: 04-04-1937
: Fajalgadh, Ghaziabad

Father :

Shri Shivcharandas

 à¤µà¥ˆà¤¦à¤¿à¤• शास‍तरों के परौढ़ विदवान

      गराम में पराथमिक शिकषा के पश‍चात आपका आचारय-परयन‍त अध‍ययन गरकल ज‍जर में हआ। पंजाब विश‍वविदयालय चंड़ीगढ़ से विशारद, शास‍तरी, आचारय की परीकषां उततीरण कीं। मेरठ वि. विदयालय से म.. (संस‍कृत) की परीकषा उततीरण की।

      कछ समय तक गरकल ज‍जर में मख‍याध‍यापक के रूप में अध‍यापन करने के पश‍चात दिल‍ली-परशासन के अधीन, सन १९९८ तक संस‍कृत-अध‍यापन कारय किया।

      सेवा कारय में रहते ह व‍यकतिगत रूप में विदयारथियों को व‍याकरण-महाभाष‍य आदि का अध‍यापन किया।

      कन‍या गरकल नरेला तथा गरकल गौतमनगर (दिल‍ली) में व‍याकरण आदि का अध‍यापन करते रहे। इसके अतिरिक‍त विभिन‍न समाजों, संस‍थाओं में वैदिक सिदधान‍तों का व‍याख‍यानों वं लेखन के माध‍यम से परचार किया। आरष-साहित‍य-परचार टरस‍ट दिल‍ली के गरन‍थ लेखन, सम‍पादन वं संशोधन के कारयों में आपका विशेष सहयोग पराप‍त होता रहा है, जिसके फलस‍वरूप अनेक महतत‍वपूरण गरन‍थ परकाश में आ सके हैं।

      आप दयानन‍द-सन‍देश पतर का अनेक वरषों से अवैतनिक सम‍पादन कर रहे हैं।

      आपके लिखे ह परमख गरन‍थ हैं-दयानन‍द वैदिक कोष, योगदरशन व‍यासभाष‍य, उपनिषदभाष‍य (ईश, केन, कठ), विशदध मनसमृति, षडदरशन-पदानकरमणिका आदि।

      आपने वेदारथ कल‍पदरम, संस‍कारभास‍कर, योगमीमांसा, उपदेश मंजरी, आरयाभिविनय, अष‍टाध‍यायी भाष‍य (चतरथ अध‍याय), दयानन‍द सन‍देश के अनेक विशेषांक आदि का कशलता से सम‍पादन किया है।

      आजकल आप आरष-साहित‍य-परचार टरस‍ट के परधान हैं।

      आपके लेखनकारयों की उत‍कृष‍टता के कारण आरय समाज सान‍ताकरज मम‍बई ने वेद-वेदांग परस‍कार से सम‍मानित किया। इसी परकार आरयपरतिनिधि सभा गाजियाबाद, सारवदेशिक आरय परतिनिधिसभा दिल‍ली, आरयसमाज नयाबांस दिल‍ली, विकरमपरतिष‍ठान अमेरिका, संस‍कृत-अकादमी दिल‍ली आदि ने सम‍मानित किया।

      आप  सरल स‍वभाव के ऋषिभकत वं परिशरमी वयकति हैं।