: Grihasth
: Married
: Dead
: 07-11-1889
: Jalandhar
: 23-08-1960
: Delhi
: Natural

Father :

Lala Munshiram

Mother :

Shiv Devi

 à¤—रकल कांगड़ी के संसथापक सवामी शरदधाननद जी के दवितीय पतर पं. इनदर का जनम 7 नवमबर 1889 (1946 वि.) को जालनधर में हआ। उनकी माता का नाम शिवदेवी था। गरकल कांगड़ी के आरमभ होते ही उनके पिता महातमा मनशीराम ने इनदरजी को इसमें परविषट करा दिया। गंगा किनारे कांगड़ी गराम में गरकल की विधिवत चलाने के पूरव परारमभिक ककषा गरकल गजरांवाला मे सथापित की गई थीं। इनदरजी का परवेश à¤­à¥€ यहीं हआ। 1912 में पं. इनदर अपने अगरज हरिशचनदर के साथ गरकल कांगड़ी के परथम सनातक बने और वेदालंकारतथा विदयावाचसपतिकी उपाधिया गरहण कीं। कछ काल तक गरकल में ही अधयापन करने के अननतर वे इसी संसथा के मखयाधिषठाता, उपकलपति तथा कलपति भी रहे। हिनदी पतरकारिता में उनका योगदान तिहासिक रहा और उनहोंने विभिनन पतरों का समपादन किया। वे देश à¤•à¥€ सवतनतरता के आनदोलन में भी भाग लेते रहे तथा अनेक बार कारावास का दणड भोगा। देश à¤•à¥‡ सवतनतर होने पर उनहें राजयसभा का सदसय मनोनीत किया गया। 23 अगसत 1960 को दिलली में उनका निधन हो गया। यहा उनके आरयसमाज से समबनधित साहितय का ही उललेख किया जा रहा है। 

            ले. का.-उपनिषदों की भूमिका, वैदिक ईशवरवाद (पं. गंगापरसाद जज, पं. शरीपाद दामोदर सातवलेकर तथा पं. घासीराम के निबनधों का समपादित संगरह, 1916)। आरयसमाज का इतिहास (सवामी शरदधाननद की परेरणा से लिखित परथम खणड-1981 वि.), आरयसमाज का इतिहास परिवरधित दो खणड (1956-57), ईशोपनिषद भाषय (2013 वि.), गरकल शिकषा-परणाली के मूल ततव, अधयातम रोगों की चिकितसा, राषटरीयता का मूल मनतर (1914), महरषि दयाननद जीवन चरित (1945) विजय पसतक भणडार, गोविनदराम, हासाननद तथा सबोध पाकेट बकस में परकाशित, मेरे पिता (सवामी शरदधाननद के संसमरण 1957), भारतेतिहास: 30 अधयायों में संसकृत का तिहासिक कावय-1970, सवराजय संगराम में आरयसमाज का भाग। 


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