करते ह यह भी कहा कि ईशवर को परापत करने की साधना बढ़ापे में नहीं हो सकती। इसके लिये तो यवावसथा से ही अभयास करना पड़ता है। सवामी जी ने सलाह दी की जीवन में जो करना है उसे आज ही आरमभ कर दीजि तभी लाभ होगा।

सवामीजी के परवचन के बाद धवजारोहण हआ और वैदिक राषटरगान गाया गया। इसके बाद भजनों का कारयकरम हआ। शरी रूहेल सिंह आरय ने पहला भजन सबसे बड़ा है भगवान, कैसी महिमा उसकी निराली देख लो। गाकर परसतत किया। उनका दूसरा भजन आय से पहले अपनी जिनदगी, यमराज पे अहसान किये जा रहा है।, तीसरा भजन आज का इंसान कया इंसान है, चोला मानव का मगर हैवान है। चौथा भजन ये घडि़या तेरे जीवन की, बागो बहार हैं ये चनद दिन की है जरा सोच ले तथा पांचवां भजन कभी कोई आये यहां कभी कोई आये। जीव है मसाफिर, जगत है सराय रे। परसतत कर सबको ईशवर भकति रस सें सराबोर कर दिया। इनके बाद आरय जगत के महान गीतकार वं गायक पं. सतयपाल पथिक जी ने कछ भजन परसतत किये। उनका पहला भजन था हमारे देश में भगवन भले इंसान पैदा कर। सकल सख समपदा वाली सखी सनतान पैदा कर।। दूसरे भजन के शबद थे कौन कहे तेरी महिमा कौन कहे तेरी माया, किसी ने हे परमेशवर तेरा अनत कभी न पाया। आपके भजन सनकर धरमपरेमी सजजन सवयं को अमृत में सनान किया हआ सा अनभव कर रहे थे। पथिक जी के भजनों के बाद आगरा से आशरम के उतसव में मखय वकता के रूप में पधारे आरयजगत के विदवान शरी उमेश चनदर कलशरेषठ ने अपने परवचन में आरयसमाज के धवज में ओ३म शबद लिखे होने की चरचा आरमभ की। उनहोंने अनय धवजों का उललेख कर कहा कि उनमें कहीं नसीसी तो कहीं अनय अनय शबद लिखे होते हैं। उनहोंने कहा कि महरषि दयाननद ने कहा है कि ओ३म ईशवर का मखय नाम है। वेद में कहा गया है कि हे जीव ! तू ईशवर के ओ३म नाम का समरण कर कयोंकि मृतय के बाद ओ३म परमेशवर के पास जाना है। उनहोंने कहा कि वैदिक धरम के धवज पर ओ३म नाम लिखने का परयोजन यह है कि सारी धरती पर ओ३म का सामराजय सथापित हो जिससे सरवतर सख व शानति सथापित हो। उनहोंने परशन किया कि निराकार ईशवर से यह कैसे समभव है? शरी कलशरेषठ ने कहा कि निराकार ईशवर ने ही सृषटि के आरमभ में वेदों का जञान दिया। यह चार वेद पूरे विशव का संविधान हैं। उनहोंने कहा कि यदि वेद के अनसार विशव का शासन चले तो संसार में सरवतर शानति सथापित हो सकती है। यदि वेदानसार शासन होगा तो कोई देश किसी देश पर आकरमण नहीं करेगा। दराचार व भरषटाचार की कहीं कोई घटना नहीं होगी। विदवान वकता ने कहा कि ओ३म की इन विशेषताओं के कारण ही महरषि दयाननद ने इस इस ओ३म शबद को धवज पर अंकित करने की परमपरा सथापित की जिससे कि विशव में सख व शानति सथापित हो सके। उनहोंने कहा कि सभी राषटरों को परसपर वेद जञान से पूरण समबनधों को सथापित करना चाहिये। उनहोंने यह भी बताया कि ओ३म नाम में ईशवर के सब नाम शामिल हैं और यह ओ३म शबद विकार रहित होने के साथ अनादि व नितय भी है।

विदवान वकता ने यजञ का उललेख कर बताया कि आरयसमाज अपने सभी कारयों के आरमभ में यजञ करता है। उनहोंने कहा कि इसका कारण यह है कि महरषि दयाननद ने आदि ऋषि बरहमा से जैमिनी ऋषि परयनत ऋषियों दवारा सथापित परमपराओं को ही पनः परचलित किया। पराचीन ऋषि परमपरा में यजञ का परमख सथान है। गीता का उललेख कर विदवान वकता ने बताया कि सृषटि के आरमभ में ईशवर ने यजञ के दवारा ही सृषटि और परजा को उतपनन किया था। यजञ सभी परकार की उननति का मूल है। यजञ से मनषयों की सभी कामनायें पूरण होती हैं। यजञ का आरमभ सृषटि के आरमभ में ही हो गया था सा वैदिक साहितय के आधार पर महरषि दयाननद मानते थे। उनहोंने कहा कि क अरब छियानवें करोड़ आठ लाख तरेपन हजार क सौ पनदरह वरष पूरव वेद जञान की उतपतति सहित यजञ की परमपरा असतितव में आई थी। तभी से यजञ चल रहा है। ऋगवेद के पहले मनतर की चरचा कर आपने कहा कि अगनि शबद भौतिक अगनि सहित परमातमा का परयायवाची शबद है। परसंगानसार इनका संगत अरथ लिया जाता है। विदवान वकता ने कहा कि ईशवर पराहित होने से सृषटि उतपनन होने से पूरव व पशचात विदयमान रहता है और सबका हित करता है इसलिये परोहित कहलाता है। उनहोंने कहा कि यह सृषटि यजञ ईशवर के दवारा सृषटि के आरमभ से निरनतर किया जा रहा है। उनहोंने बताया कि देवता वह पदारथ होते जिनसे दूसरों का कलयाण होता है। सृषटि की रचना में मूल परकृति का पहला विकार महततव, दूसरा अंहकार उसके बाद पांच तनमातरायें होते ह सूरय, चनदर, पृथिवी व पृथिवी के सभी पदारथ असतितव में आते है। इस सृषटि रचना को उनहोंने परमातमा दवारा किया जाने वाला यजञ बताया।  ईशवर की वयवसथा से चींटी से लेकर हाथी तक सभी पराणियों को भोजन मिल रहा है। वेद मनतर कसतवा यनकति का उचचारण कर विदवान वकता ने कहा कि ईशवर ने जीव को शरीर से इसलि जोड़ा है कि हम ईशवर के कारयों में सहयोग करें। मनषयों का करतवयों है कि वह सृषटि के कारयों में सहयोग कर इसे चलायें तथा कोई बाधा उतपनन न करे। मनषयों ने ईशवर के कारय में सहयोग न कर परकृति को विकृत व परदषित किया है। परमातमा की यह सृषटि हमारे लिये बनाई गई है। इसे विकार रहित व परदषण से बचा कर रखना हमारा करतवय है। उनहोंने कहा कि हम इस लिये दःखी हैं कि हमने परकृति को परदषित किया है, यही हमारे दःखों का कारण है। परमातमा का यजञ रात दिन बिना क कषण रूके चल रहा है। सूरयोदय का समय पर उदय व असत होना और सभी गरहों व सृषटि के पदारथों का उतपनन होना, वाय चलना आदि ईशवर के सृषटि-यजञ के चिनह हैं। उनहोंने कहा कि यदि वाय चलना बनद कर दे तो हमारा जीवन खतरे में पड़ जायेगा। शरी कलशरेषठ ने कहा कि शरीर के पिणड में भी यजञ चल रहा है। जीव के शरीर से निकल जाने पर शरीर का यजञ बनद हो जाता है। शरीर के पिणड का यजञ जीवातमा करता है जब तक यह इसमें रहता है।

विदवान वकता ने कहा कि तीसरा यजञ देवयजञ अरथात अगनिहोतर है जिसे सतरी व परूष मिलकर करते हैं। यह यजञ इस सृषटि को समभालता है। उनहोंने कहा कि यजञ को धरम

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