Swami Satya Prakash Saraswati

Father :
Shri Ganga Prasad Upadhyay

Spouse :
Dr ratnakumaari

सवामी सतयपरकाश सरसवती का वयकतितव अनेक अदà¤à¤¤ विशिषटताओं से संपनन था । उनहें ‘विजञान, धरम और साहितय की तरिवेणी ” ठीक ही कहा गया है सà¤à¥€ विशेषतां क साथ क ही वयकति में बहत कम देखने में आती हैं । सवामी जी विविध विषयों पर परà¤à¤¾à¤µà¥€ ढंग से सारगरà¤à¤¿à¤¤ वयाखयान देने में अपने समय में अदà¤à¤¤ थे ।
विशवविदयालयों में विजञान की शिकषा हेत ऊचे सतर के गरनथ अंगरेजी में अधिकतर बरितिश विजञान विशारदो दवारा लिखित ही उपलबध होते थे । डॉ. सतयपरकाश, इलाहाबाद विशवविदयालय के विजञान संकाय में अधयापक होने के कारण à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ विदयारथियों की आवशयकताओं को à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤¤à¤¿ अनà¤à¤µ करते थे ।
अतः उनहोंने इसे दृषटि में रखते ह अंगरेजी में विजञान से संबदध कई उपयोगी गरनथ लिखे जो इस दिशा में उतकृषट उदाहरण उपसथित करते हैं ।à¤à¤¾à¤°à¤¤ ने पराचीन काल में विजञान की विविध विधाओं में अनवेषण कर विसमयकारी परगति परापत की थी । डॉ. सतयपरकाश ने समरपित à¤à¤¾à¤µ से अथक परिशरम कर ततकालीन साहितय को नवजीवन दे पूरणरूपेण परमाणित कर दिया कि यह देश विजञान के कषेतर में अनय देशों की अपेकषा सरवाधिक अगरणी वं सरवोपरि है ।
वेदपरायण सवामी सतयपरकाश सरसवती उचचकोटि के विदवान वं महान चिनतक थे तथा वह असीमित रचनातमक ऊरजा के धनी थे । वेदों की जञान गरिमा को विदेशी à¤à¥€ सम लें अत व अंगरेजी में विशदरूप से २६ खणडों में चारों वेदों का अथक परिशरम से यथातथय परसतत किया गया अनवाद सामी जी का क सथायी संपतति की à¤à¤¾à¤¤à¤¿ सरवोपरि अनदान है । वैदिक वाङमय संबनधी अनेक साहितयों का सृजन à¤à¥€ किया जिनमें शतपथ बराहमण की à¤à¥‚मिका, उपनिषदों की वयाखया योगà¤à¤¾à¤·à¤¯ आदि विशेष पठनीय हैं । विजञान संबनधी अनेक पसतकें सवामी जी ने लिखी हैं जो विशव विदयालय के पाठयकरमों में तथा शोधारथिओं के पाथेय बने ह हैं ॥