Shrimad Dayanand Arsh Jyotirmath Gurukul

(Arsh Gurukul)

यह संसà¥?था शà¥?रीमदà¥?दयाननà¥?द-वेदारà¥?ष- महाविदà¥?यालय- नà¥?यास ११९, गौतमनगर, नई दिलà¥?ली-४९ से समà¥?बनà¥?धित शाखासंखà¥?या ३ है। यह गà¥?रà¥?कà¥?ल नगाधिराज हिमगिरि के शिखर पर शिखरिशिरोमणि की सामà¥?राजà¥?ञी मसूरी की हरीतिमा से परिपूरà¥?ण उपतà¥?यका पर पितृभकà¥?त, वेदानà¥?रागी याजà¥?ञिक शà¥?रीमानà¥? शà¥?रीकानà¥?त वरà¥?मा जी दà¥?वारा पà¥?रदतà¥?त भूतल पर सà¥?वामी पà¥?रणवाननà¥?द जी दà¥?वारा संसà¥?थापित हैं यह भूमि विशाल-विशाल शाल वृकà¥?षों से परिवेषà¥?टित à¤?वं वनà¥?य रमà¥?य पà¥?षà¥?पों से समावृतà¥?त है। यह गà¥?रà¥?कà¥?ल शैलोदà¥?भूत नीमी नामक नदी के तीर पर विराजित होकर दरà¥?शकों का मनोहर हो रहा है। पà¥?रडà¥?डति के पà¥?णà¥?यलीला में पलà¥?लवित होने से ‘‘उपहà¥?नरे गिरीणां संगमे च नदीनामà¥?। धिया विपà¥?रो अजायत’’ इस शà¥?रà¥?तिमनà¥?तà¥?र के सरà¥?वतनà¥?तà¥?र सिधà¥?दानà¥?त को सतà¥?यता में परिवरà¥?तित कर रहा है। इस गà¥?रà¥?कà¥?लीय भूमि में सरà¥?वपà¥?रथम वैदिक ऋचाओं का पठन-पाठन ५ जून २॰॰॰ को सोतà¥?साह à¤?वं धूम-धाम के साथ पà¥?रारमà¥?भ हà¥?आ। आठ वरà¥?ष के इस अलà¥?पकाल में यह संसà¥?था दà¥?रोणनगरी ;देहरादूनदà¥?ध की आसà¥?था à¤?वं शà¥?रधà¥?दा  à¤•à¤¾ सरà¥?वोतà¥?तम à¤?वं पà¥?रगाढ़ केनà¥?दà¥?र बन गयी है। इतने अलà¥?पकाल में ही कà¥?बेरदानियों के सहयोग से, वेदवितà¥? विदà¥?वानों के वरदहसà¥?तों से तथा करà¥?णावरà¥?णालय डà¥?डपालà¥? ईश की महती डà¥?डपा से सà¥?नà¥?दरतम यजà¥?ञशाला, भवà¥?य भवनों, मनोहर गोशाला à¤?वं सà¥?रमà¥?य पà¥?राडà¥?डतिक सौनà¥?दरà¥?यवलà¥?लरी से पà¥?रतà¥?येक मानवमानस को सहसा ही यह शोभायमान भूतल सà¥?वपà¥?रति सतत समाकरà¥?षित à¤?वं सà¥?ववशीभूत करता है। इस भूतल पर पदारà¥?पण कर पà¥?राचीन ऋषि परमà¥?परा की à¤?वं पà¥?राचà¥?य विदà¥?या की सà¥?मृति पर नूतन आलेख रूप में अंकित हो जाता है।

अलà¥?पकालिक विशिषà¥?ट उपलबà¥?धियाà¤?-  

अलà¥?पावधि में ही आपके इस पà¥?रिय गà¥?रà¥?कà¥?ल ने अधà¥?ययन-कà¥?रीड़ा आदि अनेक कà¥?षेतà¥?रों में कà¥?छ विशिषà¥?ट उपलबà¥?धियों की पà¥?रापà¥?ति की है। जो इस अलà¥?पकाल मंे सरà¥?वथा अपà¥?रापà¥?य पà¥?रतीत होती है। शासà¥?तà¥?र और शसà¥?तà¥?रों की शिकà¥?षा का à¤?कतà¥?र समनà¥?वय होने से ही इस संसà¥?था ने ‘‘उभाभà¥?यामपि समरà¥?थोऽसà¥?मि शासà¥?तà¥?रादपि शसà¥?तà¥?रादपि’’ अरà¥?थातà¥? ‘‘मैं शासà¥?तà¥?र और शसà¥?तà¥?र दोनों से समरà¥?थ हूà¤?’’ कि इस सूकà¥?ति को यà¥?कà¥?तियà¥?त सिधà¥?द किया है। आप लोगों की जिजà¥?ञासा की शानà¥?ति हेतà¥? कà¥?छ उपलबà¥?धियों का दिगà¥?दरà¥?शन यहाà¤? पर किया जा रहा है।

 

 

शास�त�र क�षेत�रीय परिचय-

 

 à¤¯à¤¹à¤¾à¤? पर आरà¥?ष-पाठ विधि के माधà¥?यम से अधà¥?ययन होता है, पà¥?राचीनता के साथ आधà¥?निकता का योग करते हà¥?à¤? अंगà¥?रेजी, गणित, इतिहास, विजà¥?ञान, संगणक (कमà¥?पà¥?यूटर) आदि का भी जà¥?ञान पà¥?रदान किया जाता है। पठन-पाठन के कà¥?षेतà¥?र में इस गà¥?रà¥?कà¥?ल ने विशेष विखà¥?याति पà¥?रापà¥?त की है। इस संसà¥?था ने अलà¥?पसमय में ही अषà¥?टाधà¥?यायी, काशिका, निरà¥?कà¥?त à¤?वं महाभाषà¥?य सà¥?तर के साथ साहितà¥?य à¤?वं वेद-वेदांगों में पà¥?रवीण बà¥?रहà¥?मचारियों का निरà¥?माण किया है। शासà¥?तà¥?र पà¥?रतियोगिताओं में इस संसà¥?था ने आरà¥?ष-नà¥?यास की शाखा संसà¥?थाओं में अनेक बार पà¥?रथम सà¥?थान पà¥?रापà¥?त कर विजयोपहार पà¥?रापà¥?त किया है। अनà¥?तरà¥?राषà¥?टà¥?रीय सà¥?तर की शासà¥?तà¥?र सà¥?मरण की पà¥?रतियोगिताओं में गà¥?रà¥?कà¥?ल करतारपà¥?र ;पंजाबदà¥?ध à¤?वं गà¥?रà¥?कà¥?ल आमसेना ;उड़ीसादà¥?ध में अपनी विशेष पà¥?रतिभा पà¥?रसà¥?तà¥?त कर विदà¥?वानों के मà¥?खारविनà¥?द से विशेष पà¥?रशंसा पà¥?रापà¥?त की है। दकà¥?षिण भारत आनà¥?धà¥?र पà¥?रदेश में सà¥?थित तिरà¥?पति में पौराणिक समà¥?दाय के तिरà¥?पतितिरà¥?मलादेवसà¥?थानानि टà¥?रसà¥?ट के दà¥?वारा आयोजित विदà¥?वतà¥?सदसà¥? में वà¥?याकरण विषय महाभाषà¥?य के समककà¥?ष की पà¥?रतियोगिता में यहाà¤? के छातà¥?रो ने अपने गà¥?रà¥?कà¥?ल को पà¥?रथम (सà¥?वरà¥?ण पदकद) तथा दà¥?वितीय सà¥?थान ;रजत पदकदà¥?ध पà¥?रापà¥?त कराकर गà¥?रà¥?कà¥?ल शिकà¥?षा पà¥?रणाली के गौरव को दà¥?विगà¥?णित किया है तथा यहाà¤? की पठन-पाठन विधि को सरà¥?वविध सरà¥?वोतà¥?तम सिधà¥?द कर आरà¥?ष-पाठविधि की विजयपताका को फहराया है। यहाà¤? के छातà¥?रों ने डी.à¤?.वी. देहरादून, गà¥?रà¥?कà¥?ल कांगड़ी, दिलà¥?ली आदि अनेक सà¥?थानांे पर आयोजित वाद-विवाद पà¥?रतियोगिताओं में भी अनेक बार पà¥?रथम सà¥?थान व विजयोपहार पà¥?रापà¥?त किया है।


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Arya Puram, Doon Vatika -2, Poundha
 
Dehradun,  Uttarakhand,  India
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