Acharya Dr. Sukama

Father :
Shri Rajendra Singh

Mother :
Smt. Ved Kaur

आपकी आरमà¤à¤¿à¤• शिकषा घर पर ही हई। ८ वरष की आपका कनया-गरकल नरेला (दिलली) में परवेश हआ। वहा से आपने ‘शरीमददयाननदारष विदयापीठजजर की शासतरी वयाकरणाचारय वं वेदाचारय की परीकषां उततीरण की। सन १९८२ में गरकल कांगड़ी विशवविदयालय हरिदवार से म.. (संसकृत) किया। सन १९८ॠमें महरषि दयाननद के वेदà¤à¤¾à¤·à¤¯ के परिपरेकषय में ‘वैदिक इनदर देवता’ विषय पर पी. च. डी. की उपाधि परापत की, जिसका परकाशन सन १९९९ में कसमलता आरय परतिषठान’ साहिबाबाद दवारा हआ।
कनया गरकल नरेला में आपने अनेक वरषों तक सयोगय वं सफल शिकषिका के रूप में आपने अनेक वरषों तक उचच शरेणी की छातराओं को शिकषित किया। वहीं पर ‘छातरा वागवरदधिनी सà¤à¤¾’ की मंनतरी वं पसतकालयाधयकषा à¤à¥€ रहीं।
गरकल-शिकषा काल में डाले गये ससंसकारों को मूरततरूप देने के लि आपने आजीवन बरहमचरय वरत धारण कर विदया संबंधिनी बहिन समेधा जी के साथ मिलकर गरकल-पदधति के उतथान को अपने जीवन का परमख लकषय बनाया तथा १९८८ में उततरपरदेश के जयोतिबा फलेनगर जिले के चोटीपरा गराम में ‘शरीमददयाननद कनया गरकल’ का शà¤à¤¾à¤°à¤®à¤ किया। संपरति दिनरात गरकल की सेवा ही आपका परमख कारयकषेतर है आप यथावसर विà¤à¤¿à¤¨à¤¨ कषेतरों में वैदिक-संसकृति के परचारारथ à¤à¥€ जाती रहती हैं।
आपके वयकतितव और करततृतव से परà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होकर विकरम परतिषठान ‘मानव सेवा परतिषठान’ दिलली आदि संसथाओं ने हृदय से सममानित किया है।