“उपासना किसकी, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व कैसे करें?â€
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Manmohan Kumar AryaDate
23-Jan-2019Category
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HindiTotal Views
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Vikas KumarUpload Date
23-Jan-2019Download PDF
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अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ में उपासना का महतà¥à¤µ सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ हैं। उपासना पास बैठने को कहते हैं। किसके पास बैठना है, इसका उतà¥à¤¤à¤° हम विचार करके पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकते हैं। माता-पिता के पास बैठने से उनसे अनेक सांसारिक, पारिवारिक व धरà¥à¤® विषयक बातों को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। आचारà¥à¤¯ के पास बैठने से अपने अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के विषयों सहित धरà¥à¤® व करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से समाज में वृदà¥à¤§ व अनà¥à¤à¤µà¥€ पà¥à¤°à¥à¤· होते हैं, à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ होते हैं जो अधिक आयॠके नहीं होते परनà¥à¤¤à¥ जिनके पास जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व à¤à¤¸à¥‡ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤à¤µ होता है जो कि हमारे पास नहीं होता। अतः इन सबसे हम कà¥à¤› न कà¥à¤› जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤à¤µ जान सकते है व उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सीख सकते हैं। यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤à¤µ ही हमें अपने जीवन में अनेकानेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ होते हैं और इनसे हम दूसरों का à¤à¥€ उपकार कर सकते हैं। इन माता, पिता व आचारà¥à¤¯ आदि से अलग à¤à¤• सतà¥à¤¤à¤¾ और है जिसे ईशà¥à¤µà¤° कहते हैं। उस ईशà¥à¤µà¤° ने ही यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ हमें सà¥à¤– देने व करà¥à¤® करने के लिठबनाई है।
वह ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, निराकार, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€, दयालà¥, अजनà¥à¤®à¤¾, अननà¥à¤¤, निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤°, अनादि, अनà¥à¤ªà¤®, सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¾à¤°, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€, अजर, अमर, अà¤à¤¯ और सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ है। ईशà¥à¤µà¤° की यह सतà¥à¤¤à¤¾ अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ सूकà¥à¤·à¥à¤® और सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• होने से हमें आंखों से दिखाई नहीं देती। इस कारण पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ लोग ईशà¥à¤µà¤° के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को समà¤à¤¨à¥‡ में à¤à¥‚ल करते हैं। वेद व वैदिक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ या फिर वैदिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के उपदेशों से ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प व गà¥à¤£, करà¥à¤®, सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ आदि से परिचित होता है। ईशà¥à¤µà¤° से परिचय हो जाने पर à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ à¤à¤µà¤‚ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन आदि से ईशà¥à¤µà¤° विषयक अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को बà¥à¤¾à¤¨à¤¾ होता है।
जब हम ईशà¥à¤µà¤° विषयक सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯, चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨, उसकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ व पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾, ईशà¥à¤µà¤° के मà¥à¤–à¥à¤¯ और निज नाम ओ३मॠका जप, गायतà¥à¤°à¥€ मनà¥à¤¤à¥à¤° का जप व अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°-यजà¥à¤ž आदि कर रहे होते हैं तो इसी को उपासना कहा जाता है। इसका कारण यह है कि ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• व सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¯à¤¾à¤®à¥€ होने से हमें सदा सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ उपलबà¥à¤§ व समीपसà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ रहता है। यदि हमारा ईशà¥à¤µà¤° में धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं है तो वह उपासना नहीं होती और यदि हम ईशà¥à¤µà¤° में ही अपने मन को à¤à¤•à¤¾à¤—à¥à¤° कर सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯, चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ व सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿-पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ आदि करते हैं तो यह उपासना कहलाती है।
उपासना हमें उसकी व उनकी करनी चाहिये जिनमें सबसे अधिक गà¥à¤£ हैं और जिनके हमारे ऊपर सबसे अधिक उपकार हैं। à¤à¤¸à¥€ सतà¥à¤¤à¤¾ जिसके हम पर सबसे अधिक उपकार हैं, उसका नाम ईशà¥à¤µà¤° है। हमने ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया है जिससे ईशà¥à¤µà¤° इस समसà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ में उपासना करने योगà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होता है। उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£à¥‹à¤‚ में à¤à¤• गà¥à¤£ यह à¤à¥€ है कि वह हमें सतà¥à¤¯ मारà¥à¤—, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मारà¥à¤—, उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के मारà¥à¤— और मृतà¥à¤¯à¥ से अमृत की ओर जाने वाले मारà¥à¤— पर चलने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ करता है। वह हमें अनेक संकटों व दà¥à¤ƒà¤–ों से बचाता à¤à¥€ है। हमारे पास जो à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ व धन आदि पदारà¥à¤¥ हैं वह सब ईशà¥à¤µà¤° के हैं। सà¤à¥€ धनों का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ ईशà¥à¤µà¤° ही है। ईशोपनिषदॠके पà¥à¤°à¤¥à¤® मनà¥à¤¤à¥à¤° में ‘कसà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤¿à¤¤à¥ धनम॒ कहकर पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया है कि यह धन किस का है? इसका उतà¥à¤¤à¤° à¤à¥€ उसमें निहित है कि यह सब धन सà¥à¤–सà¥à¤µà¤°à¥‚प परमातà¥à¤®à¤¾ का है। ईशà¥à¤µà¤° की उपासना करने से हम कृतघà¥à¤¨à¤¤à¤¾ के पाप से बचते हैं। हमारी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पवितà¥à¤° होती है। हम जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¾à¤¨ होते हैं। अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ से बचते हैं। हम निरोग रहते हैं और हमारी आयॠमें à¤à¥€ वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। ईशà¥à¤µà¤° हमारे शतà¥à¤°à¥à¤“ं से à¤à¥€ हमारी रकà¥à¤·à¤¾ करता है। उपासना में मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤•, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, मन व आतà¥à¤®à¤¾ को à¤à¤•à¤¾à¤—à¥à¤° करने के अतिरिकà¥à¤¤ कोई वà¥à¤¯à¤¯ होता है, मातà¥à¤° ईशà¥à¤µà¤° का दिया हà¥à¤† समय ही लगता है, इससे हानि कà¥à¤› नहीं होती और लाठइस जनà¥à¤® सहित परजनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। अतः ईशà¥à¤µà¤° की उपासना, वेदों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ ईशà¥à¤µà¤° के सà¥à¤µà¤°à¥‚प का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ व चिनà¥à¤¤à¤¨, ओ३मॠव गायतà¥à¤°à¥€ जप सहित नितà¥à¤¯ अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° आदि करके करनी चाहिये। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ करने की उपयà¥à¤•à¥à¤¤ विधि योग दरà¥à¤¶à¤¨ की विधि ही है।
उपासना परमातà¥à¤®à¤¾ की करनी उचित हैं। माता-पिता, आचारà¥à¤¯, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ अतिथि व जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ लोगों की à¤à¥€ संगति व उपासना कर सकते हैं। इससे à¤à¥€ हमें अनेक लाठहोते हैं जिनका उलà¥à¤²à¥‡à¤– हम पहले कर आये हैं। अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ होता है कि ईशà¥à¤µà¤° की उपासना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ करनी चाहिये? यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ इसका उतà¥à¤¤à¤° à¤à¥€ पूरà¥à¤µ आ चà¥à¤•à¤¾ है फिर à¤à¥€ यह जानना आवशà¥à¤¯à¤• है कि ईशà¥à¤µà¤° के हमारे ऊपर अनेक उपकार कौन-2 से हैं? ईशà¥à¤µà¤° ने हमारे लिये सृषà¥à¤Ÿà¤¿ बनाई, हमें पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के वृदà¥à¤§, रà¥à¤—à¥à¤£ व जरà¥à¤œà¤°à¤¿à¤¤ शरीरों से मà¥à¤•à¥à¤¤ कर नया शरीर, माता-पिता, à¤à¤¾à¤ˆ-बहिन आदि पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किये, वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ऋषियों के माधà¥à¤¯à¤® से हम तक पहà¥à¤‚चाया, वही परमातà¥à¤®à¤¾ आज à¤à¥€ वायॠको बहा रहा है, जल को वाषà¥à¤ª बना कर आकाश में ले जाता है और वहां से वरà¥à¤·à¤¾ होती है जिससे अनà¥à¤¨, फल व औषधियां आदि उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होती हैं। हम जल पीते हैं और नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से जल का उपयोग करते हैं।
परमातà¥à¤®à¤¾ ने गाय व अनà¥à¤¯ दà¥à¤—à¥à¤§ देने वाले पशॠहमारे लिये ही बनाये हैं। यह सब काम परमातà¥à¤®à¤¾ हमारे लिये कर रहा है। अतः उसकी उपासना कर उसका दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ करना हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ बनता है। उपासना करना ईशà¥à¤µà¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने सहित इससे अनà¥à¤¯ अनेक लाठà¤à¥€ होते हैं। इन लाà¤à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ à¤à¥€ हम ऊपर कर चà¥à¤•à¥‡ हैं। सà¥à¤µà¤¯à¤‚ चिनà¥à¤¤à¤¨ व मनन कर à¤à¥€ हम ईशà¥à¤µà¤° के अनेकानेक उपकारों को जान सकते हैं। अतः ईशà¥à¤µà¤° की उपासना का आधार à¤à¥€ हमें समठआ गया है।
उपासना कैसे करें? इसके लिये हमें सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ की वैदिक विधि का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करना चाहिये। यह à¤à¤• लघॠपà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है और इसके लिठथोड़े से मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का विधान किया है जिनका उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ कर व उनके अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ पर विचार कर हमें ईशà¥à¤µà¤° का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ व धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ करना होता है। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ विधि के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के साथ हमें योग दरà¥à¤¶à¤¨ व सांखà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ à¤à¥€ करना चाहिये। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ व अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚ग योग उपासना में दोनों ही उपयोगी हैं और दोनों à¤à¤• दूसरे के पूरक हैं। योग दरà¥à¤¶à¤¨ में उपासना की विधि नहीं है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने उपासना वा सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ की विधि लिख कर इस अà¤à¤¾à¤µ की à¤à¥€ पूरà¥à¤¤à¤¿ कर दी है। वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को योगदरà¥à¤¶à¤¨ का à¤à¤• पूरक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ à¤à¥€ कह सकते हैं। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ में मन लगे इसके लिये हमें पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ वेद व ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ à¤à¥€ अवशà¥à¤¯ करना चाहिये। हमारा à¤à¥‹à¤œà¤¨ शà¥à¤¦à¥à¤§ व पवितà¥à¤° होना चाहिये। हमारा आचरण, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° व वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ à¤à¥€ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ पवितà¥à¤° होना चाहिये। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका, आरà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¨à¤¯ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ सहित आरà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की वेदमंजरी, ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿, अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿, सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ सनà¥à¤¦à¥‹à¤¹, शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ सौरà¤, सनà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— दरà¥à¤¶à¤¨ आदि अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ के लिये बहà¥à¤¤ ही उतà¥à¤¤à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ से पूरà¥à¤µ और महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद तो इन गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ अà¤à¤¾à¤µ था। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से हम व आज की पीà¥à¥€ सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ है जिसे आज इतना वैदिक साहितà¥à¤¯ आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ में उपलबà¥à¤§ है। यह साहितà¥à¤¯ इतना है कि सारा जीवन पà¥à¥‡ तो à¤à¥€ शायद समापà¥à¤¤ न हो। अतः सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ की आदत डालनी चाहिये। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ से à¤à¥€ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ से होने वाले अधिकांश लाठपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ के लिये सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। यदि सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ रहित सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ होगी तो परिणाम उतने महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ व लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ शायद न हों जो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ घंटो सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ करने वालों को होते हैं। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ के साथ ईशà¥à¤µà¤° विषयक चिनà¥à¤¤à¤¨ à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• है जिससे हमारा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤° हो जाये और बाहर के विषय सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ करते समय हमारे मन में न पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करें। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ से इन सब बातों को जाना जा सकता है। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ ऋषि दयाननà¥à¤¦ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤£à¥€à¤¤ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ विधि पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की विधि से ही करनी चाहिये। à¤à¤¸à¤¾ करने से अवशà¥à¤¯ ही उपासना से होने वाले सà¤à¥€ लाठउपासक व साधक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होंगे। इसी के साथ लेखनी को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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