ऋषि दयानन्द की वैदिक विद्वानों की शिष्य मण्डली में आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी का मुख्य स्थान है। अपने पिता की प्रेरणा से गुरुकुल कागड़ी, हरिद्वार में शिक्षा पाकर और वहीं एक उपाध्याय व प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवायें देकर तथा अध्ययन, अध्यापन, वेदों पर चिन्तन व मनन करके आपने देश व संसार को अनेक मौलिक वैदिक ग्रन्थों की सम्पत्ति प्रदान की है। आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी के साहित्य के अध्येता उनके साहित्य के महत्व को जानते हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमें उनके जीवनकाल में कुछ वर्षों तक उनका सान्निध्य मिलता रहा और उनके प्रायः सभी ग्रन्थों को पढ़ने का सुअवसर भी ईश्वर की कृपा से मिला हे। अपने जीवन पर विचार करने पर हमें लगता है कि हमारा वर्तमान जीवन मुख्यतः ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों के अध्ययन के अतिरिक्त आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी और कुछ अन्य प्रमुख वैदिक आर्य विद्वानों की संगति व उनके ग्रन्थों के अध्ययन का ही परिणाम है। अतः हम आर्यजगत के इन सभी विद्वानों के ऋणी व कृतज्ञ हैं और इसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं। 

 

                आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी 102 वर्ष पूर्व 7 जुलाई, 1914 को बरेली में जन्में थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा गुरुकुल कांगड़ी के गंगापार के जंगलों में हुई थी। स्वामी श्रद्धानन्द जी के आपने साक्षात दर्शन किये थे। एक बार बचपन में उनको एक पत्र भी लिखा था। उसका उत्तर उन्हें गुरुकुल के आचार्य के माध्यम से आया था जिसमें उन्हें वैदिक साहित्य का अध्ययन करने और गुरुकुल प्रणाली की सेवा करने का सन्देश व प्रेरणा थी। आचार्य जी ने गुरुकुल से अपनी शिक्षा पूरी कर स्वामी श्रद्धानन्द जी की प्रेरणा के अनुसार अपना शेष जीवन गुरुकुल को ही समर्पित किया। वेदों व वैदिक विषयों के वह देश में जाने माने मर्मज्ञ विद्वान थे। उनका जीवन वैदिक मूल्य व मान्यताओं का जीता-जागता उदाहरण था। वह सरलता व सादगी की मूर्ति थे। सेवानिवृति के बाद उन्होंने अधिकांश समय आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर के निकट गीता आश्रम, ज्वालापुर में निवास कर व्यतीत किया। वह अपने निवास स्थान पर आने वाले सभी व्यक्तियों से पूरी संजीदगी, सहृदयता व आदर के साथ मिलते थे। उनसे वार्ता करते थे। किसी पारिवारिक जन व मित्र विशेष के प्रति उनका कुछ नाम मात्र राग होने की सम्भावना हो सकती है परन्तु द्वेष उनका किसी से नहीं था। वह नकारात्मक किसी भी प्रकार की कोई बात कभी नहीं करते थे। हमने अनेक वर्षों तक यदा कदा उनके पास जाकर आर्यसमाज के हित से जुड़ी अनेक बातें उनसे की थी। वह हमारी प्रत्येक बात सुनते थे और उसका संक्षिप्त उत्तर देते थे। पूर्व प्रकाशित व समय समय पर प्रकाशित होने वाले उनके ग्रन्थ हम उन्हीं से प्राप्त करते थे। वेदों के प्रति उनकी निष्ठा निराली थी। उनकी वेद व्याख्याओं को पढ़ कर लगता है कि जैसे उन्होंने वेदों के मर्म को जान लिया था। उनकी सरल व सुबोध वेद व्याख्यायें पढ़कर उनका रहस्य पाठक के हृदय पर अंकित हो जाता था। उनके सभी ग्रन्थ पठनीय व प्रेरणादायक होने के साथ कर्तव्य के प्रेरक हैं। उन्हें पढ़कर लगता है कि वेद दुर्बोध नहीं अपितु सरल व सुबोध हैं। पाठक हमारी तरह संस्कृत भले ही न जानते हों परन्तु उनकी मन्त्रों की व्याख्यायें पढ़कर उसका रहस्य व गूढ़ार्थ हृदयगंम हो जाता है। आचार्यजी ने सामवेद का संस्कृत एवं हिन्दी में विस्तृत भाष्य किया है जिसकी सभी विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। इसके अतिरिक्त आपके अन्य ग्रन्थों वेदों की वर्णन शैलियां, वैदिक वीर गर्जना, वैदिक सूक्तियां, वेद मंजरी, वैदिक नारी, यज्ञ मीमांसा, वेद भाष्यकारों की वेदार्थ प्रक्रियाएं, महर्षि दयानन्द के शिक्षा, राजनीति और कला-कौशल संबंधी विचार, वैदिक शब्दार्थ विचारः, ऋग्वेद ज्योति, यजुर्वेद ज्योति, अथर्ववेद ज्योति, आर्ष ज्योति, वैदिक मधु वृष्टि तथा उपनिषद दीपिका आदि। आचार्य जी व्यक्तित्व व कृतित्व पर आपके पुत्र प्रसिद्ध आर्य विद्वान डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी के सम्पादन मेंश्रुति मन्थन नाम से एक विशालकाय ग्रन्थ का भी प्रकाशन हुआ है। आचार्य जी के इन सभी ग्रन्थों को पढ़कर वैदिक धर्म व संस्कृति को आत्मसात किया जा सकता है।

                आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी ने गुरुकुल कांगड़ी से सन् 1976 में सेवा निवृति के बाद चण्डीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में 3 वर्षों के लिए महर्षि दयानन्द वैदिक अनुसंधान पीठ के आचार्य व अध्यक्ष बनाये गये थे। यहां सन् 1979 तक रहकर आपने अनेक शिष्यों को शोध कराया जिनमें से एक डा. विक्रम विवेकी जी भी हैं। अन्य अनेक शिष्यों ने भी आपके मार्गदर्शन में समय समय पर शोध उपाधियां प्राप्त कीं।

आचार्य जी समय-समय पर अनेक सम्मानों व पुरुस्कारों से भी आदृत हुए हैं। प्रमुख पुरस्कारों में आपको संस्कृत निष्ठा के लिए भारत के राष्ट्रपति जी की ओर से देश के संस्कृत के राष्ट्रीय विद्वान के रूप में सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या पुरस्कार एवं आर्यसमाज सान्ताक्रूज, मुम्बई के वेद वेदांग पुरस्कार से भी आप सम्मानित हुए। अन्य अनेक संस्थाओं ने भी समय समय पर आपको सम्मानित किया।

आज उनके जन्म दिवस पर हम आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी को अपने हृदय में उनके प्रति कृतज्ञतापूर्ण भावों से श्रद्धाजंलि देते हैं। आज उनके जन्मदिवस पर आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालपुर में मध्याह्न 2.30 बजे से ‘वेदमूर्ति आचार्य रामनाथ वेदालंकार 102 वां जयंती महोत्सव’ भी आयोजित किया गया है। हम इस कार्यक्रम की सफलता की भी कामना करते हैं।

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