: Grihasth
: Married
: Dead
: 07-01-1893
: yevala, nasik, maharashtra
: 21-11-1964
: chittaurh gurukul
: samanya

Father :

Mr jagajivan

Mother :

mrs saraswati devi

 à¤¸à¤‚सकृत भाषा में दयाननद दिगविजय तथा अनय अनेक उतकृषट कावयों की रचना करने वाले महाकवि मेधावरत का जनम नासिक जिले के येवला नामक कसबे में 7 जनवरी 1893 में शरी जगजीवन नामक क गृहसथ के यहां हआ। उनकी माता का नाम सरसवती देवी था। मेधावरत के अधययन का आरमभ उततरपरदेश à¤•à¥‡ सिकनदराबाद गरकल में हआ। कालानतर में यही गरकल पहले फररूखाबाद और उसके पशचात वृनदावन में सथानानतरित हआ। संसकृत भाषा और साहितय पर मेधावरतजी का असाधारण अधिकार था। अतः वे अपने छातर जीवन में ही संसकृत में सनदर कावय रचना करने लगे थे। परयाग से परकाशित होने वाली संसकृत की पतरिका शारदामें आपकी कृतिया-परकृति सौनदरयमनाटक तथा बरहमचरय शतकमको उसी समय परकाशित किया जब वह अभी गरकलीय विदयारथी ही थे। सवासथय बिगड़ जाने के कारण मेधावरत को गरकल की शिकषा को अधूरा छोड़ कर अपने गराम लौटना पड़ा।

            सवासथय में सधार होने के अननतर मेधावरत गृहसथाशरम में परविषट ह। इसी समय उनहोंने संसकृत में कमदिनीचनदरजैसा उतकृषट उपनयास लिखकर गदय पर अपने असाधारण अधिकार को सिदध किया। मेधावरत को कोलहापर सथित वैदिक विदयालय में मखयाधयापक नियकत किया गया। वे इस कारय को सफलतापूरवक कर रहे थे कि उनहें इनफलंजा का शिकार होना पड़ा। अतः वे कोलहापर छोड़कर येवला चले गये। जब असहयोग आंदोलन के दौरान सथान-सथान पर नेशनल कालेजों की सथापना हई तो पं. मेधावरत को सूरत नेशनल कालेज में हिनदी का संसकृत के पराधयापक पद पर नियकत किया गया। कछ वरष यहां सफलतापूरवक शिकषण करने के उपरानत पं. मेधावरत कनया गरकल ईटोला में आचारय पद पर 1926 में नियकत ह। जब 1929 में यह गरकल बड़ौदा ले आया गया और आरय कनया महाविदयालय के रूप में संचालित होने लगा तो आचारय मेधावरत कनया-शिकषण के इस परमख केनदर के आचारय पद पर परतिषठित किये गये। 1940 परयनत वे यहा रहे। ततपशचात सवतनतर रूप से साहितय और कावय रचना में ही अपना समय लगाने लगे। जीवन के अनतिम वरषों में मेधावरतजी गरकल जजर तथा गरकल चिततौड़गढ़ के छातरों को विभिनन शासतरों की शिकषा दिया करते थे। 21 नवमबर 1964 को उनका चिततौड़ गरकल में निधन हो गया।

            ले. का.-संसकृत कावय-दयाननद दिगविजय महाकावय पूरवारदध-12 सरगों में समापत महाकावय का यह परारमभिक अंश 1994 वि. (1938) में भाणा भाई वैदय गरंथमाला परथम पषप के रूप में परकाशित हआ। संसकृत महाकावय का हिनदी अनवाद शरतबनध शासतरी ने किया था।

            दयाननद दिगविजय महाकावय उततरारदध-15 सरगों में समापत महाकावय का यह उततरारदध कवि के अनज सतयवरत तीरथ दवारा हिनदी में अनूदित हआ।  (2003 वि. 1947)।

            दयाननद लहरी-गंगालहरी की शैली में लिखा गया कावय, दयाननद जनम शताबदी के अवसर पर 1925 में परकाशित, वेदवरत भाषयाचारय लिखित हिनदी टीका सहित विशवमभर वैदिक पसतकालय गरकल जजर दवारा 2012 वि. में परकाशित, बरहमरषि विरजाननद चरितम-वेदवरत भाषयाचारय लिखित टीका सहित (2012 वि.)।

            महातममहिममणिमंजूषा-महातमा नारायण सवामी के चरित को लेकर लिखा गया (2014 वि.), बरहमचरय शतक-विरजाननद वेद वागीशा ने इस कावय की अनवयपूरवक हिनदी टीका लिखी है (2010 वि.)। गरकल शतक-गरकल शतक की रचना महाकवि ने चिततौड़गढ गरकल में रहते समय की थी। वेदवरत शासतरी की हिनदी टीका के साथ इसका परकाशन 2017 वि. में। बरहमचरय महततवम-अथरववेद के बरहमचरय सूकत के 26 मंतरों की यह छंदोबदध वयाखया है। इसके हिनदी टीकाकार सवामी वेदाननद वेदवागीश थे (2012 वि.)। ईशोपनिषतकावयम-ईशोपनिषद के मंतरों का यह संसकृत कावयानवाद है। दिवयाननद लहरी-लहरी शैली में लिखा गया यह कावय सतयवरत शासतरी लिखित शरमदा टीका सहित गरकल चिततौड़गढ से 2015 वि. में परकाशित।

            मेधावरताचारय के अनय गरनथ-कमदिनीचनदर-उपनयास की शैली पर लिखा गया यह संसकृत का कथा गरनथ परथम बार 1973 वि. में परकाशित हआ। शदधिगंगावतार-संसकृत उपनयास अपूरण व अपरकाशित। परकृति सौनदरयम-(नाटक) संसकृत के इस परकृति सौनदरय वरणन परक नाटक की रचना मेधावरत ने छातरकाल में की थी। कालानतर में पं. शरतबंध शासतरी लिखित भावसंदीपिनी भाषा टीका सहित यह नाटक शरी सतयवरत दवारा 1934 में परकाशित हआ। संसकृत सधा-संसकृत शिकषा के लिये पाठयगरनथ के रूप में संकलित। छनदःशासतरम-पिंगलाचारय रचित छंदशासतर का वयाखया परक गरनथ (2024 वि.), कावयालंकार सूतर-वामनाचारय के कावयालंकार सूतरों पर मेधावरत ने वरतिमंगला नामक संसकृत टीका लिखी। (2018 वि.), चारचरितामृतम-आरयसमाज के अनेक महापरषों का संसकृत गदय में जीवनचरित। सफट गरनथ-गिरिराज गौरव-हिमालय परवत की महिमा का परकाशक हिनदी कावय 1989 वि., दिवय संगीतामृत-संगीत विषयक गरनथ।