मनुस्मृति को जलाना एक अज्ञानता व सनातन संस्कृति की उपेक्षा है !


Author
Prakash AryaDate
06-Mar-2016Category
लेखLanguage
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जे एन यू परिसर में मनुस्मृति को जलाना एक दुर्भाग्यपूर्ण और अज्ञानता का परिचायक है। महर्षि मनु विषुद्ध सनातन धर्म के अनुयायी थे जिसमें ऊंच नींच, जाति पांत, स्त्री, पुरूष, देष काल के भेदभाव का लेषमात्र भी कहीं कोई भाव नहीं रहता है। अज्ञानता के कारण ही यह हो रहा है। वास्तव में जिस प्रकार आज समाज सत्य ज्ञान से दूर होकर सम्प्रदायों को धर्म मान रहा है, उसी प्रकार सुनी सुनाई और सनातन धर्म की मूल भावना व आस्था को क्षति पहुंचाने वालों ने मनु के लिए जाति वाचक और महिला विरोधी शब्द का प्रयोग किया है।
वास्तव में मनु का पूरा विचार वेेद जो ईष्वरीय ज्ञान है, उस पर आधारित है, जिसमें मानव मानव के बीच किसी प्रकार की विषमता का एक भी शब्द नहीं है। मनु ने ही नारी जाति के सम्मान में यह सन्देष समाज को दिया था ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’’ सनातन संस्कृति के पोषक मनु कभी भी इस प्रकार की बातों का समर्थन नहीं कर सकते। नारी का सम्मान वैदिक संस्कृति में पुरूषों से भी अधिक देते हुए वैदिक विचारधारा मंे लिखा गया ‘‘मातृमान पितृमान आचार्यवान’’ माता को पहला स्थान दिया। इसी प्रकार मानव निर्माण में माता का ही निर्माण कहते हुए लिखा माता निर्माता भवति’’। इस प्रकार के सम्मानजनक और महत्वपूर्ण विचारों से प्रभावित, आचार्य मनु नारी जाति के विरूद्ध कैसे लिख सकते हैं ? यह दोष जानबूझकर उन लोगों ने जो सनातन धर्म को बदनाम करना चाहते थे, उन्होंने मनु के विचारों में ऐसी मिलावट की है। मनु के संबंध में विद्वान लेखक डाॅ. सुरेन्द्र कुमार कुलपति गुरूकुल कांगड़ी हरिद्वार द्वारा लिखी गई ‘‘विषुद्ध मनुस्मृति’’ को पढ़कर देखा जा सकता है और मनु के नारी जाति के प्रति सम्मानजनक भावों को पढ़ा जा सकता है ताकि भ्रांति का स्वतः निराकरण हो जावेगा।
वास्तव में नारी जाति की गरिमा को महत्व देने का जो विचार रखते हैं वह सराहनीय है किन्तु विरोध करना है तो उनका करो जिनमें नारी को पशु तुल्य बताया है, नारी को भोग की वस्तु कहा है, और नारी को गुलाम बनाकर रखा है, तब इसे सच्चा पुरूषार्थ कहा जा सकता है। यह कार्य 5000 वर्षों के पश्चात यदि किसी ने किया है तो वह महर्षि दयानन्द सरस्वती हैं, इसकी पुष्टि करना है तो महर्षि दयानन्द कृत सत्यार्थ प्रकाष के 13वें, 14 वें समुल्लास को पढ़कर की जा सकती है।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि सनातन संस्कृति को दूषित करने का प्रयास आज से नहीं वर्षों से हो रहा हे और इस प्रकार के कई षड़यन्त्र पकड़े गए यह भी उसी दुष्कृत्य का परिणाम है। पहले किसी भी विचार व सिद्धान्तों को पढ़े, समझे फिर उसके संबंध में निर्णय लेना उचित होगा। सुनी सुनाई बातों पर या अधूरे ज्ञान से किसी के संबंध में सही निर्णय नहीं लिया जा सकता है।
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