‘सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का रचयिता ईशà¥à¤µà¤° ही है’

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Manmohan Kumar AryaDate
16-Apr-2016Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
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UmeshUpload Date
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हम मनà¥à¤·à¥à¤¯ हैं और पृथिवी पर जनà¥à¤®à¥‡à¤‚ हैं। पृथिवी माता के समान अनà¥à¤¨, फल, गोदà¥à¤—à¥à¤§ आदि पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से हमारा पोषण व रकà¥à¤·à¤£ करती है। हमारे शरीर में दो आंखे बनाई गईं हैं जिनसे हम संसार की वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को देखते वा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अनà¥à¤à¤µ करते हैं। हम पृथिवी व उसकी सतह के ऊपर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ वायà¥, जल, à¤à¥‚मि, आकाश, अगà¥à¤¨à¤¿ आदि पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ देखते वा उनका अनà¥à¤à¤µ तो करते ही हैं, अपनी इन दो छोटी सी आंखों से लाखों किमी. दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ चनà¥à¤¦à¥à¤°, सूरà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ लोक लोकानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को à¤à¥€ देखते व अनà¥à¤à¤µ करते हैं तथा उपलबà¥à¤§ साहितà¥à¤¯ को पढ़कर उनकी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿-सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ व असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ à¤à¥€ लगाते हैं। यह समसà¥à¤¤ रचना सृषà¥à¤Ÿà¤¿ या बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ कहलाती है। पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है कि इसका बनाने वाला कौन है? इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ में यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ है कि कà¥à¤¯à¤¾ यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ सदा से ही बनी हà¥à¤ˆ है या फिर अपने आप बनी है? यदि इन तीनों पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ पर विचार किया जाये तो हमें लगता है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना का रहसà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हो सकता है। उपलबà¥à¤§ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ पर विचार करने और पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का सही उतà¥à¤¤à¤° खोजने में सहायक हो सकता है।
पà¥à¤°à¤¥à¤® तो यह विचार करना उचित है कि कà¥à¤¯à¤¾ यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ सदा से बनी चली आ रही है? इसका अरà¥à¤¥ यह है कि इसका कà¤à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ नहीं हà¥à¤† है। यह दरà¥à¤¶à¤¨ का तरà¥à¤• संगत सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है कि जो चीज बनती है उसका आदि अवशà¥à¤¯ होता है और सà¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ वा पदारà¥à¤¥ जो आदि व उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤§à¤°à¥à¤®à¤¾ होते हैं उनका अनà¥à¤¤ व विनाश à¤à¥€ अवशà¥à¤¯ होता है। विचार करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ सदा अथवा अननà¥à¤¤à¤•ाल से बनी हà¥à¤ˆ नहीं है। इसका कारण हमें यह लगता है कि जब हम किसी ठोस व दà¥à¤°à¤µ पदारà¥à¤¥ के टà¥à¤•ड़े करते हैं तो वह छोटा होता जाता है। à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¤¸à¥€ आती है कि वह छोटे-छोटे कणों के रूप में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ हो जाता है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ ने इसका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ किया तो पाया कि सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ अणà¥à¤¸à¤®à¥‚हों का संगà¥à¤°à¤¹ हंै। यह अणॠपरमाणà¥à¤“ं से मिलकर बने हैं। परमाणॠकी संरचना को à¤à¥€ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ ने जाना है। किसी à¤à¥€ ततà¥à¤µ के परमाणॠऊरà¥à¤œà¤¾ कणों, धन आवेश, ऋण आवेश व आवेश रहित कणों से मिलकर बनते हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¥‹à¤¨, इलेकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‹à¤¨ व नà¥à¤¯à¥‚टà¥à¤°à¥‹à¤¨ कहा जाता है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• परमाणॠकी à¤à¤• नाà¤à¤¿ व केनà¥à¤¦à¥à¤° होता है जिसमें पà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¥‹à¤¨ व नà¥à¤¯à¥‚टà¥à¤°à¥‹à¤¨, विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ में, अलग-अलग संखà¥à¤¯à¤¾ में होते हैं। इलेकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‹à¤¨ इस नाà¤à¤¿ के चारों ओर घूमते रहते हैं जैसा कि पृथिवी सूरà¥à¤¯ की और चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ पृथिवी की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ कर रहा है। यह à¤à¤• परमाणॠकी रचना विषयक सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के संयोजकता के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ से इन परमाणà¥à¤“ं के परसà¥à¤ªà¤° मिलने वा रासायनिक कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं के होने से अणॠबनते हैं। इन विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार के ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ के परमाणà¥à¤“ं व अणà¥à¤“ं का समूह ही ततà¥à¤µ, वसà¥à¤¤à¥ वा पदारà¥à¤¥ होता है। यह पदारà¥à¤¥ तीन अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में हो सकते हैं ठोस, दà¥à¤°à¤µ व गैस। अगà¥à¤¨à¤¿, जल, वायॠव पृथिवी आदि पदारà¥à¤¥ इसी पà¥à¤°à¤•ार से अणà¥à¤“ं का समूह हैं। परमाणॠसे अणॠऔर अणॠके विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ होने से परमाणॠबनते हैं। अतः किसी à¤à¥€ पदारà¥à¤¥ का अणॠअनादि काल व सदा से रहने वाला पदारà¥à¤¥ नहीं है, यह परमाणà¥à¤“ं के संयोग से बना है। परमाणॠà¤à¥€ विà¤à¤¾à¤œà¥à¤¯ है। अणॠबम, परमाणॠव हाइडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨ बम आदि सब à¤à¤• पà¥à¤°à¤•ार से परमाणॠमें विघटन व परमाणॠके नषà¥à¤Ÿ होने से ही होते हैं। इससे यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि परमाणॠà¤à¥€ सदा से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ न होकर सà¥à¤¦à¥€à¤°à¥à¤˜à¤•ाल पूरà¥à¤µ बनाया गया पदारà¥à¤¥ है। इससे यह सिदà¥à¤§ होता है कि परमाणॠकी उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का मूल कारण ऊरà¥à¤œà¤¾ है जो परमाणॠके विघटन वा नषà¥à¤Ÿ होने से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होती है। दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ में समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ इसी को सतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली मूल पà¥à¤°à¤•ृति कहा गया है जो नितà¥à¤¯, अनादि व अविनाशी है। अतः सिदà¥à¤§ है कि यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ वा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ सदा से बना हà¥à¤† नहीं है।
अब इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पर विचार करते हैं कि कà¥à¤¯à¤¾ यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ अपने आप बिना किसी चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ की सहायता के बन सकती है। पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है कि मूल पà¥à¤°à¤•ृति जो सतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ की सामà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है, उससे परमाणॠव अणॠजो वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ संसार में हैं, उनकी रचना वा बनना समà¥à¤à¤µ नहीं है। à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ के परमाणॠअपने आप बन ही नहीं सकते और यदि इस असमà¥à¤à¤µ कारà¥à¤¯ का होना मान à¤à¥€ लिया जाये तो उनका वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में जो अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤ है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ हाईडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨, आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨, नाईटà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨ आदि 100 से अधिक ततà¥à¤µ हैं, तो वह à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤ में तो कदापि नहीं बन सकते। अब फिर मान लीजिठकि यह असमà¥à¤à¤µ कारà¥à¤¯ à¤à¥€ हो गया तो इसके बाद समसà¥à¤¯à¤¾ इन पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से सूरà¥à¤¯, चनà¥à¤¦à¥à¤° व पृथिवी आदि अनेक लोक लोकानà¥à¤¤à¤° बनाने व उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी अपनी ककà¥à¤·à¤¾à¤“ं में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने की है। यह सà¤à¥€ परमाणॠवा अणॠअपने आप à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤ वा परिमाण में बन कर व घनीà¤à¥‚त होकर सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ अपनी-अपनी ककà¥à¤·à¤¾à¤“ं में कदापि सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ नहीं हो सकते। यह सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ असमà¥à¤à¤µ है। हमारे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ में सूरà¥à¤¯, चनà¥à¤¦à¥à¤° व पृथिवी तथा अनà¥à¤¯ सोम, मंगल, बà¥à¤¦à¥à¤§, बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿, शà¥à¤•à¥à¤° व शनि आदि गà¥à¤°à¤¹ व इन सबके उपगà¥à¤°à¤¹ आदि ही नहीं हैं अपितॠà¤à¤¸à¥‡ असंखà¥à¤¯ वा अननà¥à¤¤ लोक लोकानà¥à¤¤à¤° हैं। अतः यह सिदà¥à¤§ है कि यह सब अपने आप बनकर अपनी अपनी ककà¥à¤·à¤¾à¤“ं में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ नहीं हो सकते। यह होना असमà¥à¤à¤µ है और à¤à¤¸à¤¾ मानने वाले जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ नहीं अपितॠअजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ कहलायेंगे। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• वही कहला सकता है जो कà¤à¥€ इस असमà¥à¤à¤µ तथà¥à¤¯ को सà¥à¤µà¥€à¤•ार न करे, यदि करता है तो वह पूरà¥à¤£ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• नहीं। खेद व दà¥à¤ƒà¤– की बात है कि वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों ने अपनी à¤à¤• पूरà¥à¤µ धारणा बना रखी है कि ईशà¥à¤µà¤° के समान कोई निराकार, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली सतà¥à¤¤à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में हो ही नहीं सकती। यह हमारे वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों का मिथà¥à¤¯à¤¾ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही कह सकते हैं। रचना को देखकर रचयिता का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· होता है। जिस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤¤à¥à¤° व सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ को देखकर उसके माता-पिता के होने जà¥à¤žà¤¾à¤¨, कहीं चोरी हो जाने पर उस चोरी को अंजाम देने वाले चोर का निशà¥à¤šà¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है अथवा नदी में अचानक जलसà¥à¤¤à¤° वृदà¥à¤§à¤¿ हो जाने पर कहीं दूर तेज व à¤à¤¾à¤°à¥€ वरà¥à¤·à¤¾ होने का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है, इसी पà¥à¤°à¤•ार से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ आदि रचना विशेष कारà¥à¤¯ को देखकर सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•रà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· होता है। वैदिक धरà¥à¤®à¥€ à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हैं कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प का सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ काल 1.96 अरब वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेदों से हà¥à¤† था। हम संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में यह à¤à¥€ कहना चाहते हैं कि जिस पà¥à¤°à¤•ार रसोई घर में सब पà¥à¤°à¤•ार का खादà¥à¤¯ सामान होने पर à¤à¥€ घर के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की आवशà¥à¤¯à¤•ता के अनà¥à¤°à¥‚प à¤à¥‹à¤œà¤¨ सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ तैयार नहीं हो सकता, इसी पà¥à¤°à¤•ार से कारण पà¥à¤°à¤•ृति के होने पर à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के बनाये बिना, इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ अपने आप कदापि नहीं हो सकता।
अब यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो जाने पर कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ सदा से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ नहीं है और यह अपने आप निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ नहीं हो सकती है, अनà¥à¤¤à¤¿à¤® समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ à¤à¤•मातà¥à¤° यही है कि इसको किसी सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž à¤à¤µà¤‚ सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ ने बनाया है। वह सतà¥à¤¤à¤¾ कौन, कैसी व कहां है? इसका उतà¥à¤¤à¤° है कि वह सतà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° है और उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना और इसका संचालन व पà¥à¤°à¤²à¤¯ करना à¤à¥€ समà¥à¤à¤µ है। वेदों, उपनिषदों व दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ आदि अनेक पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में उसका सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ वरà¥à¤£à¤¨ है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने अपने समसà¥à¤¤ वैदिक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर कहा है कि ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, निराकार, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•ारी, दयालà¥, अजनà¥à¤®à¤¾, निरà¥à¤µà¤¿à¤•ार, अनादि, अनà¥à¤ªà¤®, सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¾à¤°, सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€, अजर, अमर, अà¤à¤¯, नितà¥à¤¯, पवितà¥à¤° और सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•रà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ है। ईशà¥à¤µà¤° को पवितà¥à¤° कहने का अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ है कि उसके गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ पवितà¥à¤° हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•रà¥à¤¤à¤¾ शबà¥à¤¦ में ईशà¥à¤µà¤° का सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का रचयिता वा करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ होना, उसका धारण करना वा धरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ होना तथा सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की पà¥à¤°à¤²à¤¯ करना व उसका हरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ होना à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं। इसके साथ ही ईशà¥à¤µà¤° जीवों को करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° सतà¥à¤¯ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से फलदाता आदि लकà¥à¤·à¤£à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ है। यह उस ईशà¥à¤µà¤° का सà¥à¤µà¤°à¥‚प है जिससे यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है। अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है कि यदि ईशà¥à¤µà¤° है तो वह आंखों व वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• उपकरणों से दिखाई कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं देता? इसका उतà¥à¤¤à¤° है कि ईशà¥à¤µà¤° सूकà¥à¤·à¥à¤® से à¤à¥€ सूकà¥à¤·à¥à¤® अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿à¤¸à¥‚कà¥à¤·à¥à¤® है। हम आंखों से वायॠको नहीं देख पाते, बहà¥à¤¤ दूर और बहà¥à¤¤ पास की वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को à¤à¥€ नहीं देख पाते तो फिर ईशà¥à¤µà¤° पर ही आंखों से दिखाई देने की धारणा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बनाई है। वायà¥, अति दूर व अति पास की वसà¥à¤¤à¥à¤“ं तथा आंखों से न दिखने वाली अनेकानेक सूकà¥à¤·à¥à¤® वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को जब हम मानते व सà¥à¤µà¥€à¤•ार करते हैं तो ईशà¥à¤µà¤° को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं? अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है कि कà¥à¤¯à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° को जाना व अनà¥à¤à¤µ नहीं किया जा सकता? ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तो वेद, वैदिक साहितà¥à¤¯ व विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के लेखों से हो जाता है परनà¥à¤¤à¥ यदि किसी को उसका साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ अनà¥à¤à¤µ करना ही है तो उसे योग विधि से उपासना करनी होगी। अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚ग योग विधि का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करने से समाधि की अवसà¥à¤¥à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है जिसमें ईशà¥à¤µà¤° साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। समाधि में ईशà¥à¤µà¤° साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार से सà¤à¥€ संà¤à¤¯ व à¤à¥à¤°à¤® दूर हो जाते हैं। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सहित हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सà¤à¥€ ऋषि और आजकल à¤à¥€ दीरà¥à¤˜à¤•ाल तक योग साधना करने वाले साधको को ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार व पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता आया है। हम अनà¥à¤à¤µ करते हैं कि हमारे वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों को वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर, à¤à¤²à¥‡ ही वह वेदों के अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ आदि à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ को पढ़े, कà¥à¤› घणà¥à¤Ÿà¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ योगाà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¥€ करना चाहिये। इससे उनकी आतà¥à¤®à¤¾ के मल आदि दोष निवृतà¥à¤¤ होकर कालानà¥à¤¤à¤° में ईशà¥à¤µà¤° साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार हो सकता है। यदि साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार न à¤à¥€ हà¥à¤† तो कà¥à¤› अनà¥à¤à¥‚तियां तो अवशà¥à¤¯ होंगी जिससे उनकी ईशà¥à¤µà¤° न होने की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ समापà¥à¤¤ हो सकती है। सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है कि ईशà¥à¤µà¤° सदा-सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ सबको पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है किनà¥à¤¤à¥ सदोष अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•रण में उसी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤à¥€ नहीं होती। अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•रण को निरà¥à¤¦à¥‹à¤·, शà¥à¤¦à¥à¤§ व पवितà¥à¤° बनाने से सà¥à¤µà¤šà¥à¤› दरà¥à¤ªà¤£ के समाने ईशà¥à¤µà¤° का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· किया जा सकता है।
इस लेख में हमने यह बताने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में à¤à¤• ईशà¥à¤µà¤° है और उसी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यह समसà¥à¤¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ वा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आया है। हम आशा करते हैं कि पाठक इस लेख के विचारों को उयोगी पायेंगे और इससे लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ होंगे।
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