Vijayadashmi

Initiation of Victory and Business Voyages
12 Oct 2024
Ashwin Shukl 10, 2081
: 12 Oct 2024
: Gazetted

विजया दशमी का दिन हिनदओं का क पवितर दिन है कयोंकि इसी शभ महरत में मरयादा परूषोततम राम ने विजय यातरा की थी और कछ समय मे ही लंकापति रावण का वध कर असंखय पराणियों को उसके अतयाचारों से मकत किया था। राम की यह विजय धरम की अधरम पर अपूरव विजय थी। राम ने रावण का राजय छीनने के लि लंका पर चढ़ाई नही की थी और न लंका की परजा को दास बनाकर उसका दोहन शोषण करने के लि ही, अपित आरय परमपरा के अनसार अतयाचार के उनमूलन और धरम की परतिषटा  à¤•à¥‡  à¤²à¤¿ की थी। उनहोनें अपनी विजय से सचचे वीर का आदरश उपसथित करके आरय परथानमोदित कषतरिय धरम की महिमा उपसथित करके आरय परथानमोदित कषतरिय धरम की महिमा का भवय दिगदरशन कराया था। यूरोप और अमेरिका के वरतमान यदध देवता  à¤‡à¤¸ आदरश को जितना शीघर अपनाकर करिया में लायें उतना  à¤¹à¥€ विशव शनति के लि शरेयसकर है।

मरयादा परूषोततम राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लि अयोधया या मिथिला से सैनिक सहायता परापत न की थी। उनहोंने सवयम अपने बल पर यदध किया था। विजयादशमी का दिन उस दिन का समरण कराता है, जब आरय जाति का जाति-सलभ तेज मौजूद था। जब वह अतयाचार के उनमूलन और पीडि़तो के रकषण के लि शकतिशाली अतयाचारी के मकाबले में संगठनातमक परतिभा के बल पर जंगली जातियों को ला खड़ा करना जानती थी। भगवान राम का हम सतकार करते है, कयोंकि उनहोनें आरयजाति की मरयादा के अनरूप नेतृतव और शौरय परदरशित किया और विशवास की भावना को गौरवानवित किया था।

राम हमारे पूजय है, इसलि नहीं कि वे भगवान के अवतार थे। वे दनिया को मन चाहा नाच नचा सकते थे। उन के नाम का जाप करने मातर से मनषय भवसागर से तर जाता है। वह सूरय को पशचिम में उदय कर सकते थे। मरदे को जिला सकते थे। समदर को सखा और सूरय-चनदर को पृथवी पर उतार सकते थे इतयादि इतयादि। हम उन की पूजा इसलि करते हें कि वे आदरश परूष थे और आरय संसकृति के मूरतिमान परतीक थे।

इटली के पनदरहवी शताबदी के कूटनीतिजञ मेकावेली ने अपने देश के सीजर बोरजिया को आदरश परूष बताया और अपनी संसार परसिदध पसतक ‘राजा’ में ततकालीन यूरोपीय शासको को उस का अनकरण करने का परामरश दिया।

इस के कई शताबदियों बाद क जरमन दारशनिक का जनम हआ जिस का नाम निटशे था। इस ने भी सीजर बोरजिया को आदरश परष माना और आशा परकट की कि जरमन यवक उसके अनरूप होगा। निटशे ने नेपोलियन को भी संसार का आदरश परूष बताया और कहा कि संसार में वही जाति अनय जातियों के ऊपर शासन कर सकेगी जिस के यवकों में इन दोनों परूषों के गण विदयमान होंगे।

सीजर बोरजिया और नैपोलियन में आकाश, पाताल का अनतर हैं। नैपोलियन के परतिभावान योदधा होने में कोई सनदेह नहीं किया जा सकता, पर सीजन बोरजिया अपने समय का सब से अधिक घृणित और पतित वयकति था। उस ने अपने भाई को मरवा दिया था। क महिला का सतीतव नषट किया था और अपनी माता के अपमान का बदला लेने के लि निरदोष सविस जनता को तलवार के घाट उतार दिया था। वह विष की उपयोगिता में विशवाश रखता था और अपने शतरओं पर विजय पाने की चिनता में उचित और अनचित का धयान रखना आवशयक न समता था। उस की तलना अरबिसतान के हसन बिन सबबाह से की जा सकती है। जिस ने शतर से छटकारा पाने के मामले में छरे के उपयोग को धरमोदेश कीर पवितरता परदान की थी।

मेकावेली और निटशे किसी वयकति के आदरश वा देवापम होने के लि उस में जिन गणों की     à¤‰à¤ªà¤¸à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ आवशयक समते थे, उन में भौतिक बल, कूटनीतिजञ, सामराजय लोलपता और नृशंसता को विशेष रूप से महतव दिया गया था। मैकावली सवयं कूटनीतिजञ था, इसलि उसे सीजन बोरजिया को चरितर विशेष रूप से रूचा। निटशे का परादरभाव तब हआ जब फरेडरिक महान और उस के कृपण पिता के दवारा परशिया में सैनिकवाद का परतिपादन हो चका था। निटशे को परूशियन सैनिक के कायदे कानून की पाबनदी और निरदयता विशेष रूप से रूचिकर लगी। और आशा परकट की कि संसार का भविषय  à¤ªà¤°à¥‚शियन सैनिक के हाथ मे है। परनत चूंकि वह उसे पूरणरूपेण देवोपम परूश के रूप में देखना चाहता था, इसलि उस ने सीजन का मितरघात करने को मनोवृति और नैतिक चरितरहीनता को भी अपनाने की सलाह दी।

यह कहना आवशयक है कि दूसरे महासमर के जरमन नेताओं के कारयकलाप विचार-बिनदू पर निटशे की गहरी छाप लगी हई थी। परनत मैकावली ने यूरोप के शासकवरग को सीजर बोरजिया के जिन गणों को अपनाने की सलाह दी थी और निटशे ने पूशियन सैनिक को उस के जिन गणों के कारण संसार का भावी शासक पूरण वा देवापम परूष समा जाता था, वे गण कहीं अधिक विकसित मातरा में शियायी विजेताओं में या मंगोल और तरक सैनिकों में विदयमान थे।

आरय संसकृति के देवापम परूष की विभावना इन मधय षियायी इटालियन या परशियन  à¤µà¤¿à¤­à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं से बिलकल भिनन परकार की रही है। सीजर बोरजिया ने अपने पिता का अनराग सवयम अपनाये रहने की इचछा से अपने भाई की हतया करवा दी। भरत ने राजय मिलने पर भी उसे तिरसकारपूरवक ठकरा दिया और भाई का अनगामी रहकर ही सनतोष किया। नेपोलियन ने रूस के ततकालीन जार लेकजेणडर से चिरकालीन मितरता की सनधि की (जिस परकार हिटलर ने सटोलिन से अमर सनधि की थी) और अवसर  à¤ªà¤¾à¤¤à¥‡ ही मितर के साथ विशवासघात किया। राम ने क बहत कमजोर आदमी का पकष गरहण किया और अनत तक उस का साथ निभाया। औरंगजेब ने अपने पिता को कैद में डाला और भाइयों को मरवा दिया। ठीक उसी तरह जिस जिस तरह उनके पिता ने राजय परापति के लि अपने भाइयों को मरवाया था। राम ने अपने दरबल, शकतिहीन और सतरैण पिता की आजञा का सहरष पालन किया और अपने भाई भरत के विरूदध षडयनतर करने के गनदे विचार को भी मन में न आने दिया।

संसार का देवापम परष होने के लि किसी वयकति के भीतर किस परकार के गणों का उपसथिति आवशयक है? उन गणों की जो उस की बरबर परवृति को करीडा करने का अवसर देते हैं या उन गणों की  à¤œà¥‹ वयकति की सदवृति को विकसित करके समाज के नितय और निरधारित नियमों का पालन करने और उन में विकास करने की परेरणा देते है? सीजन ईसाई था, नेपोलियन भी ईसाई था। मूसा के दस आदेश वाकय परतयेक ईसाई को उस समय भी मानय थे जैसे आज मानय हैं, परनत मेकावेली और निटशे के आदरश परूषों ने इन सभी आदेश वाकयों के विरूदध आचरण किया। भारतीय समाज में भी नियम उपनियम समाज के सृजन के आरमभकाल से चले आ रहे हैं। हम राम को परम शरदधा की दृषटी से देखते है, कयोंकि उनहोनें उन नियमों का साधारण वयकति की भांति पालन किया। उसी परकार हम बाली और रावण को घृणा और तिरसकार की दृषटि से देखते हैं, कयोंकि उन में से क ने अपने भाई की सतरी पर अधिकार करके और दूसरे ने समाज की रकषा करने के सथान उललंघन किया। इस परकार जहां मेकावेली और निटशे के दृषटिकोण से बाली और रावण ही देवापम परूश सिदध होंगे। हमारी संसकृति हमें से वयकतियों को समाज का शतर और से वयकतियों से समाज को मकत करने वाले वयकतियों को उस का रकषक या पिता कहना सिखलाती है।

राम को आरय संसकृति की विशिषट देन कहने में जरा भी अतयकति नहीं हैं। जहां आरय संसकृति में मानवी  à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤¸ को पराधानय दिया गया है, वहां अरदध विकसित शियायी और यूरोपीय समाज में भौतिक विकास और परषबल को ही अपना आदरश सम गया है। यही कारण है कि अनेक तूफानों और बवंडरो की भयंकर चपेटों में से गजरने के बाद भी आरय संसकृति आज जीवित है। कोई जाति तभी तक जीवित रह सकती है जब तक वह मानवी विकास के पराकृतिक कारयकलाप में योग देती रहे। इतिहास बताता है की जिन जातिओं ने हतया, वयभिचार और मककारों को तयागकर आगे बने से इंकार किया और इनहीं को अपनी उननति और तषटि का साधन समा वे नषट हो गई।

आरय संसकृति के परतीक राम को हम नमसकार करते हैं। हम पूजय सीता के अजञात चरणों में भी अपनी शरदधांजलि परसतत करते हैं, कयोंकि वे अपने आचरण की आरय ललनाओं के चरितर पर अमिट छाप छोड़ गई हैं। उन का पातिवरतय और तयाग आरय ललना को अपना सारा जीवन ही तयागमय बनाने को परोतसाहित करता आ रहा है। लकषमण का संयम और भरत का भरातृपरेम अब भी हम में चरितरबल उतपनन करते और सफूरति परदान करते हैं।

हमारा आदरश परष से सरवथा भिनन है। हमारा आदरश परष मानव-समाज के लि मंगल, निसपृहता और शानति का सनदेश लेकर आता है। हमें भगवान राम का वह चितर परिय लगता है जिस में वह अपने भाई और पतनी के साथ नंगे शरीर वन की खाक छान रहे होते हैं। उनहे वह चितर अचछा लगता है जिस में सीजर ने विष दवारा किसी शतर को समापत किया हो या नैपोलियन किसी नगर पर तोप के गोलों की वरषा कर रहा हो या परूशियन सैनिक आकाश की और टांगे फैकता हआ आगे बढ़ रहा हो। यही अनतर है और इसी अनतर में हमारी जाति के अमरतव का रहसय छिपा हआ है।                                                                -रघनाथपरसाद पाठक

विजया दशमी के दिन अपराजिता देवी के पूजन की उदभावना भी पौराणिक काल में ही हई थी। इस का सरोत सयात सरसवती की वागदेवी की आकृति के समान कविकलपना-परसूता अपरोजय वा विजया की अपराजिता नामरी देवी के रूप की मूरति की कलपना में विदयमान हो, कयोंकि पौराणिक षोंडशोपचार पूजा का सूतरपात कविकलपित रूपकों से ही हआ। अपराजिता का अपभरंश पायता परतीत होता है जो विजया दशमी का नामानतर परसिदध है। भारत के अजञानानधकार काल में इस अपराजिता देवी ने चणडी तथा कालिका आदि के अनेक नामों और रूपों से इतना पराबलय पाया कि उन की पूजा ने विजयादशमी के वासतविक सवरूप नीराजना विधि को बिलकल ढांप लिया और इस कपोल-कलपित महाभंयकर कालिका चणडी की रकतपिपासा इतनी बढ़ी कि उस की मूरति के सामने इस पवितर अवसर पर परूष से लेकर भैंसो और बकरो तक असंखय पराणियों की बलि होने लगी। विजया दशमी के दिन राजपूताने और महाराषटर की भूमि निरपराध पशओं के रकत से लाला हो जाती थी। सनतोश का विषय है कि दया धरम के परचारकों के उदयोग से अब यह जघनय अतयाचार कछ रजवाड़ो और सथानों में बंद हो गया है परनत आरयधरम के सेवकों के सामने अभी बहत कछ कारय पूरा करने को शेष है। आरय परूषो का परम करतवय है कि वे संसार से विविध अतयाचारों का लोप करके विजया दशमी आदि परवो के शदध और सनातनसवरूप का जनता मे पनः परचार करें और भारत के पराचीन इतिहास का भी शोध करके वासतविक तिहासिक घटनाओं की शदध तिथियों का जनसाधारण में परचारित करें। तभी वे अपने वैदिक धरमावलमबी आरय नाम को सारथक कर सकते हैं।