कà¥à¤¯à¤¾ मन की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ से लोक-कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ होता है ?
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Naveen AryaDate
24-Aug-2018Category
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RajeevUpload Date
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समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ वेद के अनेक सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में यह निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ किया गया है कि हमें अपने मन को शà¥à¤¦à¥à¤§-पवितà¥à¤° बनाना चाहिये । हम पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ यह कहते हैं कि हमें समाज सà¥à¤§à¤¾à¤° का कारà¥à¤¯ करना है । हमें थोडा विचार करना चाहिठकि यह समाज-सà¥à¤§à¤¾à¤° होता कà¥à¤¯à¤¾ है ? सबसे पहले तो हमें यह धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखना आवशà¥à¤¯à¤• है कि समाज à¤à¥€ बनता है तो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿-वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से ही । इसका तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ यह हà¥à¤† कि यदि हम समाज सà¥à¤§à¤¾à¤° करना चाहते हैं तो पहले à¤à¤•-à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का सà¥à¤§à¤¾à¤° करना आवशà¥à¤¯à¤• है। वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤§à¤¾à¤° की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ यही है कि à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के जीवन में उसका शारीरिक विकास, मानसिक विकास, बौदà¥à¤§à¤¿à¤• विकास और आतà¥à¤®à¤¿à¤• विकास अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गीण विकास का होना अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤• है । इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जब à¤à¤•-à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का विकास होकर पूरे परिवार का और फिर पूरे समाज का विकास होता है ।
वेद का कथन है कि यदि वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿-पà¥à¤°à¤—ति करना चाहते हैं तो अपने अनà¥à¤¦à¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सà¤à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—à¥à¤£à¥‹à¤‚ और दà¥à¤°à¥à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚, दà¥à¤°à¥à¤µà¥à¤¯à¤¸à¤¨à¥‹à¤‚ को दूर करना चाहिये जिससे हमारा मन शà¥à¤¦à¥à¤§-पवितà¥à¤° हो जाये । इनà¥à¤¦à¥à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीवातà¥à¤®à¤¾ वृतà¥à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पाप-à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को, दà¥à¤°à¥à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को अपने आतà¥à¤®à¤¬à¤² से नषà¥à¤Ÿ करता है । जब वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अपना सà¥à¤§à¤¾à¤° कर लेता है तो समà¤à¤¨à¤¾ चाहिठकि वह समाज का ही सà¥à¤§à¤¾à¤° कर रहा है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह à¤à¥€ समाज का ही à¤à¤• अंग है । वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ रूप अंग से ही तो समाज रूपी अंगी का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होता है और à¤à¤• अंग का सà¥à¤§à¤¾à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आंशिक रूप में समाज का ही सà¥à¤§à¤¾à¤° समà¤à¤¨à¤¾ चाहिठ।
हमारे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जो à¤à¥€ कारà¥à¤¯ होता है, वह सबसे पहले मन में ही उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है । मानसिक रूप में जब यह साकार रूप ले लेता उसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ ही वह जाकर फिर वाणीगत रूप में साकारता को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है और इससे आगे वह शारीरिक रूप में कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप में पà¥à¤°à¤•à¤Ÿà¥€à¤•à¤°à¤£ होता है । "पवमानसà¥à¤¯ ते वयं पवितà¥à¤°à¤‚ अà¤à¥à¤¯à¥à¤¨à¥à¤¦à¤¤à¤ƒ । सखितà¥à¤µà¤‚ आ वृणीमहे ।" वेद में ईशà¥à¤µà¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की गयी है कि हे परमेशà¥à¤µà¤° ! हम अपने मन को सरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¥à¤® शà¥à¤¦à¥à¤§-पवितà¥à¤° बनाते हà¥à¤ फिर आगे जाकर आपकी आजà¥à¤žà¤¾à¤“ं का पालन रूप à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ करके अपने जीवन को विकसित करके पà¥à¤°à¤—ति की और ले जाते हà¥à¤ आपके साथ हम मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होना चाहते हैं । हम अपने जीवन को ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£-करà¥à¤®-सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ के अनà¥à¤°à¥‚प ही बनाना चाहते हैं । ईशà¥à¤µà¤° सबसे महान है और कà¥à¤› आंशिक रूप में à¤à¥€ यदि हमारा जीवन ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤°à¥‚प बन पाठतो हमारा जीवन सारà¥à¤¥à¤• माना जायेगा ।
जब वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ को धारण करेगा तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि वह बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से अपने आप बच जाता है और उसके जीवन में दिवà¥à¤¯à¤¤à¤¾, à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ का आगमन हो जाता है । उस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° को देख कर दà¥à¤¸à¤°à¥‡ लोग à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ हो जाते हैं और उनके जीवन में à¤à¥€ परिवरà¥à¤¤à¤¨ हो जाता है । इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के सà¥à¤§à¤¾à¤° से समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ समाज का सà¥à¤§à¤¾à¤° हो जाता है और यही पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ ही वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ है समाज सà¥à¤§à¤¾à¤° या लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करने की, इसके अतिरिकà¥à¤¤ जो à¤à¥€ सामाजिक कारà¥à¤¯ किये जाते हैं वे सब उतने अधिक लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ नहीं हैं । अतः यदि लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ ही करना हो तो हमें सà¥à¤µà¤¯à¤‚ से ही पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करना चाहिये । हमें अपना सà¥à¤§à¤¾à¤°, अपनी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿, आतà¥à¤®à¤¿à¤• उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ को ही पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ देनी चाहिà¤, उसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ दूसरों की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥‡à¤µ होती जायेगी । इस लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ रूप महान कारà¥à¤¯ की शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ हमें अपने मन से ही करनी चाहिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मन की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ से ही निशà¥à¤šà¤¿à¤¤à¥ लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ सिदà¥à¤§ है ।
यदि à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ शानà¥à¤¤ चितà¥à¤¤ होकर केवल अपने सà¥à¤§à¤¾à¤° में ही लगा हà¥à¤† है और अपने मन को शà¥à¤¦à¥à¤§-पवितà¥à¤° बनाने में साधना रत है तो समà¤à¤¨à¤¾ चाहिठकि वह अपनी उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के साथ-साथ लोक-कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ का कारà¥à¤¯ ही कर रहा है ।
लेख - आचारà¥à¤¯ नवीन केवली
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