“वैदिक धरà¥à¤® सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® व सबके लिठलाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ होने पर à¤à¥€ लोगों का मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ को महतà¥à¤µ देना आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œï
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Manmohan Kumar AryaDate
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08-Apr-2019Download PDF
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मनà¥à¤·à¥à¤¯ यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह ही à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ है परनà¥à¤¤à¥ इसकी विशेषता है कि परमातà¥à¤®à¤¾ ने इसको बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ दी है, दो पैर चलने के लिये तथा दो हाथ अनेकानेक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करने के लिये दिये हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पास नहीं है। यह सतà¥à¤¯ है कि अनेक बातों में पशॠव पकà¥à¤·à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ अधिक लाठमें है। पशà¥à¤“ं को अपना जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करने के लिये मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह न तो बड़े-बड़े सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• à¤à¤µà¤¨ चाहियें, न धन और न सà¥à¤– सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ की वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ कार व वसà¥à¤¤à¥à¤° आदि। सà¤à¥€ पशॠजल में तैरना जानते हैं। राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जहां रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ है वहां के à¤à¥€ यदि किसी पशॠको किसी नदी या सरोवर में डाल दिया जाये तो वह तैरना जानता है जबकि उसने कà¤à¥€ नदी व सरोवर के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं किये होते।
सà¤à¥€ पकà¥à¤·à¥€ जनà¥à¤® लेने के कà¥à¤› ही दिन बाद उड़ना सीख जाते हैं परनà¥à¤¤à¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह वायॠमें उड़ना समà¥à¤à¤µ नहीं है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ ने अपनी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ बल से उन सब साधनों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया है जो अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤²à¤ हैं। वह पानी के जहाज या नाव में बैठकर à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पानी पर चल सकता व दौड़ सकता है तथा वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में बैठकर पशà¥à¤“ं से à¤à¥€ अधिक तीवà¥à¤° गति से à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आ जा सकता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ के पास बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ है जिसका विषय जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ व उसका सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— करना है। जो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¹à¥€à¤¨ होता है उसे बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¹à¥€à¤¨ कहा जाता है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ उसे कहते हैं जिससे किसी à¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥, पदारà¥à¤¥ तथा विषय को सतà¥à¤¯, यथारà¥à¤¥ व वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• रूप में जाना जाये। मनà¥à¤·à¥à¤¯ इस संसार को देखता है तो जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ होती है कि यह संसार सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बना या किसी सतà¥à¤¤à¤¾ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाया गया है। इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से मिलता है।
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ यà¥à¤— में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ हो जाने पर à¤à¥€ शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ व विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ कहे जाने वाले बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का यथारà¥à¤¥ उतà¥à¤¤à¤° पता नहीं है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व तरà¥à¤• आदि से विवेचन करने पर यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि संसार में à¤à¤¸à¥€ कोई वसà¥à¤¤à¥ नहीं है जो सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ बिना बनाये बन जाये। इसलिये इस संसार की रचना à¤à¥€ किसी सतà¥à¤¤à¤¾ व शकà¥à¤¤à¤¿, जो चेतन ही हो सकती है, हà¥à¤ˆ है। इसका उतà¥à¤¤à¤° न तो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ में और न ही मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ में ठीक-ठीक मिलता है। जो मत-मतानà¥à¤¤à¤° ईशà¥à¤µà¤° या सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ की सतà¥à¤¤à¤¾ को मानते हैं, वह à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प से परिचित व सà¥à¤µà¤¿à¤œà¥à¤ž नहीं है। उनकी मतों की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ को देखने पर विदित होता है कि उनके मत में ईशà¥à¤µà¤° का जो सà¥à¤µà¤°à¥‚प है वह तरà¥à¤• à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤‚गत नहीं है। ईशà¥à¤µà¤° का सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प केवल वेद और वेदविशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥€ ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ यथा दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤µà¤‚ उपनिषदों में ही सà¥à¤²à¤ होता है। न केवल ईशà¥à¤µà¤° का सà¥à¤µà¤°à¥‚प व उसके गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेद à¤à¤µà¤‚ वैदिक साहितà¥à¤¯ से होता है अपितॠअनà¥à¤¯ अनेक विषयों जीवातà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प व उसके गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ, मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯, उपासना की विधि, वायà¥, जल व परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के उपाय व साधन ‘अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤ž’ आदि अनेक विषयों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ वेद à¤à¤µà¤‚ वैदिक साहितà¥à¤¯ से होता है। अतः वेदों का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ से कहीं अधिक ऊंचा है।
वैदिक धरà¥à¤® की विशेषता यह है कि वेदों में ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प पाया जाता है। वेद सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ धरà¥à¤® के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं। वेदों में सà¤à¥€ सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ बीज रूप में पायी जाती हैं। वेदों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ संसार की सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं से शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ होने के साथ सब à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की जननी à¤à¥€ है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का शबà¥à¤¦ à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤° à¤à¥€ अनà¥à¤¯ सब à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं से अधिक है। वेदों में जो संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ है उसके सà¤à¥€ शबà¥à¤¦ रूॠन होकर यौगिक व योगरूॠहैं।
सà¤à¥€ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की रचना का à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ कारण व नियम है। संसार की अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के शबà¥à¤¦ रूॠहैं। देवनागरी लिपि à¤à¥€ संसार की सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ लिपि है। वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ है, इसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है जबकि मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ से जीवन के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ वा लकà¥à¤·à¥à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं होता। वेद ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ और मूल-पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को अनादि व नितà¥à¤¯ तथा नाशरहित मानते हैं जबकि मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ में इस विषयक पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का अà¤à¤¾à¤µ है। यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ किसने बनाई इसका वैदिक उतà¥à¤¤à¤° है कि ईशà¥à¤µà¤° ने समसà¥à¤¤ चराचर जगत व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाया है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बनाया है, इसका à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤° मिलता है।
ईशà¥à¤µà¤° इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को अनादि व नितà¥à¤¯ जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को पूरà¥à¤µ कलà¥à¤ª, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– रूपी फलों का à¤à¥‹à¤— कराने के लिये बनाया है। जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को उनके पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– रूपी फल का à¤à¥‹à¤— कराने के लिये ही परमातà¥à¤®à¤¾ ने आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं को नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के शरीर दिये हैं। संसार में जो सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– की वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ हैं, वह à¤à¥€ परमातà¥à¤®à¤¾ ने जीवों को उनके करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिये ही बनाईं हैं। अतः इन सब सतà¥à¤¯à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ बातों के कारण संसार में वेद सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से अधिक सारà¥à¤¥à¤•, उपयोगी व लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने अपने वेदों के वैदà¥à¤·à¥à¤¯ के आधार पर कहा है कि सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤° अविदà¥à¤¯à¤¾ से यà¥à¤•à¥à¤¤ हैं और विषसमà¥à¤ªà¥ƒà¤•à¥à¤¤ अनà¥à¤¨ के समान तà¥à¤¯à¤¾à¤œà¥à¤¯ हैं।
à¤à¤¸à¤¾ होने पर à¤à¥€ मत व पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के आचारà¥à¤¯ अपनी अविदà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के कारण अपने अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को वेद की सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ को न तो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बताते हैं और न उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जानने का ही परामरà¥à¤¶ देते हैं। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में तो अनेक मतमतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ संसार में अपनी जनसंखà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¾à¤•à¤° उन उन देशों की सतà¥à¤¤à¤¾ पर कबà¥à¤œà¤¾ करना à¤à¥€ है। इन मतों वा इनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में निरà¥à¤¦à¥‹à¤· मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अहिंसा का à¤à¤¾à¤µ à¤à¥€ दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—ोचर नहीं होता जो कि किसी à¤à¥€ धरà¥à¤® या मत के लिये अनिवारà¥à¤¯ होना चाहिये। अतः संसार में à¤à¤¸à¥‡ लोगों को देखकर आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता है कि यह सतà¥à¤¯ से अपरिचित होकर अपना अनमोल अमृत जीवन वृथा कर रहे हैं जिसमें यह लोग सà¥à¤µà¤¯à¤‚ व उनके आचारà¥à¤¯ à¤à¥€ समान रूप से दोषी व उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¥€ हैं।
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से परिपूरà¥à¤£ ऋषियों की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सतà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ यथारà¥à¤¥ हैं तथा इसमें मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन को वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करने के लिये सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विधान है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का धरà¥à¤® मानवीय गà¥à¤£à¥‹à¤‚ को धारण करना है।
मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में धरà¥à¤® के 10 लकà¥à¤·à¤£ बताते हà¥à¤ कहा गया है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ धारà¥à¤®à¤¿à¤• है या नहीं इसकी पहचान धरà¥à¤® के दस लकà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ से होती है। यह दस लकà¥à¤·à¤£ धैरà¥à¤¯, कà¥à¤·à¤®à¤¾, इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं का दमन, चोरी न करना, शरीर, मन, विचारों व à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ व पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾, इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को वश में रखना, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ वा जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¾à¤¨ होना, विदà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ होना, सतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ करना, कà¥à¤°à¥‹à¤§ न करना ही धरà¥à¤® के दस आवशà¥à¤¯à¤• लकà¥à¤·à¤£ है। यह धरà¥à¤® के दस लकà¥à¤·à¤£ राम, कृषà¥à¤£, दयाननà¥à¤¦ जी आदि के जीवन में पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ थे। आजकल जितने à¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤° हैं, उनमें इन गà¥à¤£à¥‹à¤‚ में से अनेक गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का अà¤à¤¾à¤µ देखा जाता है। वह इन सà¤à¥€ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ को धारण करने पर बल नहीं देते।
इन गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के विपरीत गà¥à¤£ वा अवगà¥à¤£ à¤à¥€ उनमें पाये जाते हैं तथा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बà¥à¤°à¤¾ नहीं माना जाता। मांसाहार à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ ही बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ है। मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ में इन सà¤à¥€ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– नहीं है। देश, समाज व वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का à¤à¤• नियम है कि अविदà¥à¤¯à¤¾ का नाश और विदà¥à¤¯à¤¾ की वृदà¥à¤§à¤¿ करनी चाहिये। वैदिक धरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को इसका पालन करने की पूरी छूट है व वह à¤à¤¸à¤¾ करते à¤à¥€ हैं। मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में अकल अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सही व गलत मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के पकà¥à¤·-विपकà¥à¤· में सोचने व पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ करने की छूट नहीं है। कहा जाता है कि धरà¥à¤® में अकल का दखल नहीं है।
à¤à¤¸à¥€ अनेक बातों के कारण केवल वैदिक मत ही सचà¥à¤šà¤¾ मानव धरà¥à¤® सिदà¥à¤§ होता है। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ है कि सचà¥à¤šà¥‡ मानव धरà¥à¤® वैदिक धरà¥à¤® को मानने वाले संसार में कम लोग हैं और इसके विपरीत मानने वाले लोगों की संखà¥à¤¯à¤¾ कहीं अधिक हैं। इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कोई सचà¥à¤šà¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ व विवेकी पà¥à¤°à¥à¤· कà¥à¤¯à¤¾ कह सकता है? ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने लोगों तक धरà¥à¤® की सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने का à¤à¤°à¤¸à¤• व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤ªà¤£ से पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ किया परनà¥à¤¤à¥ उसका सीमित पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ ही हà¥à¤† है। संसार के 90 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ से अधिक लोग इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के यà¥à¤— में à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प को नहीं जानते हैं। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ईशà¥à¤µà¤° की उपासना की सतà¥à¤¯ विधि à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¤ नहीं है। हमारे करà¥à¤® सतà¥à¤¯ पर आधारित होने के साथ परोपकार, देश व समाजहित में होने चाहिये, इसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ आज के शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ लोगों को नहीं है। सतà¥à¤¯ à¤à¤• होता है परनà¥à¤¤à¥ इसके विपरीत देश में नाना सामाजिक à¤à¤µà¤‚ राजनैतिक विचारधारायें हैं। जितने बड़े-बड़े घोटाले होते हैं वह सब शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ व उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ लोग ही करते हैं।
सतà¥à¤¯ को गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने और असतà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करने में सब मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सदैव ततà¥à¤ªà¤° रहना चाहिये, इस नियम का आचरण आज की परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में होना समà¥à¤à¤µ नहीं दीखता। सà¤à¥€ मतों के लोगों का आपस में मिलकर सतà¥à¤¯ का निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ न करना और अपने पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ विचारों व मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को ही मानते जाना, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ तथा जीवातà¥à¤®à¤¾ व मनà¥à¤·à¥à¤¯ के à¤à¤¾à¤µà¥€ जीवन अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® के लिये उचित व सà¥à¤–द नहीं है। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने सà¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ व बà¥à¤°à¥‡ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤¯ व असतà¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फलों को à¤à¥‹à¤—ना है। ईशà¥à¤µà¤° जीवों के सà¤à¥€ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का साकà¥à¤·à¥€ होता है। वही करà¥à¤®à¤«à¤² पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ व नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤§à¥€à¤¶ है। अतः करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल मिलना अनिवारà¥à¤¯ है। मत-मतानà¥à¤¤à¤° के आचारà¥à¤¯ व उनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का विचार नहीं करते, अतः यह आज के जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के यà¥à¤— में आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• है। इसका परिणाम सà¥à¤–द कदापि न होकर सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये असà¥à¤–द व हानिकर ही होने की समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ है।
हमें वैदिक धरà¥à¤® संसार का शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ व हितकर धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने इस बात को सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ व सिदà¥à¤§ किया है। इस वैदिक धरà¥à¤® को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° न कर मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की विषसमà¥à¤ªà¥ƒà¤•à¥à¤¤ अनà¥à¤¨ के समान मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को ही अधिकांश लोगों को मानना हमें आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• à¤à¤µà¤‚ उनके लिये अहितकर पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। इसलिये हमने इस विषयक कà¥à¤› चरà¥à¤šà¤¾ इस लेख में की है। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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