Pt Yudhishthir mimansak

Father :
Pt Gaurilal

Mother :
Mrs Yamuna Devi

Spouse :
Mrs Yashoda Devi

सपरसिदध विदवान तथा वैदिक वाङमय के निषठावान समीकषक पं. यधिषठिर मीमांसक का जनम राजसथान के अजमेर जिलानतरगत विरकचयावास नामक गराम में à¤à¤¾à¤¦à¤°à¤ªà¤¦ शकला नवमी सं. 1966 वि. तदनसार 22 सितमबर 1909 को पं. गौरीलाल आचारय के यहा हआ। पं. गौरीलाल सारसवत बराहमण थे तथा आरयसमाज के मौन परचारक के रूप में आजीवन कारय करते रहे। मीमांसकजी की माता का नाम शरीमती यमना देवी था। माता के मन में इस बात की बड़ी आकांकषा थी कि उसका पतर गरकल में अधययन कर सचचा वेदपाठी बराहमण बने। माता की मृतय उसी समय हो गई जब यधिषठिर केवल 8 वरष का ही था, परनत निधन के पूरव ही उसने अपने पतिदेव से यह वचन ले लिया था कि वे इस बालक को गरकल में अवशय परविषट करायेंगे। तदनसार 12 वरष की अवसथा में यधिषठिर को सवामी सरवदाननद दवारा सथापित साध आशरम पल काली नदी (जिला-अलीगढ़) में 3 अगसत 1921 को परविषट करा दिया गया। उस समय पं. बरहमदतत जिजञास, पं. शंकरदेव तथा पं. बदधदेव उपाधयाय, धार निवासी उस आशरम में अधयापन कारय करते थे। कछ समय पशचात यह आशरम गणडासिंहवाला (अमृतसर) चला गया। यहा उसका नाम विरजाननदाशरम रकखा गया।
परिसथितिवश दिसमबर 1925 में पं. बरहमदतत जिजञास तथा पं. शंकरदेव 12-13 विदयारथियों को लेकर काशी चले ग। यहा क किराये के मकान में इन विदयारथियों का अधययन चलता रहा। लगà¤à¤— अढ़ाई वरष के पशचात घटनाओं में कछ परिवरतन आया जिसके कारण जिजञासजी इनमें से 8-9 छातरों को लेकर पनः अमृतसर आ ग। कागज के सपरसिदध वयापारी अमृतसर निवासी शरी रामलाल कपूर के सपतरों ने अपने सवरगीय पिता की समृति में वैदिक साहितय के परकाशन वं परचार की दृषटि से शरी रामलाल कपूर टरसट की सथापना की थी, और इसी महततवपूरण कारय के संचालन हेत उनहोंने शरी जिजञास को अमृतसर बलाया था। लगà¤à¤— साढ़े तीन वरष अमृतसर में यधिषठिरजी का अधययन चलता रहा। कछ समय बाद जिजञासजी कछ छातरों को लेकर पनः काशी लौटे। उनका इस बार के काशी आगमन का परयोजन मीमांसा दरशन का सवयं अधययन करने तथा अपने छातरों को à¤à¥€ इस दरशन के गमà¤à¥€à¤° अधययन का अवसर परदान कराना था। फलतः यधिषठिरजी ने काशी रहकर महामहोपाधयाय पं. चिनन सवामी शासतरी तथा पं पटटाà¤à¤¿à¤°à¤¾à¤® शासतरी जैसे मीमांसकों से इस शासतर का गहन अनशीलन किया तथा गरजनों के कृपा परसाद से इस शषक तथा दरूह विषय पर अधिकार परापत करने में सफल रहे।
मीमांसा का अधययन करने के पशचात यधिषठिरजी अपने गर पं. बरहमदतत जिजञास के साथ 1935 में लाहौंर लौटे और रावी नदी के पार बारहदरी के निकट रामलाल कपूर के परिवार में आशरम का संचालन करने लगे। देश-विà¤à¤¾à¤œà¤¨ तक विरजाननदाशरम यहीं पर रहा। 1947 में जब लाहौर पाकिसतान में रह गया, तो जिजञासजी à¤à¤¾à¤°à¤¤ आ ग। 1950 में उनहोंने काशी में पनः पाणिनी महा-विदयालय की सथापना की और रामलाल कपूर टरसट के कारय को वयवसथित किया। पं. यधिषठिर à¤à¥€ कà¤à¥€ काशी, तो कà¤à¥€ दिलली अथवा अजमेर में रहते ह टरसट के कामों मे अपना सहयोग देते रहे। उनका सारसवत सतर निरनतर चलता रहा। दिलली तथा अजमेर में रहकर उनहोंने ‘‘à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पराचय विदया परतिषठान’’ के माधयम से सव गरनथों का लेखन व परकाशन किया। इस बीच वे 1959-1960 में टंकारा सथित दयाननद जनमसथान समारक टरसट के अनतरगत अनसंधान विà¤à¤¾à¤— के अधयकष à¤à¥€ रहे। 1967 से अब तक वे बहालगढ़ (सोनीपत) सथित रामलाल कपूर टरसट के कारयों को समà¤à¤¾à¤² रहे हैं। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के राषटरपति ने इनहें 1976 में संसकृत के उचच विदवान के रूप में सममानित किया तथा समपूरणाननद संसकृत विशव-विदयालय वाराणसी ने 1989 में उनहें महामहोपाधयाय उपाधि परदान की। 1985 में आरयसमाज सानताकरज बमबई ने मीमांसकजी को 75000 र. की राशि à¤à¥‡à¤‚टकर उनकी विदवता का सममान किया।
पं. यधिषठिर मीमांसक ने पराचीन शासतर गरनथों के समपादन के अतिरिकत ऋषि दयाननद कृत गरनथों को आलोचनातमक ढंग से समपादित करने का कारय किया है। इसके अतिरिकत उनके मौलिक गरनथों की संखया à¤à¥€ परयापत है।
ले. का.-महरषि दयाननद कृत गरंथो का समपादन- 1. ऋगवेदादिà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤à¥‚मिका-इस गरनथ का समपादन करते समय विदवान समपादन ने à¤à¥‚मिका के परायः सà¤à¤¾ परकाशित संसकरणों का निरीकषण वं परीकषण किया। विसतृत तथा अनेक महततवपूरण पाद टिपपणियों से यकत (2024 वि.)।
2. संसकार विधि-वैदिक यनतरालय से परकाशित विà¤à¤¿à¤¨à¤¨ संसकरणों की पूरी छानबीन करने के पशचात संसकारविधि का समपादित संसकरण (2023 वि.)। सतयारथपरकाश-अदयतन परकाशित संसकरणों का तलनातमक परिशीलन करने के पशचात सहसतरों पाद-टिपपणियों तथा अनेक उपयोगी अनकरमणिकाओं सहित (2029 वि.), दयाननदीय-लघ गरनथ संगरह-इसमें सवामीजी के अनय लघ गरनथों के अतिरिकत चतरवेद विषयसूची à¤à¥€ सममिलित की गई है। (2030), संसकृत वाकय परबोध-इस गरनथ के परथम संसकरण की मदरणजनय तरटियों के कारण पं. अमबिकादतत वयास ने ‘अबोध निवारण’ पसतक लिखकर संसकृतवाकय परबोध पर आकषेप किये थे। मीमांसकजी के इस संसकरण में वयासजी के कतिपय निररथक आकषेपों का समचित उततर देते ह गरनथ की तिहासिक विवेचना की गई है। (2026 वि.)।
वेदांग परकाश-मीमांसकजी दवारा समपादित वेदांगपरकाश के इन संसकरणों को आरय साहितय मणडल अजमेर ने परकाशित किया था। पूना परवचन-पूना के वयाखयानों के उपलबध पाठों का तलनातमक अनशीलन तथा परामाणिक पाठनिरधारण (2026 वि.)। कालानतर में इन परवचनों के मूल मराठी पाठउपलबध होने पर मीमांसकजी ने सीधे मराठी से इनहें अनूदित कर 1983 में परकाशित किया। à¤à¤¾à¤—वत-खणडनम-वरषों से अनपलबध सवामी दयाननद की इस मूल संसकृत कृति का उदधार तथा सानवाद समपादन। ऋगवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯à¤®-तीन खणडों में दयाननद कृत ऋगवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯ (मंडल 1, 105 सूकत परयनत) का समपादन। यजरवेदà¤à¤¾à¤·à¤¯ संगरह-पंजाब विशवविदयालय की शासतरी परीकषा में नियत दयाननदीय यजरवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯ के परासंगिक अंश का समपादन। ऋषि दयाननद के गरनथों का इतिहास (2006 वि.), परिवदधित संसकरण (2040 वि.), दयाननद निरवाण शताबदी के अवसर पर। समपादित शासतर गरनथ-यजरवेद संहिता (2017 वि.), माधयनदिन संहितायाः पदपाठ(2028 वि.)। वेदांग शासतरों पर लेखन कारय-शिकषा सूतराणि-आपिशलि, पाणिनी तथा चनदरगोमिन विचरित शिकषा सूतर (2005 वि.), वैदिक सवर मीमांसा (2014 वि.), वैदिक वाङमय में परयकत सवरांकन परकार-(2021 वि.), सामवेद सवरांकन परकार (2021 वि.), वैदिक छनदोमीमांसा (2016 वि.), निरकत समचचय (वररचि परणीत) इस गरनथ का समपादन मीमांसकजी ने लाहौर निवास के समय किया था।
संसकृत वयाकरण विषयक मौलिक तथा समपादित गरनथ-
संसकृत वयाकरण शासतर का इतिहास-3 खणड (2007-2030 वि.), कषीर तरंगिणी-पाणिनीय धातपाठके औदीचय पाठपर परणीत टीका का समपादन। दशपादी उणादि वृतति (1043), देवपरषकार वारतिकोपेत (पाणिनीय-धातपाठके लि उपयोगी गरनथ)। à¤à¤¾à¤—वृतति संकलनम-अषटाधयायी की पराचीन à¤à¤¾à¤—वृतति के उपलबध उदधरणों का संकलन वं समपादन। काशकृतसन धात वयाखयानम-आचारय काशकृतसन के धात वयाखयान का कननड़ लिपि में उपलबध संसकरण तथा इस पर कननड़ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में लिखित चननवीर कवि कृत टीका का संसकृत à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¨à¤¤à¤° (2022 वि.), काशकृतसन वयाकरण-इस वयाकरण के उपलबध 138 सूतरों का संगरह, वयाखया सहित। उणादि कोण-(समपादन), संसकृत धातकोष-विसतृत à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤°à¤¥ सहित (2023 वि.)। पातंजल महाà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤®-हिनदी वयाखया दो à¤à¤¾à¤— (1-2-4) (2029 वि.)। दवितीय à¤à¤¾à¤— (दवितीयाधयाय) (2031 वि.) शबद रूपावली, धातपाठ(2026 वि.)। करमकाणड के गरनथ-अगनिहोतर से लेकर अशवमेध परयनत शरौतयजञों का संकषिपत परिचय (डा. विजयपाल के सहलेखन में, 1984), शरौतयजञमीमांसा (1987), शरौतपदारथ निरवचनम (समपादन, 1984).
संसकृत पठन पाठन की अनà¤à¥‚त सरलतम विधि-à¤à¤¾à¤— 2, इस गरनथ का परथम à¤à¤¾à¤— पं. बरहमदतत जिजञास ने लिखा था। दवितीय à¤à¤¾à¤— मीमांसकजी ने लिखा (2027 वि.)। वैदिक नितय करम विधि (2028 वि.)। जैमिनीय मीमांसाà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤®-मीमांसा दरशन पर सपरसिदध शाबर à¤à¤¾à¤·à¤¯ का हिनदी अनवाद तथा उस पर ‘आरषमतविमरशिनी’ नामक हिनदी टीका लिखकर मीमांसकजी ने क बड़े कारय को पूरा किया है। अब तक यह à¤à¤¾à¤·à¤¯ पांच खणडों खणडों में परकाशित हआ है तथा परथम खणड में परथम अधयाय, दवितीय में तृतीय अधयाय के परथम पाद परयनत, तृतीय में तृतीय अधयाय की समापति तक, चतरथ में पंचम अधयाय तक तथा पंचम खणड में षषठअधयाय तक की वयाखया लिखी गई हैं। इन खणडों का परकाशन करमशः 2034, 2035, 2037, 2041 तथा 2043 वि. में हआ। परथम à¤à¤¾à¤— के आरमठमें शासतरावतार मीमांसा,