Arya MahaSammelan

01 Jan 2023
India
Arya Samaj Kolkata

महर्षि दयानन्द जी की बंगाल यात्रा के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आर्य समाज कलकत्ता और पूरे बंगाल की सभी आर्य समाजों के सहयोग से आर्य महासम्मेलन 30 दिसम्बर 2022 से 1 जनवरी 2023 तक बड़ी ही भव्यता और गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ। यह महासम्मेलन आर्य समाज कलकत्ता के 137वें वार्षिकोत्सव के ही हिस्से के रूप में मनाया गया।

 

महासम्मेलन का प्रारम्भ प्रातः ऋग्वेद पारायण यज्ञ के साथ हुआ। यज्ञ के पश्चात पूज्य स्वामी आर्यवेश जी और ठाकुर विक्रम सिंह जी के करकमलों द्वारा 'ओ३म्'  ध्वजा के उत्तोलन से हुआ। मंचीय कार्यक्रम का प्रारम्भ प्रातः 11 बजे पूज्य स्वामी आर्यवेश जी की अध्यक्षता में हुआ। मंचस्थ थे सीकर के सांसद स्वामी सुमेधानन्द जी, श्री विनय आर्य जी, आर्य समाज कलकत्ता के प्रधान श्री ध्रुवचंद जी, मन्त्री श्री दीपक आर्य जी, विश्रुत विद्वान डॉ वेदपाल जी, डॉ ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी, आचार्य आनन्द पुरुषार्थी जी आदि। आर्य समाज कलकत्ता के उप प्रधान श्री अशोक सिंह जी द्वारा प्रसिद्ध गीत “दुनिया वालों देव दयानन्द दीप जलाने आया था, भूल चुके थे राहे अपनी वो दिखलाने आया था ।’’ तदुपरान्त पूज्य योग ऋषि स्वामी रामदेव जी के ओजस्वी उद्बोधन से हुआ । स्वामी रामदेव जी ने अपने उद्बोधन मे कहा कि महर्षि दयानन्द जी को जो गौरव मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया । योग गुरु ने अपने उद्बोधन मे कहा कि उनकी शिक्षा – दीक्षा और संस्कार का मुख्य आधार आर्य समाज और स्वामी दयानन्द रहे हैं । अध्यक्ष स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि स्वामी दयानन्द जी का जीवन वेद प्रचार के लिए समर्पित था । उन्होने कहा कि हमारी आज की  दुर्दशा का कारण है वेद विमुख होना । मेरठ से पधारे परोपकारिणी सभा के पूर्व प्रधान डॉ॰ वेदपाल जी ने कहा कि महर्षि पुनर्जागरण के प्रणेता थे । अमेठी से पधारे विद्वान ज्वलंत कुमार शास्त्री ने कहा कि स्वामी दयानन्द आधुनिक भारत मे स्वभाषा, स्वदेश और स्वधर्म के लिए आंदोलन चलाया था ।ओडिशा से पधारे आचार्य सुदर्शन देव ने बताया कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को सही ढंग से अपनाने से ही मानव का कल्याण होगा । आचार्या आनंद पुरुषार्थी ने कहा कि इन कार्यक्रमों कि सार्थकता तभी है जब हम जमीन पर उतरकर काम करेंगे, तभी महर्षि दयानन्द के सपनों का भारत बन पाएगा । आचार्या सोमदेव जी ने कहा कि आर्य समाज वास्तव मे आदर्श मानव बनाने का आंदोलन है और हमे अपने को और तैयार करना होगा । सांसद स्वामी सुमेधा नन्द जी ने संगठित और मजबूती के साथ समाज को निरंतर चलने की बात कही । महामंत्री श्री विनय आर्य जी ने बंगाल मे अधिकाधिक संख्या मे बंगला पुस्तकों के प्रकाशन और सुदूर गाँवों मे नि:शुल्क वितरण करने से आर्य समाज का अधिक प्रचार होगा ऐसा बताया । सभी वक्ताओं ने महर्षि दयानन्द जी की कोलकाता/बंगाल यात्रा और उसके ऐतिहासिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला और आज के सन्दर्भ मे आर्य समाज के आन्दोलन की भूमिका पर विचार रखे। इसी उद्घाटन सत्र मे स्व० आचार्य प्रो० उमाकान्त उपाध्याय जी द्वारा रचित उनकी अंतिम पुस्तक 'महर्षि वचन सुधा', डॉ ज्वलन्त कुमार जी द्वारा लिखित बंगाल मे महर्षि दयानन्द एवं बंगला भाषा मे चार पुस्तकें यथा 1. योगेश्वर श्रीकृष्ण ( पं॰ चमूपति जी) 2. ऋग्वेद एक सरल परिचय , 3. यजुर्वेद एक सरल परिचय ( डॉ॰ भवानीलाल भारतीय) 4. भारत भाग्य विधाता दयानन्द (स्वामी विध्यानन्द सरस्वती) आदि कतिपय पुस्तकों का विमोचन हुआ। कुशल संचालन श्री अशोक सिंह जी ने किया।

 

सायंकालीन सत्र का विषय 'महर्षि की महिमा' का था जिसकी अध्यक्षता स्वामी आर्यवेश जी ने की। मुख्य अतिथि सिक्किम के महामहिम राज्यपाल श्री गंगाप्रसाद जी ने कहा की वेदिक ज्ञान ही मनुष्य के शांति का आधार है तथा आज के समय मे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मे भी आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है ।  विद्वान वक्ताओं ने महर्षि की महत्ता और उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। सर्वश्री धर्मेंद्र जिज्ञासु, डॉ वेदपाल जी, डॉ ज्वलन्त कुमार शास्त्री, भानुप्रकाश जी आर्य, स्वामी सुमेधानन्द जी आदि वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे। पं॰ योगेश राज उपाध्याय जी ने इस सत्र का सञ्चालन किया।

 

31 दिसम्बर को प्रातः यज्ञ के पश्चात कर्मठ कार्यकर्ता श्री रमेश अग्रवाल जी ने वानप्रस्थ की दीक्षा ली और दीक्षा गुरु स्वामी आर्यवेश जी ने इनका नया नाम मुनि रमेश वानप्रस्थ वेदसैनिक रखा।

यज्ञ के बाद संस्कार और कर्मकाण्ड पर सभा हुई। पं राहुल देव जी ने मंच संचालन किया। प्रसिद्ध विद्वान डॉ वेदपाल जी ने इस सत्र की अध्यक्षता की। सर्वश्री डॉ॰ वेदपाल जी , डॉ॰ ज्वलंत कुमार शास्त्री , आचार्य सोमदेव जी, आचार्य सुदर्शन देव जी , आचार्य आनन्द पुरुषार्थी जी ने अपने विचार रखे।

सायंकालीन सत्र में वेद सम्मेलन का आयोजन हुआ। वैदिक विद्वान मुनि शुचिषद वानप्रस्थ ने इस सम्मेलन का संयोजन किया। अध्यक्षता की सर्वश्री डॉ॰ वेदपाल जी ने। मंगला चरण पाणिनी कन्या विध्यालय (वाराणसी) की छात्राएँ सूश्री मुदिता शास्त्री , प्राची शास्त्री , सत्या शास्त्री के जटा / दंड / महावामदेव्य के पाठ द्वारा प्रारम्भ हुआ । जिन वक्ताओं ने वेदों की महिमा और महत्ता का प्रतिपादन करते हुये अपने विचार रखे थे वे सर्वश्री डॉ॰ ज्वलंत कुमार शास्त्री , आचार्य सोमदेव जी, आचार्य आनंद पुरुषार्थी , आचार्य ब्रह्मदत्त जी , पं॰ भानुप्रकाश आर्य।

1 जनवरी को प्रातः ऋग्वेदीय परायण यज्ञ की पूर्णाहुति हुई।रविवारीय सामूहिक साप्ताहिक सत्संग पर मुनि शुचिषद  वानप्रस्थ जी ने सत्यार्थ प्रकाश की कथा की। प्रातःकालीन सत्र की अध्यक्षता की प्रमुख आर्य सन्यासी स्वामी आर्यवेश जी ने तथा मुख्य अतिथि थे गुजरात के महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी एवं विशिष्ट अतिथि थे बागपत से सांसद श्री सत्यपाल सिंह जी, आर्य नेता श्री सुरेश आर्य जी भी उपस्थित थे। आचार्य देवव्रत जी ने महर्षि दयानन्द को श्रद्धांजलि देते हुये स्वयं को आर्य समाज का व गुरुकुलीय शिक्षा का सिपाही बताया। गुरुकुलीय शिक्षा पर जोर देते हुये उन्होंने कहा कि  राष्ट्र व समाज निर्माण के लिए गुरुकुलों को उन्नत करने की आवश्यकता है और हमसब को भी अपने बच्चों को गुरुकुलों में भेजना चाहिये। श्री सत्यपाल सिंह जी ने भी अपने ओजस्वी वक्तव्य में सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए आर्य समाज कलकत्ता की भूरि भूरि प्रशंसा की। आर्य नेता श्री सुरेश आर्य जी ने संगठन की एकता पर बल दिया।

 

सायंकालीन अन्तिम सत्र में आर्य समाज बड़ाबाजार के प्रधान श्री आनन्द देव आर्य जी का सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया। मुनि शुचिषद वानप्रस्थ, पं योगेश राज उपाध्याय, आचार्य ब्रह्मदत्त व पं॰ राहुलदेव जी ने सम्माननीय व्यक्तित्व का अभिषेक किया और तिलक लगाया। आर्य समाज कलकत्ता के प्रधान श्री ध्रुवचन्द जी व मन्त्री श्री दीपक आर्य जी ने माला, अभिनन्दन पत्र, शॉल व एक चेक श्री आनन्द जी को भेंट किया।

डॉ॰ ज्वलन्त जी ने आर्य नेताओं का आह्वान किया कि आर्य समाज के विद्वानों के संरक्षण और पालन की आवश्यकता है।

इस सत्र का एक विशिष्ट कार्यक्रम बंगाल के आर्य विद्वानों और कार्यकर्ताओं का स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित करना रहा। मंत्री श्री दीपक जी ने सम्मेलन के सफल आयोजन के लिये सभी विशिष्ट अतिथि, सन्यासी, विद्वान एवं प्रतिभागियों और आगन्तुक जनता का धन्यवाद किया।

 

Sanskar Nirman ev Aatm Suraksha Shivir

65th Varshikotsav