: Married
: Dead
: 27-10-1893
: Amritsar
: 01-11-1968
: Panjabi Bagh Delhi
: Natural Death

Father :

Lala Chandan Lal

Mother :

Heera Devi

 The great vedic  ResearchScholar 

आरयसमाज में वैदिक शोध के परवरतक पं. भगवददतत का जनम 27 अकटूबर 1893 को अमृतसर में हआ। इनके पिता का नाम लाला चंदनलाल तथा माता का नाम हरदेवी था। इणटरमीडियेट तक आपकी शिकषा विजञान में हई, ततपशचात 1913 में बी. . की परीकषा में उततीरण ह और वेदाधयायन को ही अपने जीवन का लकषय बनाया। इनके गर सवामी लकषमणाननद थे, जिनके विचारों का पं. भगवददतत पर परगाढ़ परभाव पड़ा। सवामी लकषमणाननद ने सवामी दयाननद से योगाभयास की विधि सीखी थी। पणडित भगवददतत ने बी. . की परीकषा डी. . वी. कालेज लाहौर से उततीरण की थी। लगभग 6 वरष तक अवैतनिक रूप में वे डी. . वी. कालेज में कारय करते रहे। ततपशचात à¤®à¤¹à¤¾à¤¤à¤®à¤¾ हंसराज की परेरणा से मई 1921 में वे डी. . वी. कालेज लाहौर के अनसंधान विभाग के अधयकष बने। इस अवधि में पणडितजी ने इस विभाग के पसतकालय के लिये लगभग 7000 हसतलिखित गरनथ कतर किये। 1 जून 1934 में पं. भगवददतत ने डी. . वी. कालेज की सेवा से मकति परापत की तथा सवतनतर रूप से अधययन तथा अनसंधान कारय में लग ग। देश à¤µà¤¿à¤­à¤¾à¤œà¤¨ के पशचात à¤ªà¤‚जाबी बाग दिलली में अपना मकान बनाकर लेखन, मनन तथा अधययन में जट ग। पं. भगवददत 4 मारच 1923 को परोपकारिणी सभा के सदसय निरवाचित ह। आपने समय-समय पर सभा को सवामी दयाननद के गरनथों के मदरण, समपादन तथा परकाशन के समबनध में उपयोगी साव दिये। वे इस सभा की विदवतसमिति के सदसय भी रहे। 22 नवमबर 1968 को पणडितजी का 75 वरष की आय में दिलली में ही निधन हो गया।

            ले. का.-वैदिक वाङमय का इतिहास-यह पं. भगवददतत की शीरषसथ तथा परौढ़ शोध कृति है। तीन खणडों में वैदिक वाङमय à¤•à¤¾ वयवसथित इतिहास लिखने का शलाघनीय वं सफल परयास किया गया है। परथम खणड में वेद की शाखाओं का खोज पूरण इतिहास है। इसका परथम संसकरण चैतर 1991 वि. में लाहौर से छपा था। इस इतिहास का दवितीय भाग, जिसमें बराहमण वं आरणयक साहितय का विवेचन हआ है, शरीमददयाननद महाविदयालय संसकृत गरनथमाला सं. 10 के अनतरगत 1954 वि. (1927) में डी. . वी. कालेज लाहौर के शोध विभाग दवारा परकाशित हआ। तृतीय भाग में वेदों के भाषयकारों का विवरण उपसथित किया गया। यह दयाननद म. गर. मा. के 13वें पषप के रूप में 1988 वि. (1931) में परकाशित हआ।

            पं. भगवददत के दिवंगत होने पर इस महततवपूरण गरनथ का क और संसकरण पणडितजी के सपतर पं. सतयशरवा ने परकाशित किया। तदनसार वैदिक वाङमय à¤•à¤¾ इतिहास परथम भाग अपौरषेय वेद तथा शाखाशीरषक से परणव परकाशन नई दिलली से नवमबर 1978 में परकाशित हआ। इससे पूरव फरवरी 1974 में दवितीय भाग बराहमण वं आरणयकतथा जनवरी 1976 में तृतीय भाग वेदों के भाषयकारशीरषक पनः परकाशित ह। तीनों भागों के समपादक पं. सतयशरवा ही हैं।

ऋगवेद पर वयाखयान-

            यह गरनथ शरीमददयाननद महाविदयालय संसकृत गरंथमाला संखया 2 के अनतरगत 1977 वि. (1920) में परकाशित हआ।

            ऋङ मंतर वयाखया-इसमें सवामी दयाननद ने वेदभाषय से भिनन अपने गरनथों में जिन विभिनन मंतरों की वयाखयायें लिखी हैं, उनका संकलन तथा समपादन किया गया है।

            वेदविदया निदरशन -वेद मनतरों में निहित पराकृतिक वं भौतिक तथयों का उदघाटन करने वाला यह अपूरव गरनथ है। (1959)।

            निरकत भाषाभाषय-यासकीय निरकत की परथम बार लिखी गई आधिदैविक परकरियापरक वयाखया (2021 वि.) 

अनय समपादित गरनथ-

            अथरववेदीया पंचपटलिका-शरीमददयाननद महाविदयालय, संसकृत गरनथमाला संखया 1 के अनतरगत परकाशित 1977 वि. (1920) अथरववेद का तृतीय शिकषण गरनथ।

            अथरववेदीया माणडूकी शिकषा-उकत गरनथमाला संखया 5 के अनतरगत (1978 वि.)।

            वालमीकि रामायण के बाल, अयोधया तथा अरणयकाणडों के पशचिमोततर काशमीरी संसकरण का समपादन, द. म. गरनथमाला संखया 7 के अनतरगत।

            चारायणीय शाखा मंतरारषाधयाय, आथरवण जयोतिष, धनरवेद का इतिहास, आचारय बृहसपति के राजनीति सूतरों की भूमिका।

            पं. भगवददतत ने अंगरेजी में दो लघ किनत महततवपूरण गरनथ लिखे, जो इस परकार हैं- 1. Extraordinary Scientific Knowledge in Vedic works. à¤…नतरराषटरीय पराचय विदयापरिषद के दिलली अधिवेशन में पठित शोधपूरण निबनध,  2. Western Indologists : A study in Motives. 
 
पशचिमी भारततततवविदों की पूरवागरहपूरण धारणाओं का सपरमाण खणडन (2011 वि.)।

इतिहास वं भाषाविजञान विषयक गरनथ-

            भारतीय राजनीति के मूल तततव-आरय महासममेलन के मेरठ अधिवेशन (1951) के अवसर पर आयोजित राजनीति परिषद के अधयकष पद से दिया गया शोधपूरण भाषण। भारतवरष का इतिहास-(1940)।

            भारतवरष का बृहद इतिहास दो भाग-(2017 वि.), भाषा का इतिहास, भारतीय संसकृति का इतिहास, ऋषि दयाननद का सवरचित (लिखित वा कथित) जनम चरित, ऋषि दयाननद के पतर और विजञापन-खतौली निवासी शरी मामराजसिंह के सहयोग से सवामी दयाननद के पतरों और विजञापनों का समपादित संसकरण-परथम भाग 1918 में, दवितीय 1919 में तथा तृतीय 1927 में परकाशित। पनः समगर रूप में (2002 वि.) तथा (2012 वि.) में, सतयारथपरकाश à¤•à¤¾ पं. भगवददतत दवारा समपादित संसकरण 1963 में गोविनदराम हासाननद दिलली ने परकाशित किया।

            पं. गरदतत गरनथावली-पं. सनतराम बी. . के सहयोग से महामनीषी पं. भगवदतत के समसत अंगरेजी वाङमय à¤•à¤¾ पं. भगवददतत ने हिनदी में अनवाद किया तथा राजपाल णड संस लाहौर से 1975 वि. में परकाशित कराया।

 

            पं. भगवददतत का अनतिम गरनथ Story of Creation à¤‰à¤¨à¤•à¥‡ निधन के दो मास पूरव परकाशित हआ।


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