साल 1984 दंगों के वो दाग अà¤à¥€ धà¥à¤²à¥‡ नहीं
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Rajeev ChoudharyDate
23-Nov-2018Category
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à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पर कितना गरà¥à¤µ करें और कितनी शरà¥à¤® ये तो सà¤à¥€ लोगों का अपना-अपना नजरिया है। लेकिन कà¥à¤› मामले à¤à¤¸à¥‡ होते हैं जो संवेदना के साथ-साथ समय रहते नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ मांगते हैं। यदि समय रहते ये चीजें नहीं मिल पाती तो बाद में मिल à¤à¥€ जाà¤à¤ फिर इनका कोई औचितà¥à¤¯ नहीं रहता। हाल ही में साल 1984 में हà¥à¤ सिख विरोधी दंगा केस में 34 साल बाद बड़ा फैसला आया है। दिलà¥à¤²à¥€ की पटियाला हाउस कोरà¥à¤Ÿ ने दो दोषियों में यशपाल सिंह को फांसी, जबकि दूसरे नरेश सहरावत को उमà¥à¤°à¤•à¥ˆà¤¦ की सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ है। दोनों आरोपियों को दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¥€ दिलà¥à¤²à¥€ के महिपालपà¥à¤° इलाके में दो लोगों (हरदेव सिंह और अवतार सिंह) की हतà¥à¤¯à¤¾ के मामले में सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ गई। बेशक आज हरदेव सिंह और अवतार सिंह के परिजन इस सजा से खà¥à¤¶ हो, लेकिन दà¥à¤ƒà¤– ये है कि आखिर इन हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को इनके किये की सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ में इतना वकà¥à¤¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लग गया।
84 के दंगे का जिकà¥à¤° आते ही पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आसानी से बता देता है कि ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ इंदिरा गांधी की हतà¥à¤¯à¤¾ के बाद देश में हिंसा à¤à¥œà¤•à¥€ थी। लगà¤à¤— तीन दिन तक चले इस नरसंहार में हजारों की संखà¥à¤¯à¤¾ में सिख समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ से जà¥à¥œà¥‡à¤‚ लोगों की हतà¥à¤¯à¤¾ की गयी थी। हालाà¤à¤•à¤¿ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• पैमाने पर हà¥à¤ इस नरसंहार का कारण यदि टटोला जाये तो ये है कि ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ इंदिरा के आदेश पर सेना दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आतंकियों को पकड़ने के लिठअमृतसर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर में कारवाही की गयी थी। जिसमें दोनों ओर गोलाबारी हà¥à¤ˆ थी। इसमें काफी बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में देश के सैनिक à¤à¥€ हताहत हà¥à¤ थे। इस कारà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¹à¥€ में सशसà¥à¤¤à¥à¤° सिख अलगाववादी समूह जो अलग खालिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ देश की मांग कर रहे थे उनके साथ उनके अलगाववादी विचारों को à¤à¥€ छिनà¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कर दिया गया था।
किनà¥à¤¤à¥ इसमें जो असल मामला सामने आया था वो ये था कि सेना दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गयी कारवाही में पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ को बड़ा à¤à¤¾à¤°à¥€ नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ हà¥à¤† था जिस कारण बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में सिख समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤à¤‚ आहत हà¥à¤ˆ थीं। ये à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• कारवाही थी जिसमें दोनों तरफ से आधà¥à¤¨à¤¿à¤• हथियारों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया गया था। देश और पंजाब को बचाने में आसà¥à¤¥à¤¾ जरूर घायल हà¥à¤ˆ थी इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ सरकार या सेना का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ मंदिर को नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¨à¥‡ का रहा हो?
पर इस घायल आसà¥à¤¥à¤¾ का खामियाजा देश ने à¤à¥à¤—ता, पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ इंदिरा गांधी की हतà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤ˆ दोनों हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ उनके अंगरकà¥à¤·à¤• सिख थे, जिसके बाद देश में लोग सिखों के खिलाफ à¤à¥œà¤• गठथे। इस घटना के बाद देश की राजनीति में à¤à¤• बड़े नेता जब बयान आया था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है। लेकिन, धरती पल दो पल नहीं बलà¥à¤•à¤¿ लगातार तीन दिनों तक हिलती रही थी और लोग मारे जा रहे थे। सिख समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के लोगों को जहां à¤à¥€ पाया जा रहा था वहीं पर मार दिया जा रहा था। à¤à¥€à¥œ खूनी उनà¥à¤®à¤¾à¤¦ में थी। जब उनà¥à¤®à¤¾à¤¦ शांत हà¥à¤† तब तक करीब पांच हजार मासूम लोगों की मौत हो चà¥à¤•à¥€ थी। बताया जाता है अकेले दिलà¥à¤²à¥€ में ही करीब दो हजार से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोग मारे गये थे।
देश की राजधानी में à¤à¤• तरह का नरसंहार चल रहा था और सरकार उसे रोक नहीं पाई। राजनितिक और असामाजिक ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ ने à¤à¤°à¤¸à¤• फायदा उठाया। à¤à¤¾à¤°à¤¤ की आजादी के बाद इस तरह का कतà¥à¤²à¥‡à¤†à¤® जिस तरह हà¥à¤†, उसे सà¥à¤¨à¤•à¤° आज à¤à¥€ रूह कांप जाती है। पà¥à¤°à¥‡à¤® और सदà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से à¤à¤• साथ à¤à¤• ही मोहलà¥à¤²à¥‡ में वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से साथ रह लोगों में दà¥à¤µà¥‡à¤· की à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ का संचार किया गया कि à¤à¤• à¤à¤¾à¤ˆ कातिल तो à¤à¤• की लाश जमीन पर पड़ी थी। मातà¥à¤° दो लोगों की गलती की सजा ने देश की समरसता को रोंद दिया था।
बहà¥à¤¤ लोग मारे गये थे लेकिन आज तक सजा के नाम पर à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› नहीं हà¥à¤†, जिससे सड़कों पर बहे खून और हतà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का हिसाब हो सके। हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिठजाने के बावजूद à¤à¥€ जजों के हथोड़े सरकारों और जाà¤à¤š आयोगों से पूछ रहे है कि इस दंगे के अपराधी कौन है? आखिर कà¥à¤¯à¤¾ कारण रहा कि आज तक ठोस इंसाफ नहीं हो पाया। दोनों हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ फांसी पर लटका दिठगठलेकिन नरसंहार करने वाले कà¤à¥€ राजनीति का सहारा तो कà¤à¥€ सरकारों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गठित विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ जाà¤à¤š आयोगों की धीमी चाल का फायदा लेकर बचते रहे। इससे पीड़ितों के साथ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ को लेकर सवाल तो उठता ही है, कि अगर कà¥à¤› लोग संवेदनाà¤à¤‚ à¤à¥œà¤•à¤¾à¤•à¤° हिंसा या दंगा करवा दें तो उनका कà¥à¤› नहीं होता। बस जाà¤à¤š के नाम पर कागजों के पà¥à¤²à¤¿à¤‚दे जमा कर बहस चलती रहती है।
कितने लोग जानते और आज उस दरà¥à¤¦ को महसूस करते होंगे, मà¥à¤à¥‡ नहीं पता। नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ की आस में बैठे कितने लोग अब दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ छोड़कर चले गये। अपने मà¥à¤•à¤¦à¤®à¥‹à¤‚ की फाइल अगली पीà¥à¥€ को पकड़ा गये कोई जानकारी नहीं। तीन दिनों तक चले इस à¤à¥€à¤·à¤£ दंगे में कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† था शायद हम जैसी आज की पीà¥à¥€ के लोग केवल उपलबà¥à¤§ जानकारियों के आधार पर अपनी राय रख सकते हैं। समय-समय पर चà¥à¤¨à¤¾à¤µ आते रहते है नेता सतà¥à¤¤à¤¾ की चादरों पर बयानों के à¤à¤¾à¤·à¤£ à¤à¤¾à¥œà¤¤à¥‡ हैं और वोटो की à¤à¥‹à¤²à¥€ à¤à¤°à¤•à¤° चले जाते है। लेकिन पीड़ित तो नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ की आस में बैठे रहते हैं। जबकि मानवता का कतà¥à¤² करने वाले लोगों को उकसाने वाले चाहे वो अलगाववाद के नाम पर या हिंसा और उनà¥à¤®à¤¾à¤¦ के नाम पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तà¥à¤°à¤‚त कड़ी सजा देनी चाहिठताकि वह अपनी किसी à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤¾à¤•à¤¾à¤‚कà¥à¤·à¤¾ में जन à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का दोहन न कर सके। आज à¤à¤²à¥‡ दो लोगों को सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ गयी हो इससे à¤à¤• पल को मृतक के परिजन à¤à¥€ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ पाकर खà¥à¤¶ हो लेकिन इस दंगे से नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पर लगा दाग पूरà¥à¤£ रूप से अà¤à¥€ धà¥à¤²à¤¾ नहीं है।..राजीव चौधरी
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