आधनिक भारत में "शदधि" के सरवपरथम परचारक सवामी दयानंद थे तो उसे आंदोलन के रूप में सथापित कर समपूरण हिनदू समाज को संगठित करने वाले सवामी शरदधाननद थे। सबसे पहली शदधि सवामी दयानंद ने अपने देहरादून परवास के समय क मसलमान यवक की करी थी जिसका नाम अलखधारी रखा गया था। सवामी जी के निधन के पशचात पंजाब में विशेष रूप से मेघ, ओड और रहतिये जैसे निमन और पिछड़ी समी जाने वाली जातियों का शदधिकरण किया गया। इसका मखय उददेशय उनकी पतित, तचछ और निकृषट अवसथा में सामाजिक वं धारमिक सधार करना था। आरयसमाज दवारा चलाये ग शदधि आंदोलन का वयापक सतर पर विरोध हआ कयूंकि हिनदू जाति सदियों से कूपमणडूक मानसिकता के चलते सोते रहना अधिक पसंद करती थी। आगरा और मथरा के समीप मलकाने राजपूतों का निवास था जिनके पूरवजो ने क आध शताबदी पहले ही  इसलाम की दीकषा ली थी। मलकानों के रीती रिवाज़ अधिकतर हिनदू थे और चौहान, राठोड़ आदि गोतर के नाम से जाने जाते थे। 1922 में कषतरिय सभा मलकानों को राजपूत बनाने का आवाहन कर सो गई मगर मसलमानों में इससे परयापत चेतना हई वं उनके परचारक गावं गावं घूमने लगे। यह निषकरियता सवामी शरदधाननद की आखों से छिपी नहीं रही। 11 फरवरी 1923 को भारतीय शदधि सभा की सथापना करते समय सवामी शरदधाननद दवारा शदधि आंदोलन आरमभ किया गया। सवामी जी दवारा इस अवसर पर कहा गया की जिस धारमिक अधिकार से मसलमानों को तबलीग़ और तंज़ीम का हक हैं उसी अधिकार से उनहें अपने बिछड़े भाइयों को वापिस अपने घरों में लौटाने का हक हैं। आरयसमाज ने 1923 के अंत तक 30 हजार मलकानों को शदध कर दिया।

मसलमानों में इस आंदोलन के विरदध परचंड परतिकिया हई। जमायत-उल-उलेमा ने बमबई में 18 मारच, 1923 को मीटिंग कर सवामी शरदधाननद वं शदधि आंदोलन की आलोचना कर निंदा परसताव पारित किया। सवामी जी की जान को खतरा बताया गया मगर उनहोंने "परमपिता ही मेरा रकषक हैं, मे किसी अनय रखवाले की जररत नहीं हैं" कहकर निरभीक सनयासी होने का परमाण दिया। कांगरेस के शरी राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू वं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने धरमपरिवरतन को वयकति का मौलिक अधिकार मानते ह तथा शदधि के औचितय  करते ह भी ततकालीन राषटरीय आंदोलन के सनदरभ में उसे असामयिक बताया। शदधि सभा गठित करने वं हिनदओं को संगठित करने का सवामी जी का धयान 1912 में उनके कलकतता परवास के समय आकरषित हआ था जब करनल यू. मखरजी ने 1911 की जनगणना के आधार पर यह सिदध किया की अगले 420 वरषों में हिनदओं की अगर इसी परकार से जनसखया कम होती गई तो उनका असतितव मिट जायेगा। इस समसया से निपटने के लि हिनदओं का संगठित होना आवशयक था और संगठित होने के लि सवामी जी का मानना था कि हिनदू समाज को अपनी दरबलताओं को दूर करना चाहि। सामाजिक विषमता, जातिवाद, दलितों से घृणा, नारी उतपीड़न आदि से जब तक हिनदू समाज मकति नहीं पा लेगा तब तक हिनदू समाज संगठित नहीं हो सकता।

इसी बीच हिनदू और मसलमानों के मधय खाई बराबर बती गई। 1920 के दशक में भारत में भयंकर हिनदू-मसलिम दंगे ह। केरल के मोपला, पंजाब के मलतान, कोहाट, अमृतसर, सहारनपर आदि दंगों ने अंतर और बा दिया। इस समसया पर विचार करने के लि 1923 में दिलली में कांगरेस ने क बैठक का आयोजन किया जिसकी अधयकषता सवामी जी को करनी पड़ी। मसलमान नेताओं ने इस वैमनसय का कारण सवामी जी दवारा चलाये ग शदधि और हिनदू संगठन को बताया। सवामी जी ने सांपरदायिक समसया का गंभीर और तथयातमक विशलेषण करते ह दंगों का कारण मसलमानों की संकीरण सांपरदायिक सोच बताया। इसके पशचात भी सवामी जी ने कहा की मैं आगरा से शदधि परचारकों को हटाने को तैयार हू अगर मसलिम उलेमा अपने तबलीग के मौलवियों को हटा दे। परनत मसलिम उलेमा न माने।

इसी बीच सवामी जी को खवाजा हसन निज़ामी दवारा लिखी पसतक 'दाइ-इसलाम' पकर हैरानी हई। इस पसतक को चोरी छिपे केवल मसलमानों में उपलबध करवाया गया था। सवामी जी के क शिषय ने अफरीका से इसकी परति सवामी जी को भेजी थी। इस पसतक में मसलमानों को हर अचछे-बरे तरीके से हिनदओं को मसलमान बनाने की अपील निकाली गई थी। हिनदओं के घर-महललों में जाकर औरतों को चूड़ी बेचने से, वैशयाओं को गराहकों में, नाई दवारा बाल काटते ह इसलाम का परचार करने वं मसलमान बनाने के लि कहा गया था। विशेष रूप से 6 करोड़ दलितों को मसलमान बनाने के लि कहा गया था जिससे मसलमान जनसखया में हिनदओं की बराबर हो जाये और उससे राजनैतिक अधिकारों की अधिक माग करी जा सके। सवामी जी ने निज़ामी की पसतक का पहले "हिनदओं सावधान, तमहारे धरम दरग पर रातरि में छिपकर धावा बोला गया हैं" के नाम से अनवाद परकाशित किया वं इसका उततर "अलारम बेल अरथात खतरे का घंटा" के नाम से परकाशित किया।  इस पसतक में सवामी जी ने हिनदओं को छआ छूत का दमन करने और समान अधिकार देने को कहा जिससे मसलमान लोग दलितों को लालच भरी निगाहों से न  देखे। इस बीच कांगरेस के काकीनाडा के अधयकषीय भाषण में महममद अली ने 6 करोड़ अछूतों को आधा आधा हिनदू और मसलमान के बीच बाटने की बात कहकर आग में घी डालने का कारय किया।

महातमा गांधी भी सवामी जी के गंभीर वं तारकिक चिंतन को समने में असमरथ रहे वं उनहोंने यंग इंडिया के 29 मई, 1925 के अंक में 'हिनदू मसलिम-तनाव: कारण और निवारण' शीरषक से क लेख में सवामी जी पर अनचित टिपपणी कर डाली। उनहोंने लिखा

"सवामी शरदधाननद जी भी अब अविशवास के पातर बन गये हैं। मैं जानता हू की उनके भाषण पराय: भड़काने वाले होते हैं। दरभागयवश वे यह मानते हैं कि परतयेक मसलमान को आरय धरम में दीकषित किया जा सकता हैं, ठीक उसी परकार जिस परकार अधिकांश मसलमान सोचते हैं कि किसी-न-किसी दिन हर गैरमसलिम इसलाम को सवीकार कर लेगा। शरदधाननद जी निडर और बहादर हैं। उनहोंने अकेले ही पवितर गंगातट पर क शानदार बरहचरय आशरम (गरकल) खड़ा कर दिया हैं। किनत वे जलदबाज हैं और शीघर ही उततेजित हो जाते हैं। उनहें आरयसमाज से ही यह विरासत में मिली हैं।" सवामी दयानंद पर आरोप लगाते ह गांधी जी लिखते हैं "उनहोंने संसार के क सरवाधिक उदार और सहिषण धरम को संकीरण बना दिया। "

गांधी जी के लेख पर सवामी जी ने परतिकरिया लिखी की "यदि आरयसमाजी अपने परति सचचे हैं तो महातमा गांधी या किसी अनय वयकति के आरोप और आकरमण भी आरयसमाज की परवृतियों में बाधक नहीं बन सकते। "

सवामी जी सधे क़दमों से अपने लकषय की ओर बते रहे। क ओर मौलाना अबदल बारी दवारा दि ग बयान जिसमें इसलाम को न मानने वालो को मारने की वकालात की गई थी के विरदध महातमा गांधी जी कि परतिकरिया पकषपातपूरण थी। गांधी जी अबदल बारी को 'ईशवर का सीदा-सादा बचचा' और 'क दोसत' के रूप में समबोधित करते हैं जबकि सवामी जी दवारा कि गई इसलामी कटटरता की आलोचना उनहें अखरती हैं। गांधी जी ने कभी भी मसलमानों कि कटटरता की आलोचना करी और न ही उनके दोषों को उजागर किया। इसके चलते कटटरवादी सोच वाले मसलमानों का मनोबल बता गया वं सतय वं असतय के मधय वे भेद करने में असफल हो ग। मसलमानों में सवामी जी के विरदध तीवर परचार का यह फल निकला की क मतानध वयकति अबदल रशीद ने बीमार सवामी शरदधाननद को गोली मार दी उनका ततकाल देहांत हो गया।

सवामी जी का उददेशय विशदध धारमिक था नाकि राजनैतिक था। हिनदू समाज में समानता उनका लकषय था। अछूतोदधार, शिकषा वं नारी जाति में जागरण कर वह क महान समाज की सथापना करना चाहते थे। आज आरयसमाज का यह करततवय हैं कि उनके दवारा छोड़े ग शदधि चकर को पन: चलाये। यह तभी संभव होगा जब हम मन से दृ निशचय करे की आज हमें जातिवाद को मिटाना हैं और हिनदू जाति को संगठित करना हैं।

 

 

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