मैं महानतम पà¥à¤°à¥à¤· ईशà¥à¤µà¤° को जानता हूं

Author
Manmohan Kumar AryaDate
18-Mar-2016Category
विविधLanguage
HindiTotal Views
1475Total Comments
0Uploader
UmeshUpload Date
23-Mar-2016Download PDF
-0 MBTop Articles in this Category
- आरयावरतत
- मेरी पाकिसतान यातरा
- मनषय जनम
- महरषि दयाननद के सतयारथ परकाश आदि गरनथ आधयातमिक व सामाजिक
- सवामी दयाननद और महातमा जयोतिबा फूले
Top Articles by this Author
- ईशवर
- बौदध-जैनमत, सवामी शंकराचारय और महरषि दयाननद के कारय
- अजञान मिशरित धारमिक मानयता
- ईशवर व ऋषियों के परतिनिधि व योगयतम उततराधिकारी महरषि दयाननद सरसवती
- यदि आरय समाज सथापित न होता तो कया होता ?
यदि किसी मनà¥à¤·à¥à¤¯ ने ईशà¥à¤µà¤° या सृषà¥à¤Ÿà¤¿ आदि विषयों को जानना है तो उसे इन विषयों के जानकार विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की शरण लेनी होगी। किसी à¤à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होकर हम उससे, जितना वह ईशà¥à¤µà¤° वा सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के बारे मे जानता है, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकते हैं। अब यदि हम उससे पूछे कि आपको यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कहां से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤† तो वह परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– करेगा व कà¥à¤› अपने ऊहापोह, चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन व अनà¥à¤µà¥‡à¤·à¤£ की बात कह सकता है। यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के अ नà¥à¤¸à¤¾à¤° विगत 1.96 अरब वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में है। इस अवधि में लगà¤à¤— 49 करोड़ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की पीढि़यां उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होकर कालकवलित हो चà¥à¤•ी हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का आतà¥à¤®à¤¾ सतà¥à¤¯ का जानने वाला होता है परनà¥à¤¤à¥ अविदà¥à¤¯à¤¾ आदि अनेक दोषों के कारण वह सतà¥à¤¯ को छोड़ असतà¥à¤¯ में à¤à¥à¤• जाता है। इससे यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि यदि मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपनी अविदà¥à¤¯à¤¾ को दूर कर दे तो वह सतà¥à¤¯ व ईशà¥à¤µà¤° à¤à¤µà¤‚ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का यथावत जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है। अविदà¥à¤¯à¤¾ को हटाने का à¤à¤• ही मारà¥à¤— है कि हम विदà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का संकलà¥à¤ª लेकर विदà¥à¤¯à¤¾ से यà¥à¤•à¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की संगति करें और अपनी सà¤à¥€ शंकाओं को दूर करने सहित ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के कारण व कारà¥à¤¯ रà¥à¤ª को जानें। सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व ईशà¥à¤µà¤° को जानने की इचà¥à¤›à¤¾ व आवशà¥à¤¯à¤•ता सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की पà¥à¤°à¤¥à¤® पीढ़ी में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वा पà¥à¤°à¥‚षों को à¤à¥€ अवशà¥à¤¯ हà¥à¤ˆ होगी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम जानते हैं कि आतà¥à¤®à¤¾ चेतन ततà¥à¤µ वा पदारà¥à¤¥ है और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® इसके दो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• धरà¥à¤® वा गà¥à¤£ हैं। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पिपास व जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ इसका शाशà¥à¤µà¤¤à¥ गà¥à¤£ वा सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ है।
सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में पहली पीढ़ी के लोगों के लिठआचारà¥à¤¯ व गà¥à¤°à¥ कहां से आये थे? इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का à¤à¤• ही उतà¥à¤¤à¤° है कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ अनà¥à¤¯ सामानà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤‚ति ईशà¥à¤µà¤° ने ही उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया था। इन आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को ईशà¥à¤µà¤° ने चार वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इस वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की अनà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° व उपदेश की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ की। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¸à¤¾ ही किया। परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ से जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि ईशà¥à¤µà¤° ने चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ व अंगिरा को कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ चार वेद ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, सामवेद और अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ का शबà¥à¤¦à¤¾à¤°à¥à¤¥ वा वाकà¥à¤¯-पद-अरà¥à¤¥ सहित जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया था। इन चार ऋषियों में अनà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में सबसे योगà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ नाम के ऋषि को कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ à¤à¤•-à¤à¤• करके चारों वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया। इस पà¥à¤°à¤•ार अनà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ करने के लिठपांच ऋषि, शिकà¥à¤·à¤• व आचारà¥à¤¯ उपलबà¥à¤§ हो गये थे जिनसे अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की पहली पीढ़ी के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ बने थे। तà¤à¥€ से वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ आरमà¥à¤ हà¥à¤ˆ जो अबाध रूप से महाà¤à¤¾à¤°à¤¤à¤•ाल व उससे कà¥à¤› समय पूरà¥à¤µ तक सà¥à¤šà¤¾à¤°à¥ रूप से चलती रही। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ से लेकर जैमिनी ऋषि परà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ चली और उसके बाद अवरोध उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ ईसा की उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ में महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने अपने पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ और वैदà¥à¤·à¥à¤¯ से उस परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° किया और आज उनके मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° संसà¥à¤•ृत वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण की अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€-महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯-निरà¥à¤•à¥à¤¤ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ पर संचालित गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में उस वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ पà¥à¤¨à¤ƒ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ को यह शà¥à¤°à¥‡à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ की पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ विलà¥à¤ªà¥à¤¤ असमà¥à¤à¤µ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ को अपने पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ à¤à¤µà¤‚ वैदà¥à¤·à¥à¤¯ से पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¤ व पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ किया। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ का यह ऋण संसार कà¤à¥€ चà¥à¤•ा नहीं सकता।
वेद ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जो सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° आदि चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ व अंगिरा को देता है। वेद के मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ का दरà¥à¤¶à¤¨ पूरà¥à¤£ योगी, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को होना ही समà¥à¤à¤µ होता है। अतः हमारे सà¤à¥€ वेदाचारà¥à¤¯ व ऋषि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨, योगी व वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† करते थे और à¤à¤¸à¥‡ ही महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ à¤à¥€ थे। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने वेदों के बारे में, वेदों का तलसà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶à¥€ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर, घोषणा की कि वेद सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, निराकार, सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥à¤ª आदि ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हैं और यह चार वेद सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• हैं। इस निषà¥à¤•रà¥à¤· पर पहà¥à¤‚च कर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने संसार के लोगों के उपकारारà¥à¤¥ यह à¤à¥€ कहा है कि वेदों का पढ़ना व पढ़ाना तथा सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ व सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ सà¤à¥€ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का परम धरà¥à¤® है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने यह नियम इस लिठबनाया है कि जिससे संसार से अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का नाश व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की वृदà¥à¤§à¤¿ हो। इसी बात को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• अनà¥à¤¯ नियम में à¤à¥€ कहा है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के इस आठवें नियम में कहा गया है कि सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को ‘‘अविदà¥à¤¯à¤¾ का नाश और विदà¥à¤¯à¤¾ की वृदà¥à¤§à¤¿ करनी चाहिये।” आईये ईशà¥à¤µà¤°, वेद और महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ विषयक उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ विचारों के पà¥à¤°à¤•ाश में वेदों के à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ मनà¥à¤¤à¥à¤° पर विचार करते हैं जिसमें ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª का पà¥à¤°à¤•ाशन किया गया है। यह ईशà¥à¤µà¤° का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª à¤à¤¸à¤¾ है, जैसा कि अनà¥à¤¯ किसी मत व समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ में नहीं पाया जाता। यह मनà¥à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ 31 का 18 हवां मनà¥à¤¤à¥à¤° है जा निमà¥à¤¨à¤µà¤¤à¥ हैः
ओ३मॠवेदाहमेतं पà¥à¤°à¥à¤·à¤‚ महानà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤£à¤‚ तमसः परसà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¥¤
तमेव विदितà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿ मृतà¥à¤¯à¥à¤®à¥‡à¤¤à¤¿ नानà¥à¤¯à¤ƒ पनà¥à¤¥à¤¾ विदà¥à¤¯à¤¤à¥‡à¤½à¤¯à¤¨à¤¾à¤¯à¥¤à¥¤
इस मनà¥à¤¤à¥à¤° का à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ यह है कि मैंने जान लिया है कि परमातà¥à¤®à¤¾ महानॠहै, सूरà¥à¤¯à¤µà¤¤à¥ पà¥à¤°à¤•शमान है, अनà¥à¤§à¤•ार व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से परे है। उसी को जानकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ दà¥à¤ƒà¤–दायी मृतà¥à¤¯à¥ से तर सकता है, बच सकता या पार हो सकता है। मृतà¥à¤¯à¥ से बचने व उससे पार होने का संसार में अनà¥à¤¯ कोई उपाय नहीं है। मृतà¥à¤¯à¥ से बचने का अरà¥à¤¥ है कि जनà¥à¤®-मरण से अवकाश अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीवातà¥à¤®à¤¾ की मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ वा मोकà¥à¤·à¥¤ मृतà¥à¤¯à¥ पर विजय व मोकà¥à¤· अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ 43 नील वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ की दीरà¥à¤˜à¤¾à¤µà¤§à¤¿ तक ईशà¥à¤µà¤° के सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ में रहकर पूरà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ की उपलबà¥à¤§à¤¿ करना।
हमें यह मनà¥à¤¤à¥à¤° ईशà¥à¤µà¤° की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ और उपासना का आधार à¤à¥€ लगता है। मृतà¥à¤¯à¥ से बचने के लिठसà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤•ाशसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¸à¥à¤µà¤°à¥à¤ª, सब सृषà¥à¤Ÿà¤¿ और विदà¥à¤¯à¤¾ का पà¥à¤°à¤•ाश करने वाले परमेशà¥à¤µà¤° वा परमातà¥à¤®à¤¾ को जानकर ही हमारी अविदà¥à¤¯à¤¾ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का अनà¥à¤§à¤•ार दूर होता है व हो सकता है। इसके लिठवेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ अपरिहारà¥à¤¯ है। वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से ईशà¥à¤µà¤° का सतà¥à¤¯ वा पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª विदित होकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उसे ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª का जà¥à¤žà¤¾à¤¨, पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· व साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार हो जाता है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ à¤à¤µà¤‚ अनेक ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व योगियों के जीवनादरà¥à¤¶ हमारे सामने हैं। समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ वेद की इसी शिकà¥à¤·à¤¾ को विसà¥à¤¤à¤¾à¤° देने के लिठमहरà¥à¤·à¤¿ पतंजलि ने योगदरà¥à¤¶à¤¨ का पà¥à¤°à¤£à¤¯à¤¨ किया था जिससे धà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾ योगी अपनी जीवातà¥à¤®à¤¾ में निà¤à¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ रूप से ईशà¥à¤µà¤° के पà¥à¤°à¤•ाश व सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª को अनà¥à¤à¤µ कर उसका पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· व साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार कर सके। योगदरà¥à¤¶à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° साधना करने व उसके आठवें अंग समाधि की सिदà¥à¤§à¤¿ होने पर ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार होता है। समािध अवसà¥à¤¥à¤¾ में ईशà¥à¤µà¤° साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ मà¥à¤£à¥à¤¡à¤•ोपनिषद के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤§à¤°à¥à¤®à¤¾ ऋषि का निमà¥à¤¨ वाकà¥à¤¯ वा शà¥à¤²à¥‹à¤• उपलबà¥à¤§ होता है जिसे पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मानकर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•ाश के नवम समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में उदà¥à¤§à¥ƒà¤¤ किया है।
à¤à¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¤à¥‡ हृदयगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¤¿à¤¶à¥à¤›à¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥‡ सरà¥à¤µà¤¸à¤‚शयाः।
कà¥à¤·à¥€à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥‡ चासà¥à¤¯ करà¥à¤®à¤¾à¤£à¤¿ तसà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¥‡ पराऽवरे।
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जब इस जीव के हृदय की अविदà¥à¤¯à¤¾ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤°à¥‚पी गांठकट (खà¥à¤²) जाती है, (तब) सब संशय छिनà¥à¤¨ होते (हो जाते हैं) और दà¥à¤·à¥à¤Ÿ (अशà¥à¤ वा पाप) करà¥à¤® कà¥à¤·à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। तà¤à¥€ उस परमातà¥à¤®à¤¾ जो कि अपने (धà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾, उपासक व योगसाधक की) आतà¥à¤®à¤¾ के à¤à¥€à¤¤à¤° और बाहर वà¥à¤¯à¤¾à¤ª रहा है, (जीवातà¥à¤®à¤¾ व योगी) उस (परमातà¥à¤®à¤¾) में (निà¤à¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित) निवास करता है। इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सतà¥à¤¯ व असतà¥à¤¯ का विवेक पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता है जो कि मृतà¥à¤¯à¥ से पार होने अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की अरà¥à¤¹à¤¤à¤¾ है। कालानà¥à¤¤à¤° में मà¥à¥ƒà¤¤à¥à¤¯à¥ आने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® व मरण के, करà¥à¤®-फल-à¤à¥‹à¤— के, चकà¥à¤° से 43 नील वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के लिठमà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है।
आजकल मनà¥à¤·à¥à¤¯ जिस पà¥à¤°à¤•ार अरà¥à¤¥ वा धन तथा सà¥à¤–-सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं रूपी à¤à¥‹à¤—ों का जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ कर रहा है उससे वह करà¥à¤®-फल बनà¥à¤§à¤¨ में फंसता जाता है जिससे मृतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ उसकी उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ होने के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर अवनति होती है। किस पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के मनà¥à¤·à¥à¤¯ का अगला जनà¥à¤® किस-किस पशà¥-पकà¥à¤·à¥€ आदि निमà¥à¤¨ योनी में हो सकता सकता है इसका अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ à¤à¤µ दरà¥à¤¶à¤¨ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ सहित महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के साहितà¥à¤¯ को पढ़कर लगाया जा सकता है। इस लेख को लिखने का हमारा पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ पाठकों का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ वेदों की बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं की ओर आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करना है जिससे वह अà¤à¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ व निःशà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सके। आशा है कि यह लेख सामानà¥à¤¯ पाठको के लिठउपयोगी होगा। यह à¤à¥€ कहना है कि लेखक à¤à¤• साधारण वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ है जिसने यह लेख अपने सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ व उससे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किेंचित विवेक के आधार पर लिखा है। इस विषय में पाठक महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ व वेदादि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ कर लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ हो सकते हैं। इति
ALL COMMENTS (0)