137th Varshikotsav

27 Nov 2022
India
आर्य समाज जालन्धर नगर

ऐतिहासिक आर्य समाज विक्रमपुरा (किला ) जालंधर नगर माई हीरां गेट जालंधर का 137वां वार्षिकोत्सव दिव्यता एवं भव्यता के साथ सोमवार, 21 नवंबर, 2022 से रविवार, 27 नवंबर, 2022 तक संपन्न हुआ। आचार्य जयप्रकाश, हंसराज ने वेद पाठ किया। सभी श्रद्धालुओं ने चतुर्वेद सत्कम् के मंत्रों से श्रद्धा पूर्वक आहुतियां प्रदान कीं। कार्यक्रम में प्रतिदिन स्थानीय सभी गणमान्य जन एवं स्थानीय सोलह डी.ए.वी संस्थाओं के प्रतिनिधि रूप में विद्यार्थी एवं स्टाफ के सदस्य सम्मिलित होते रहें। ब्रह्म महाविद्यालय हिसार से पधारे हुए प्राचार्य डा. प्रमोद योगार्थी ने कहा ऋषि वेदव्यास अपने शिष्य को उपदेश देते हुए कहते हैं। गुह्यं ब्रह्मं तदिदं वो ब्रीवीमि, न हि मानुषात् श्रेष्ठंतरं हि किंचित अर्थात मैं तुम्हें एक गोपनीय बात बता रहा हूं कि मनुष्य के शरीर से श्रेष्ठ इस दुनिया में दूसरा कोई भौतिक पदार्थ नहीं है। बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब संतही गावा। उसकी श्रेष्ठता तब और अधिक बढ़ जाती है, जब मानव धर्म पंथ पर चलता है। क्योंकि सुखस्य मुलं धर्मः अर्थातझ् सुख का मूल धर्म है। वेद में ईश्वर में अभीष्ट और प्रीति अर्थातझ् भौतिक और अध्यात्म विद्या में समन्वय रखने का उपदेश दिया है। रिश्ते का तात्पर्य भौतिक संपदा और प्रीति का तात्पर्य अध्यात्म विद्या से है। जैसे दो पंख से पंछी आकाश में उड़ता है वैसे ही भौतिक और अध्यात्म दो साधन है, जिससे मानव आत्मा आनंद कबूल करता है। मनुष्य जिस प्रकार के संग में रहता है, वह वैसा ही बन जाता है। सुख दुःख का आधार हमारे कर्म होते हैं,और कर्मों का आधार हमारे अच्छे बुरे विचार होते हैं। व्यक्ति का अच्छा या बुरा बनने में  सत्संग का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। महाभारत में आचार्य द्रोणाचार्य महाराज युधिष्ठिर से पूछते हैं किसके साथ की गई मित्रता नष्ट नहीं होती ? तब युधिष्ठिर उत्तर देते हैं कि सतझ् पुरुषों के साथ की गई मित्रता नष्ट नहीं होती। गुणवान व्यक्ति के संग से मनुष्य का ज्ञान बढ़ता जाता है और वह बुराइयों से दूर होता जाता है। इसके विपरीत दुष्ट व्यक्तियों की संगति हमारे दुखों का कारण होता है। सांप के दांतो में विष होता है,मकड़ी के मस्तक में विष होता है,बिच्छू की पूंछ में विष होता है, और दुर्जन के सब अंगों में विष होता है। पंचतंत्र में कहा गया है, प्राणों का त्याग करना अच्छा है, परंतु दुष्टों का संग अच्छा नहीं है, जो दुष्ट के संग से दूर भागता है, वही जीवित रहता है। मनुष्य को जीवन उन्नति का सोपान चढ़ने के लिए की अच्छी संगति करनी चाहिए। समापन दिवस पूर्णाहुति पर मुख्य यज्ञमान के रूप में  आर्य समाज के प्रधान प्रि संजीव कुमार अरोड़ा एवं सुधीर शर्मा, दयानन्द मॉडल सी. सै. स्कूल, दयानन्द नगर से प्रि.एस.क¢ गौतम सपत्नीक, महत्मा हंसराज कांलेज से प्रो. मीनु तलवाड, डी. ए. वी. कॉलेज से प्रा ऋतु तलवाड़, जगमोहन भंडारी सपत्नीक। प्रिंसिपल इंद्रजीत तलवाड़ ने कहा स्वामी दयानंद जी ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। इसका मूल्य उद्देश्य सनातन संस्कृति से लोगों को परिचित करवाना था। स्वामी जी अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि पर पुरजोर जोर देते थे। इसी श्रृंखला में उनके अनुयायियों ने 1886 में लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना की 1889 में यह स्कूल दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज में परिवर्तित हो गया। आज देश में डीएवी की लगभग एक हजार संस्थाएं हैं। हजारों आर्य समाज  भी हैं। किंतु आर्य समाज विक्रमपुरा का अपना ऐतिहासिक महत्व है। स्वामी दयानंद जी 1877 में इस समाज में आए थे। यहां राजा विक्रम सिंह के सामने उन्होंने अपना ब्रह्मचर्य बल का प्रदर्शन किया था। वह यही जगह है। हम सब ऋषि दयानंद के बताए हुए मार्ग पर चल मैं आप सब से आग्रह करता हूँ। प्रिंसिपल रवीन्द्र कुमार शर्मा संयुक्त मंत्री कोषाध्यक्ष आर्य समाज विक्रमपुरा ने कहा कि आपके आने से हमारा उत्साह बढ़ता है। आप सुविचार सुनते हैं और आध्यात्मिक की ओर बढ़ते हैं। ईश्वर ने हम सबको इस कार्य क¢ लिए निमित्त बनाया है। मैं परमेश्वर का और आप सब का आभार व्यक्त करता हूँ। प्रिंसिपल संजीव कुमार अरोड़ा, प्रधान आर्य समाज विक्रमपुरा ने आचार्य डा. प्रमोद योगार्थी सहित आए हुए सभी डीएवी संस्थाओं आर्य समाज में आए हुए महानुभाव, विद्यार्थी एवं स्टाफ के सदस्य गणमान्य सज्जनों सहित सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें शुभ कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि वेद का भी यही उपदेष है शुभ कर्म में लिप्त न होकर मोक्ष मार्ग का अनुगामी होना चाहिए। 

 

 

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