: Dead
: 03-11-1848
: Shahpur Madarak, Aligarh, Uttar Pradesh
: 13-02-1939

Father :

Lala Phundan Lal

अथरववेद भाषयकार पं. कषेमकरणदास तरिवेदी का जनम कारतिक शकला 7 सं. वि. 1905 वि. (3 नवमबर 1848) को अलीगढ़ जिले के शाहपर माडराक नामक गराम के क कायसथ परिवार में लाला फनदनलाल के यहा हआ। 1871 में इनहोंने कलकतता विशवविदयालय से नटरेस की परीकषा पास की। 1876 में इनहोंने मरादाबाद में सवामी दयाननद के वयाखयान सने और उनहीं से यजञोपवीत किया। 1879 में मरादाबाद में जब आरयसमाज की सथापना हई तो ये उसके मंतरी चने गये। जीविका हेत उनहोंने जोधपर बीकानेर रेलवे में नौकरी की और 1907 में वहा से अवकाश लिया। महातमा मनशीराम की परेरणा से कषेमकरणदास ने संसकृत का अधययन किया और वेद का विशेष अनशीलन बड़ौदा में रहकर किया। यहा से सामवेद का अधययन किया और पनः गरकल कांगड़ी में आकर गरवर काशीनाथजी तथा पं. शिवशंकर शरमा से वेदों का विधिवत अधययन किया। 1968 वि. में ये फिर बड़ौदा गये और ऋगवेद तथा अथरववेद की परीकषायें उततीरण की। सामवेद की परीकषा पहले ही दे चके थे। इस परकार तीन वेदों की परीकषाओं में उततीरण होने के कारण वे ‘तरिवेदी’ उपाधि के अधिकारी हये। ततपशचात उनहोंने अथरववेद का भाषय लिखा और वरषों की साधना के पशचात इसे पूरा किया। 13 फरवरी 1939 को 90 वरष की आय में इनका निधन हआ। 
 
 
ले. का.-1. शरी रदराधयाय-यजरवेद के 16वें अधयाय की वयाखया (1963 वि. 1906), इसमें समपूरण अधयाय का भावारथ संसकृत, हिनदी तथा अंगरेजी में दिया गया है। 2. हवन मनतर-सवामी दयाननद दवारा निरधारित ईशवर सतति-परारथनोपासना, सवसतिवाचन तथा शानतिकरण के मनतरों की वयाखया (1968 वि. 1912), 3. अथरववेद भाषय-यह तरिवेदीजी का अतयनत महततवपूरण साहितयिक कारय था। भाषय लेखन 1968 वि. (1912) में, परारमभ होकर 1978 वि. (1921) में समापत हआ। 4. अथरववेद भाषय-का दवितीय संसकरण सारवदेशिक आरयपरतिनिधि सभा दिलली ने 2030 वि. में तथा तृतीय संसकरण डा. परजञादेवी ने समपादित कर परकाशित किया।  5. गोपथ बराहमण भाषय-अथरववेद के गोपथ बराहमण का भाषय 1881 वि. (1924) में परकाशित हआ। डा. परजञादेवी व उनकी अनजा सशरी मेधादेवी ने इसे समपादित कर 2034 वि. (1977) में पनः परकाशित हआ। 6. अथरववेद संहिताया पदानां वरणानकरम सूचीपतरम 1921 (1978 वि.), 7. वेद विदयायें-गरकल विशवविदयालय कांगड़ी में पठित निबंध (1971 वि., 1914), 8. विधवा मंगल (उरदू)। 
 
 
वि. प.-पं. कषेमकरणदास का जीवन चरितः सशीला देवी जौहरी।