ईशà¥à¤µà¤°, वेद और विजà¥à¤žà¤¾à¤¨

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Manmohan Kumar AryaDate
27-Mar-2016Category
विविधLanguage
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28-Mar-2016Download PDF
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आज का यà¥à¤— विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का यà¥à¤— है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विशिषà¥à¤Ÿ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को कहते हैं। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की वह विधा है जिसमें हम सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ व विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ नियमों को जानकर व उनका उपयेाग करके अपनी आवशà¥à¤¯à¤•ता के नाना पà¥à¤°à¤•ार के पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करते हैं। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के नियमों की बात करें तो पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के सामानà¥à¤¯ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ सहित उषà¥à¤®à¤¾, पà¥à¤°à¤•ाश, गति, चà¥à¤®à¥à¤¬à¤•तà¥à¤µ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित पदारà¥à¤¥ का सरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿à¤¸à¥‚कà¥à¤·à¥à¤® अंश परमाणॠव इससे जà¥à¤¡à¥‡à¤¼ अनेकानेक नियम व इनके उपयोग इसमें आ जाते हैं। आज विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सहायता से ही हमारे वसà¥à¤¤à¥à¤° बनते हैं, à¤à¥‹à¤œà¤¨ के अनेक पदारà¥à¤¥ बनते हैं और उपयोग की वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ जिसमें टीवी, कमà¥à¤ªà¤¯à¥‚टर, रेल, वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨, कार, सà¥à¤•ूटर, कागज, पेन, पेंसिल व पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ें आदि आती हैं, सब विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से किसी न किसी रूप में जà¥à¤¡à¤¼à¥€ हà¥à¤ˆ हैं। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨, पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के समानà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के बिना उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नहीं हो सकता। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ बिना à¤à¤¾à¤·à¤¾ के उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नहीं होता और आदि à¤à¤¾à¤·à¤¾, जो कि संसार में à¤à¤•मातà¥à¤° संसà¥à¤•ृत है, बिना ईशà¥à¤µà¤° के पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ वा उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नहीं की जा सकती। जिस पà¥à¤°à¤•ार से यह समगà¥à¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ अपौरूषेय है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¥‚षों से बनने योगà¥à¤¯ नहीं है, अतः इसको उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने वाली अवशà¥à¤¯ ही à¤à¤• अपौरà¥à¤·à¥‡à¤¯ सतà¥à¤¤à¤¾ सिदà¥à¤§ होती है। इसी पà¥à¤°à¤•ार परसà¥à¤ªà¤° संवाद व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आदान पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ जो सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आदि में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है, वह à¤à¥€ अपौरà¥à¤·à¥‡à¤¯ रचना ही होती है जिसका आदि मूल सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की à¤à¤¾à¤‚ति ही परमेशà¥à¤µà¤° है।
विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का आरमà¥à¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के बाद हà¥à¤† है। à¤à¤¸à¤¾ नहीं है कि विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ दोनों के लिठआधारà¤à¥‚त साधन à¤à¤¾à¤·à¤¾ ही होती है। à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होगा तो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विकसित व उनà¥à¤¨à¤¤ हो सकता है और यदि à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न हो तो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की खोज व उसको उनà¥à¤¨à¤¤ नहीं किया जा सकता। à¤à¤• पà¥à¤°à¤•ार से विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में ही समाहित होता है जिसे चिनà¥à¤¤à¤¨, मनन व पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—ों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ खोजना पड़ता है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का मनà¥à¤¥à¤¨ कर ही विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया जाता है। संसार में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कहां से आया? इसे जानने के लिठपहले संसार को जानना होगा। इसका उतà¥à¤¤à¤° वेद और वैदिक साहितà¥à¤¯ में मिलता है। यह संसार सतà¥, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली सूकà¥à¤·à¥à¤® पà¥à¤°à¤•ृति से घनीà¤à¥‚त होकर बना है। इस तथà¥à¤¯ का हमारे दरà¥à¤¶à¤¨ के ऋषियों व आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने अपनी साधना व तपसà¥à¤¯à¤¾ से साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार किया है और उसका अपने गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में वरà¥à¤£à¤¨ किया है। इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाने वाली सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, सरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿à¤¸à¥‚कà¥à¤·à¥à¤® वा सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤¯à¤¾à¤®à¥€ à¤à¤• सतà¥à¤¤à¤¾ है जिसे ईशà¥à¤µà¤° कहते है। यदि पà¥à¤°à¤•ृति से à¤à¥€ सूकà¥à¤·à¥à¤® सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• ईशà¥à¤µà¤° ने पà¥à¤°à¤•ृति के सूकà¥à¤·à¥à¤® कणों को अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° घनीà¤à¥‚त कर यह दृशà¥à¤¯ व सà¥à¤¥à¥‚ल जगत न बनाया होता तो फिर विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ कà¥à¤¯à¤¾ है व यह कैसे उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†, जैसे पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ ही न होता। ईशà¥à¤µà¤°, जीव व पà¥à¤°à¤•ृति अनादि, अनà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨, अनादि, नितà¥à¤¯, सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚ सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं। ईशà¥à¤µà¤° जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को उनके पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® व पूरà¥à¤µ कलà¥à¤ª के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फलों को देने के लिठही इस संसार की रचना व पालन करता है। इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को देखकर पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ होता है कि ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤®à¤¯ है। यदि à¤à¤¸à¤¾ न होता तो यह संसार बन ही नहीं सकता था। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के नियमों पर आधारित व निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ यह संसार हम सà¤à¥€ को पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· है, अतः ईशà¥à¤µà¤° का सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž वा सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤®à¤¯ होना सिदà¥à¤§ है। इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाने के कारण व इसमें सà¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का उपयोग व समावेश होने के कारण ईशà¥à¤µà¤° संसार का पà¥à¤°à¤¥à¤® व पà¥à¤°à¤®à¥à¤– जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ शीरà¥à¤·à¤¤à¤® वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• है। वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ और सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के नियमों का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार कर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ का पà¥à¤°à¤¥à¤® नियम बनाया कि ‘सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾ और जो पदारà¥à¤¥ विदà¥à¤¯à¤¾ से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेशà¥à¤µà¤° है।’ यह नियम निरà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¦ रूप से सतà¥à¤¯ है, अतः यह सिदà¥à¤§ है कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का दाता व निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° ही है। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ नियमों की खोज करते हैं जिनका पà¥à¤°à¤•ाश व पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ करते समय ईशà¥à¤µà¤° ने किया है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ इन नियमों की खोज कर ही हमारे वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• उनसे अनà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ करने के उपाय ढूंढते हैं। अतः यह पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ होता है जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का आधार व मूल à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° ततà¥à¤µ व सतà¥à¤¤à¤¾ है।
वेद कà¥à¤¯à¤¾ है? यह जानना à¤à¥€ उपयोगी व आवशà¥à¤¯à¤• है। वेद ईशà¥à¤µà¤° का निजी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जिसे वह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में आदि चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ व अंगिरा को संसार के हितारà¥à¤¥ देता है। इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पाकर यह ऋषि अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ वा सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥‚षों में इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करते हैं जिससे संसार की पहली पीढ़ी के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से परिचित व अà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž होते हैं। वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ व इससे जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•ार में दिया है। विजà¥à¤ž पाठकों को इस पूरे पà¥à¤°à¤•रण को वहीं देखना चाहिये। वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को ईशà¥à¤µà¤° की अनेक देनों में से à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ी देन है। यदि ईशà¥à¤µà¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की आदि में वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न देता तो यह सिदà¥à¤§ तथà¥à¤¯ है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करके à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ नहीं कर सकते थे और न हि अपने जीवन का सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° कर सकते थे। अतः जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ तथा मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन की रकà¥à¤·à¤¾ व उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का आधार à¤à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ व उसके बाद à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° ही सिदà¥à¤§ होता है। यहां यह à¤à¥€ उलà¥à¤²à¥‡à¤– कर दें कि हमारा शरीर व इसकी शà¥à¤µà¤¸à¤¨ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ व सà¤à¥€ अंग व उपांग हमें ईशà¥à¤µà¤° से ही मिले हैं। आधà¥à¤¨à¤¿à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व दमà¥à¤à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने नासà¥à¤¤à¤¿à¤•ता की बातें फैला कर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को ईशà¥à¤µà¤° की सतà¥à¤¯ व यथारà¥à¤¥ सतà¥à¤¤à¤¾ से दूर किया है। यह धà¥à¤°à¥à¤µ सतà¥à¤¯ है कि ईशà¥à¤µà¤° व वेद मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन के मà¥à¤–à¥à¤¯ आधार हैं जिनकी अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ व निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ होना असमà¥à¤à¤µ था।
हमने लेख में ईशà¥à¤µà¤°, वेद व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की चरà¥à¤šà¤¾ की है। अब वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों के बारे में à¤à¥€ कà¥à¤› विचार करते हैं। हमारी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• वह है जो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की किसी à¤à¤•ाधिक शाखा का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर उस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ करता है और अधीत जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर कà¥à¤› नये पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—ों, अनà¥à¤¸à¤‚धान व मनन करके उस विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की शाखा में नूतन आविषà¥à¤•ार करने सहित विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में कà¥à¤› नया जोड़ता व संशोधन करता है। इस आधार पर वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¸à¥‡à¤µà¥€ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤§à¤°à¥à¤®à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को कह सकते हैं। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ में उसकी यह रूचि व पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤•ूली शिकà¥à¤·à¤¾ व मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ व परिवार जनों की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ सहित इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में रोजगार की अचà¥à¤›à¥€ समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के कारण à¤à¥€ हà¥à¤† करती है। जो à¤à¥€ हो, वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• देश, विशà¥à¤µ व मानव जाति के लिठà¤à¤¸à¥‡ कारà¥à¤¯ करते हैं जिनका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का विकास कर लोगों को उनके दैननà¥à¤¦à¤¿à¤¨ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में सहयोग व सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करना होता है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की इसी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ व पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ से आज संसार जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की खोज के शिखर पर है। यह अलग बात है कि आज à¤à¥€ संसार के पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ मतों के धारà¥à¤®à¤¿à¤• लोग अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ मधà¥à¤¯à¤•ालीन बातों पर ही टिके हà¥à¤ हैं और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• बातों से कोई शिकà¥à¤·à¤¾, पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ व लाठउठाना नहीं चाहते। जहां तक ईशà¥à¤µà¤° और वेद की बात है यह अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व अनà¥à¤¸à¤‚धान के पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• हैं। वेद वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित सदगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ व अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ को अपना नितà¥à¤¯ दैनिक करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ मानते हैं। सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ रूप में वेद यह à¤à¥€ सà¥à¤µà¥€à¤•ार करता है कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ को दà¥à¤ƒà¤–ों से मà¥à¤•à¥à¤¤ करते हैं। यही कारण है कि वैदिक धरà¥à¤® में आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित अपरा अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का सनà¥à¤¤à¥à¤²à¤¿à¤¤ समावेश आदि काल से ही रहा है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में हमारे देश में विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित सà¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पूरà¥à¤£ विकसित थी। लाखों व करोड़ों वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के काल की दूरी ने इनके विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से हमें वंचित कर दिया है। यह समà¥à¤à¤µ है कि आज जो जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤—ति है, वह आने वाले 5 या 7 हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ बाद किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ कारणों से उपलबà¥à¤§ न हो। हो सकता है कि यà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚, महायà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚ व फिर à¤à¥Œà¤—ोलिक परिवरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ व आपदाओं से यह आंशिक व पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ असà¥à¤¤-वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ व नषà¥à¤Ÿ हो जायें। निषà¥à¤•रà¥à¤·à¤¤à¤ƒ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के ही सूकà¥à¤·à¥à¤®à¤¤à¤¾ से अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ की à¤à¤• कà¥à¤›-कà¥à¤› à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ शैली है और इसका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने वाले वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• कहलाते हैं। ईशà¥à¤µà¤° का सà¥à¤µà¤°à¥‚प, उसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व उपासना तथा ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेद किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार से विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के विरोधी नहीं अपितॠसहयोगी व पोषक हैं। हम जितना जितना विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ में आगे बढ़ेगें उतना-उतना हम उस विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤•रà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° के समीप पहà¥à¤‚चेंगे। हमें पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करना चाहिये कि हमारा धरà¥à¤® व सà¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के पोषक हों। जो न हो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विचार कर जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनà¥à¤•ूल कर देना चाहिये। à¤à¤¸à¤¾ होना आज के समय में आवशà¥à¤¯à¤• है। हमारा अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि जो धरà¥à¤® व मत विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की उपेकà¥à¤·à¤¾ करेगा वह आने वाले समय में टिक नहीं सकेगा। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का पूरक शà¥à¤¦à¥à¤§ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® केवल वेद, उपनिषदों व दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ में ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।
हमारा इस लेख को लिखने का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ ईशà¥à¤µà¤°, वेद व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ को à¤à¤• दूसरे का पूरक व अविरोधी बताना था जो कि वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ है। इसी के साथ लेख को विराम देते हैं।
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