सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का आरमà¥à¤ और कृषि विजà¥à¤žà¤¾à¤¨â€™

Author
Manmohan Kumar AryaDate
11-May-2016Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
HindiTotal Views
1377Total Comments
0Uploader
UmeshUpload Date
11-May-2016Download PDF
-0 MBTop Articles in this Category
- कया आपको याद है?
- सनामी राहत कारय 2004
- स�वामी श�रद�धानंद जी का महान जीवन कथन
- सवामी दरशनाननद जी महाराज
- सवामी शरदधाननद जी का हिंदी परेम
Top Articles by this Author
- ईशवर
- बौदध-जैनमत, सवामी शंकराचारय और महरषि दयाननद के कारय
- अजञान मिशरित धारमिक मानयता
- ईशवर व ऋषियों के परतिनिधि व योगयतम उततराधिकारी महरषि दयाननद सरसवती
- यदि आरय समाज सथापित न होता तो कया होता ?
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ परसà¥à¤ªà¤° पूरक शबà¥à¤¦ हैं। वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का साधारण जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सामानà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त आता है और उनका विशेष जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ कहलता है। कृषि का तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के आहार के पदारà¥à¤¥à¥‹ यथा फल, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ व अनà¥à¤¨ आदि का अचà¥à¤›à¤¾ व गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤šà¥à¤° मातà¥à¤°à¤¾ में उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ करने को कह सकते हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ मे जब पà¥à¤°à¤¥à¤® मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ व पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का जनà¥à¤® हà¥à¤† होगा तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शà¥à¤µà¤¾à¤‚स के लिठवायà¥, पिपासा की शानà¥à¤¤à¤¿ के लिठशà¥à¤¦à¥à¤§ जल व कà¥à¤·à¥à¤§à¤¾ निवृतà¥à¤¤à¤¿ के लिठà¤à¥‹à¤œà¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•ता पड़ी होगी। हम वेदादि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से यह समठपायें हैं कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ थे। इसका कारण यह है कि यदि वह बचà¥à¤šà¥‡ होते तो उनका पालन-पोषण करने के लिठमाता-पिता की आवशà¥à¤¯à¤•ता होती जो कि आरमà¥à¤ में नहीं थी और यदि वह वृदà¥à¤§ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते तो उनसे सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ आदि के न होने से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का कà¥à¤°à¤® आगे नहीं चल सकता था। अतः यह मानना होगा और यही सतà¥à¤¯ है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ क आरमà¥à¤ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में पृथिवी माता के गरà¥à¤ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ थे। दूसरा पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह है कि पृथिवी की आरमà¥à¤ अवसà¥à¤¥à¤¾ कैसी थी और सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कहां उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ थी। इसका उतà¥à¤¤à¤° यह मिलता है कि मानवोतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के समय पृथिवी पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤ƒ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ होकर सामानà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में आ चà¥à¤•ी थी। इस पर वायॠसरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° बह रही थी, शà¥à¤¦à¥à¤§ जल à¤à¥€ यतà¥à¤°-ततà¥à¤° वा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨-सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर नदियों, नहरो व जल सà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥‹à¤‚ में उपलबà¥à¤§ था। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के निकट ही फलों के वृकà¥à¤· थे जिनमें नाना पà¥à¤°à¤•ार के फल लगे हà¥à¤ थे। आस पास गौवें à¤à¥€ थी जो दà¥à¤—à¥à¤§ देने वाली थी। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तिबà¥à¤¬à¤¤ वा तà¥à¤°à¤¿à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤ª के पास की समतल à¤à¥‚मि पर खादà¥à¤¯ अनà¥à¤¨ व वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ लहलहा रहीं थी। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ और अंगिरा को चार वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° से मिला। इस वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को ईशà¥à¤µà¤° ने चार ऋषियों के अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•रणों में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया। वेदों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ व वेदों के अरà¥à¤¥ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ ऋषियों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ था। हम समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि ऋषियों से इतर सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ व पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤•तानà¥à¤¸à¤¾à¤° परसà¥à¤ªà¤° वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ à¤à¤¾à¤·à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित à¤à¥‹à¤œà¤¨ आदि करने कराने का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•तà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अवशà¥à¤¯ दिया गया होगा। जिस ईशà¥à¤µà¤° ने समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ वा सृषà¥à¤Ÿà¤¿ सहित मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को बनाया वह आदिकालीन मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥‹à¤œà¤¨ व परसà¥à¤ªà¤° वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ उनके अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•रण वा आतà¥à¤®à¤¾ में न दे, à¤à¤¸à¤¾ मानना यथारà¥à¤¥ को à¤à¥à¤ लाने के समान है। यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ अवशà¥à¤¯ ही दिया गया था। इस तथà¥à¤¯ को मानने पर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आदि काल संबंधी सारी गà¥à¤¤à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¥à¤²à¤ जाती है। विधि वा कानून का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है कि वह Benefit of doubt का लाठपीडि़त वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को देता है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में जिन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° नहीं मिलते उसका लाठईशà¥à¤µà¤° विषयक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को मानकर ही करना होगा। संसार के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ वेद और वैदिक साहितà¥à¤¯ इस विषय में पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ हैं और इसका अनà¥à¤¯ कोई विकलà¥à¤ª हमारे व किसी के पास नहीं है। संशय पालने व नाना कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ करने से कोई लाठनहीं है। इस पà¥à¤°à¤•ार ईशà¥à¤µà¤° से वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨, मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° व à¤à¥‹à¤œà¤¨ आदि का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तथा सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ व उपलबà¥à¤§ à¤à¥‹à¤œà¥à¤¯ व अनà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° वा वेदों से ही मिला था जिसमें कृषि का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ है।
वेद मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अरà¥à¤¥ जानने की अपनी पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ है। इसके लिठअधà¥à¤¯à¥‡à¤¤à¤¾ को संसà¥à¤•ृत की आरà¥à¤· वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ से मनà¥à¤¤à¥à¤° का पदचà¥à¤›à¥‡à¤¦ कर उसके समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ पर विचार करना पड़ता है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में निरà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ निघणà¥à¤Ÿà¥ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं जिससे पदों के अरà¥à¤¥ व उनके निरà¥à¤µà¤šà¤¨ देख कर सारà¥à¤¥à¤• अरà¥à¤¥ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किये जाते हैं। अरà¥à¤¥ जानने के लिठबà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ की ऊहा शकà¥à¤¤à¤¿ से चिनà¥à¤¤à¤¨, मनन कर व धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अरà¥à¤¥ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करना होता है। यदि पूरà¥à¤µ ऋषियों व विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठहà¥à¤ अरà¥à¤¥ उपलबà¥à¤§ हो तो उनका à¤à¥€ सहयोग लेकर यथारà¥à¤¥ अरà¥à¤¥ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाता है। à¤à¤¸à¤¾ ही कà¥à¤›-कà¥à¤› वेदारà¥à¤¥ का पà¥à¤°à¤•ार सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ व उसके बाद रहा है। वेद के अधà¥à¤¯à¥‡à¤¤à¤¾ को यह à¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¯ करना चाहिये कि वेद ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने सहित सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है। इसमें सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कà¥à¤°à¤® वा जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विरà¥à¤¦à¥à¤§ कोई बात नहीं है। यदि कहीं à¤à¥à¤°à¤® हो तो उसे अपनी ऊहा व चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन आदि से दूर करना चाहिये। विचार व चिनà¥à¤¤à¤¨ करने पर यह तथà¥à¤¯ à¤à¥€ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° ने कà¥à¤› सौ या कà¥à¤› हजार की संखà¥à¤¯à¤¾ में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ व पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया होगा। उस ईशà¥à¤µà¤° ने चार ऋषियों को वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया तथा इन चार ने अनà¥à¤¯ ऋषि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ को इन चारों वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया। परसà¥à¤ªà¤° संवाद व संगति से पांचों ऋषि वेदों के पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ हो गये थे, यह अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ होता है। इन पांच ऋषियों ने शेष मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤•तà¥à¤° कर à¤à¤¾à¤·à¤¾ व वेदों का आवशà¥à¤¯à¤•तानà¥à¤¸à¤¾à¤° जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया होगा। इस कारà¥à¤¯ के अतिरिकà¥à¤¤ इन पांच ऋषियों के पास अनà¥à¤¯ कोई कारà¥à¤¯ करने के लिठथा ही नहीं। यह à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि यह पांचों ऋषि योगी थे। यह पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं ईशà¥à¤µà¤° का घंटों धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ व चिनà¥à¤¤à¤¨ करते थे। इस अवसà¥à¤¥à¤¾ में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ईशà¥à¤µà¤° से अपने सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ व शंकाओं के उतà¥à¤¤à¤° मिल जाते थे। इससे कृषि कारà¥à¤¯ समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करने में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ किसी विशेष समसà¥à¤¯à¤¾ से à¤à¥‚à¤à¤¨à¤¾ नहीं पड़ा होगा। आज à¤à¥€ हम यही तो करते हैं कि हमें जिस बात का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं होता उसके लिठहम अनà¥à¤¯ अनà¥à¤à¤µà¥€ व वृदà¥à¤§à¥‹à¤‚ की शरण में जाकर पूछताछ कर व निजी धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन से समसà¥à¤¯à¤¾ का हल करते हैं। इसी पà¥à¤°à¤•ार से कृषि विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विकसित हà¥à¤† और महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता गया।
आईये ! कà¥à¤› वेद पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ विचार करते हैं। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 23/46 में कहा गया है ‘à¤à¥‚मिरावपनं महत॒ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ (बीज) बोने का-कृषि का-महानॠसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥‚मि ही है। इससे हमारे पà¥à¤°à¤¥à¤® पीढ़ी के पूवरà¥à¤œà¥‹à¤‚ को यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मिल गया कि अनà¥à¤¨ आदि खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पृथिवी में बीज वपन करने होंगे। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के मनà¥à¤¤à¥à¤° 4/10 में कहा गया है ‘सà¥à¤¸à¤¸à¥à¤¯à¤¾à¤ƒ कृषीसà¥à¤•ृधि’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उतà¥à¤¤à¤® अनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ की कृषि करें à¤à¤µà¤‚ करावें। मंतà¥à¤° में सà¥à¤¸à¤¸à¥à¤¯à¤¾ कहकर खराब अनà¥à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने का निषेध किया गया है। खराब अनà¥à¤¨ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का समाज के जीवन पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ूल ही पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ पड़ता है। ‘अनà¥à¤¨à¤‚ वै पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¨à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤ƒ’ कहकर बताया गया है कि अनà¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का जीवन है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¾à¤£ है। पà¥à¤°à¤¾à¤£ ही जीवन à¤à¤µà¤‚ जीवन ही पà¥à¤°à¤¾à¤£ होता है। पà¥à¤°à¤¾à¤£ नहीं तो जीवन नहीं और जीवन नहीं तो पà¥à¤°à¤¾à¤£ नहीं। ‘अनà¥à¤¨à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¸à¥à¤¯ षडà¥à¤µà¤¿à¤‚शः’ अनà¥à¤¨ हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤£ का छबà¥à¤¬à¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤‚ à¤à¤¾à¤— बनता है, अतः यदि हम खराब-दूषित या मलिन अनà¥à¤¨ का सेवन करेंगे तो उसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ हमारे जीवन पर अनिवारà¥à¤¯ रूप से खराब ही पड़ेगा। जिस पà¥à¤°à¤•ार विषयà¥à¤•à¥à¤¤ अनà¥à¤¨ के सेवन से शरीर विषाकà¥à¤¤ हो जाता है और जीवन की हानि होती है उसी पà¥à¤°à¤•ार दूषित अनà¥à¤¨ के सेवन करने से समाज के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के शरीर à¤à¤µà¤‚ मन के संसà¥à¤•ार à¤à¥€ दूषित हो जाते हैं। बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ à¤à¥€ दूषित हो जाती है। अतः कृषि के कारà¥à¤¯ को उतà¥à¤¤à¤® रीति से à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•ारपूरà¥à¤µà¤• करना चाहिà¤à¥¤ यहां यह à¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में अधिकाधिक कृषि उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ पर ही धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया जाता है न कि अनà¥à¤¨ की गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾, पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾, शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ व विषमà¥à¤•à¥à¤¤à¤¤à¤¾ पर जिसके बà¥à¤°à¥‡ परिणाम रोगों व अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ के रूप में हमारे सामने हैं।
कृषि को अचà¥à¤›à¥€ पà¥à¤°à¤•ार करने के वेदों ने अनेक उपाय बतायें हैं वा मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ किया है। वेद के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कृषि कारà¥à¤¯ में यजà¥à¤ž का उपयोग करना चाहिये। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 18/9 में कहा है ‘कृषिशà¥à¤š मे यजà¥à¤žà¥‡à¤¨ कलà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¤à¤¾à¤®à¥’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ कृषि के लिठà¤à¥‚मि को उपयोगी बनाते समय यजà¥à¤ž का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करो। यजà¥à¤ž से à¤à¥‚मि कृषि कारà¥à¤¯ में समरà¥à¤¥ व शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ बनेगी। यजà¥à¤ž करने से à¤à¥‚मि की उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ में वृदà¥à¤§à¤¿ होगी। कृषि कारà¥à¤¯ में असमरà¥à¤¥ à¤à¥‚मि में यजà¥à¤ž करने से वह कृषि के लिठसमरà¥à¤¥ होगी और कृषि à¤à¥‚मि में यजà¥à¤ž करने से उसकी उरà¥à¤µà¤°à¤¾ शकà¥à¤¤à¤¿ में वृदà¥à¤§à¤¿ होगी। यजà¥à¤ž से à¤à¥‚मि माता कृषि के लिठसमरà¥à¤¥ बने, यह पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 18/22 मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘पृथिवी च मे यजà¥à¤žà¥‡à¤¨ कलà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¤à¤¾à¤®à¥à¥¤’ में की गई है। यजà¥à¤ž किठबिना पृथिवी को जीवन नहीं मिलेगा। यजà¥à¤ž करने से à¤à¥‚मि में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ ततà¥à¤µ à¤à¤µà¤‚ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ शकà¥à¤¤à¤¿ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते हैं। कृषि का वृषà¥à¤Ÿà¤¿ वा वरà¥à¤·à¤¾ से गहरा समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ है। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 18/9 मनà¥à¤¤à¥à¤° में कहा गया है ‘वृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤¶à¥à¤š मे यजà¥à¤žà¥‡à¤¨ कलà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¤à¤¾à¤®à¥’ कृषि के लिठवरà¥à¤·à¤¾ जल की आवशà¥à¤¯à¤•ता है वह वरà¥à¤·à¤¾ जल à¤à¥€ यजà¥à¤ž के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समरà¥à¤¥ होना चाहिये। कृषि के लिठजो जल वृषà¥à¤Ÿà¤¿ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो वह यजà¥à¤ž से सà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•ृत हो और उसी वृषà¥à¤Ÿà¤¿ जल से पूरà¥à¤£ नदी, तालाब, कूवे, बावड़ी, रूीलें à¤à¥€ हों जिससे वृकà¥à¤·, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सदा यजà¥à¤ž का जल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता रहे। पà¥à¤°à¤•ृतिसà¥à¤¥ वृकà¥à¤· व वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जो वायॠपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो वह à¤à¥€ यजà¥à¤ž दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•ृत हो। इस विषयक यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ मनà¥à¤¤à¥à¤° 18/17 ‘मरà¥à¤¤à¤¶à¥à¤š मे यजà¥à¤žà¥‡à¤¨ कलà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¤à¤¾à¤®à¥à¥¤’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ वायॠà¤à¥€ यजà¥à¤ž के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समरà¥à¤¥ हो। कृषि कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से संबंधित यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का à¤à¤• मनà¥à¤¤à¥à¤° 9/22 ‘नमो मातà¥à¤°à¥‡ पृथिवà¥à¤¯à¥ˆ नमो मातà¥à¤°à¥‡ पृथिवà¥à¤¯à¤¾ ..... कृषà¥à¤¯à¥ˆ तà¥à¤µà¤¾ कà¥à¤·à¥‡à¤®à¤¾à¤¯ तà¥à¤µà¤¾ रयà¥à¤¯à¥ˆ तà¥à¤µà¤¾ पोषाय तà¥à¤µà¤¾à¥¤à¥¤’ à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है। इसमें कहा गया है कि हे à¤à¥‚मि माता ! तà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® हो। हे à¤à¥‚मि माता ! तà¥à¤à¥‡ शतशः वनà¥à¤¦à¤¨ है। तà¥à¤à¥‡ कृषि के लिठहम सà¥à¤µà¥€à¤•ार करते हैं। तà¥à¤à¥‡ अपनी रकà¥à¤·à¤¾ के लिठगà¥à¤°à¤¹à¤£ करते हैं। तà¥à¤à¥‡ à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ के लिà¤
ALL COMMENTS (0)