Pandit Tulsiram Swami

Father :
Pandit Hazari Lal Swami

अपने यग के अदवितीय शासतरजञ, वागमी तथा लेखक पं. तलसीराम सवामी का जनम जयेषठशकला 3 सं. 1924 वि. (1867) को मेरठजिले के परीकषितगढ गराम में पं. हजारीलाल सवामी के यहां हआ। आपकी परारमà¤à¤¿à¤• शिकषा पिता के साननिधय में हई। 9 वरष की आय में आपका यजञोपवीत संसकार समपनन हआ। 11 वरष की आय में बालक तलसीराम पर शीतला रोग का परकोप हआ, फलसवरूप उनके क नेतर की जयोंति नषट हो गई। गढमकतेशवर में उनहोंने पं. लजजाराम से संसकृत à¤à¤¾à¤·à¤¾ तथा वयाकरण का अधययन किया और अनय शासतर à¤à¥€ पढ़े। 1940 वि. में सवामी दयाननद रचित सतयारथपरकाश, ऋगवेदादिà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤à¥‚मिका तथा वेदांगपरकाश आदि गरनथों के पढ़ने से उनका काव आरयसमाज की ओर हआ। पनः 1941 वि. में देहरादून में उनहोंने पं. यगलकिशोर से अषटाधयायी तथा महाà¤à¤¾à¤·à¤¯ का अधययन किया। सवामी दयाननद के गरनथों के लिपिकरता पं. दिनेशराम से à¤à¥€ पढ़ने का उनहें अवसर मिला था।
मेरठके परसिदध आरयसमाजी विदवान पं. घासीराम के समपरक में आने पर पं. तलसीराम विधिवत आरयसमाज के सà¤à¤¾à¤¸à¤¦ बन गये। 1887 ई. में जब ततकालीन पशचिमोततर परदेश तथा अवध (वरतमान उततरपरदेश) की आरय परतिनिधि सà¤à¤¾ की सथापना हई तो पं. तलसीराम ने उसमें अपना योग दिया। वे कछ काला तक मेरठके देवनागरी विदयालय में अधयापक à¤à¥€ रहे। जब परसिदध सनातनधरमी विदवान पं. अमबिकादतत वयास मेरठआकर पौराणिक मत का परचार करने लगे तो पं. तलसीराम ने परबल यकतियों तथा शासतरीय परमाणों के बल पर वयासजी के मनतवयों का खणडन किया। इस पर देवनागरी विदयालयों के परबनधक उनसे रषट हो गये। सवामीजी ने à¤à¥€ इस संसथा से तयागपतर दे दिया और सरवातमना आरयसमाज के कारय में लग गये।
आरयसमाजिक जीवन-पं. तलसीराम सवामी ने आरयसमाज के शासतरारथकरता के रूप में कीरति अरजित की तथा कचेसर, मवाना, परीकषितगढ, आरा, दानापर, किराना आदि अनेक सथानों पर à¤à¤¿à¤¨à¤¨ मतावलमबियों को शासतरारथ समर में पराजित किया। 1948 वि. में वे आरय परतिनिधि सà¤à¤¾ पशचिमोततर परदेश के उपदेशक नियकत ह तथा परानत में सरवतर à¤à¤°à¤®à¤£ कर परचार कारय में जट गये। 1950 वि. में सवामी दयाननद के शिषय पं. à¤à¥€à¤®à¤¸à¥‡à¤¨ शरमा ने पं. तलसीराम को परयागसथित अपने सरसवती यंतरालय का परबनधक नियकत किया। अतः वे परयाग आ गये और पं. à¤à¥€à¤®à¤¸à¥‡à¤¨ शरमा के सहयोगी बन कर लेखन कारय तथा ‘आरय सिदधानत’ के मासिक के समपादन में उनकी सहायता करने लगे।
1955 वि. में पं. तलसीराम ने मेरठमें सवामी परेस की सथापना की तथा साहितय लेखन वं परकाशन का महान सारसवत यजञ आरमठकिया। जनवरी 1897 में उनहोंने ‘वेदपरकाश’ मासिक पतर का परकाशन किया। यह पतर अपने यग का परसिदध तथा लोकपरिय मासिक था। इसमें आरय सिदधानतों का मणडन तथा आरयसमाज के मनतवयों पर कियें जाने वाले आकषेपों का सपरमाण खणडन किया जाता था। आरयसमाज की ततकालीन गतिविधियों तथा अनय मतावलमबियों से होने वाले संघरषों, शासतरारथों तथा विवादों की जानकारी परापत करने के लिये इस पतर की फाइलें आवशयक सरोत के तलय है। 1898 में पं. तलसीराम ने पं. लेखराम आरयपथिक की समृति में क उपदेशक विदयालय सथापित किया। इसी विदयालय में अधययन कर पं. सतयवरत शरमा, पं. रदरदतत शरमा, पं. जवालादततशरमा, पं. मणिशंकर, पं. मनदतत तथा सवामी ओंकार सचचिदाननद आदि उपदेशक आरयसमाज के परचारक बने।
1909 से 1913 तक पं. तलसीराम आरय परतिनिधि सà¤à¤¾ के परधान रहे। उनके कारयकाल में ही संयकत परानत के गवरनर सर जैमस मैसटन 8 अगसत 1913 को गरकल वृनदावन में आये तथा उनहोंने गरकल शिकषा परणाली की à¤à¥‚रि-à¤à¥‚रि परशंसा की थी। उस समय पं. तलसीरामजी गरकल में शिकषण कारय à¤à¥€ करते थे। 17 जलाई 1915 की विशूचिका रोग से पं. तलसीराम सवामी का निधन हो गया।
पं. तलसीराम सवामी की साहितय साधना-सवामीजी ने अपने लेखन के दवारा आरयसमाज को उतकृषट साहितय परदान किया है। विà¤à¤¿à¤¨à¤¨ शासतरों के टीका, à¤à¤¾à¤·à¤¯ आदि के अतिरिकत उनहोंने खणडनमणडन से समबनधित अनेक महततवपूरण गरनथों का परणयन किया। वैदिक सिदधानतों पर किये जाने वाले आकषेपों तथा सवामी दयाननद की कृतियों पर लगाये जाने वाले आरोपों का उततर उनहोंने नितानत परौढ़ता के साथ दिया है।
ले. का.-ऋगवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯-सवामी दयाननद ऋगवेद के सपतम मणडल के 61वें सूकत के दवितीय मनतर तक ही à¤à¤¾à¤·à¤¯ कर सके थे। इसके आगे के मनतरों का à¤à¤¾à¤·à¤¯ पं. तलसीराम ने लिखना आरमठकिया था जो वेदपरकाश में जलाई 1916 से धारावाही छपने लगा। पं. तलसीराम के निधन के उपरानत उनके अनज पं. छटटनलाल ने इसे आगे लिखने का उपकरम किया। खेद है कि ऋगवेद का यह आंशिक à¤à¤¾à¤·à¤¯ पसतक रूप में परकाशित नहीं हआ।
सामवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯-पं. तलसीराम कृत सामवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯ संसकृत तथा हिनदी दोनों à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में लिखा गया है। परारमठमें यह मासिक रूप में जयेषठ1955 वि. (24 मई 1898) से परकाशित होने लगा। पशचात दो à¤à¤¾à¤—ों में सवामी परेस मेरठसे 1957 वि. में छपा। कालानतर में सारवदेशिक आरय परतिनिधि सà¤à¤¾ तथा दयाननद संसथान ने इसी à¤à¤¾à¤·à¤¯ को चतरवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯ परकाशन योजना के अनतरगत परकाशित किया।
उपनिषद à¤à¤¾à¤·à¤¯-कई उललेखों से पता चलता है कि सवामीजी ने ईश, केन, कठतथा मणडक इन चार उपनिषदों पर à¤à¤¾à¤·à¤¯ लिखा था, किनत हमारी जानकारी में उनहोंने शवेताशवतरोपनिषद पर ही संसकृत तथा हिनदी में परौढ़ à¤à¤¾à¤·à¤¯ लिखा था जो 1897 में परकाशित हआ।
मनसमृति à¤à¤¾à¤·à¤¯-कषेपक अंशों के सतरक विवेचन से यकत मनसमृति की यह पाणडितयपूरण टीका 1909 में परकाशित हई। 1979 वि. तक इसके 9 संसकरण छप चके थे जो गरनथ की अपार लोकपरियता सूचित करते हैं।
षडदरशन à¤à¤¾à¤·à¤¯-पं. तलसीराम ने सांखय, योग, नयाय, वैशेषिक, वेदानत तथा मीमांसा (केवल 25 सूकत) पर संकषिपत किनत यकतिपूरण à¤à¤¾à¤·à¤¯ लिखा। इन à¤à¤¾à¤·à¤¯ गरनथों के अनेक संसकरण निकले। विदरनीति की टीका 1955 वि. (1898 मई) में परकाशित हई। सवामीजी दवारा रचित शरीमदà¤à¤—वदगीता का वैदिक मनतवयानकूल à¤à¤¾à¤·à¤¯ अतयनत लोकपरिय हआ। रामलाल कपूर टरसट ने 2034 वि. (1977) में इसका क समपादित संसकरण परकाशित किया। वेदारमठ(परथम à¤à¤¾à¤—)
नारदीय शिकषा-शिकषा शासतर विषयक यह दरलठगरनथ पं. तलसीराम सवामी दवारा समपादित होकर फालगन 1963 वि. में परकाशित हआ। शलोकबदध वैदिक निघणट-अगनिचित शरी à¤à¤¾à¤¸à¤•रराय दीकषित कृत निघणट (समपादित) 1898।
आरय चरपटपंजरिका-शंकराचारय कृत चरपटपंजरिका सतोतर को वैदिक सिदधानतों के अनकूल परिवरतन कर हिनदी टीका सहित सवामी जी ने 1896 में सरसवती यंतरालय इटावा से परकाशित किया।
खणडन-मणडन के गरनथ
ऋगवेदादिà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤à¥‚मिकेनदूपराग (दवितीयोशं:)-बरेली के बरहमकशल उदासीन ने सवामी दयाननद कृत ऋगवेदादिà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤à¥‚मिका का खणडन करते ह ‘ऋगादिà¤à¤¾à¤·à¤¯à¤à¥‚मिकेनद’ नामक क गरनथ कई खणडों में लिखा था। इसके क अंश का उततर सवामीजी ने उकत गरनथ लिखकर दिया जो सरसवती यंतरालय, इटावा से 1950 वि. (1893) में परकाशित हआ।
à¤à¤¾à¤¸à¤•रपरकाश-सनातनधरमी विदवान पं. जवालापरसाद मिशर ने सतयारथपरकाश के खणडन में दयाननदतिमिर à¤à¤¾à¤¸à¤•र गरनथ लिखा, जिसे बमबई के परसिदध परकाशक कषेमराज शरीकृषणदास ने 1951 वि. में परकाशित किया थ। पं. तलसीराम ने मिशरजी के इस गरनथ का सपरमाण खणडन ‘à¤à¤¾à¤¸à¤•रपरकाश’ लिखकर किया। इसका परथम à¤à¤¾à¤— सतयारथपरकाश के परथम तीन समललासों के मणडन रूप में परणीत सवामी बरहमाननद दवारा समपादित ‘‘à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥‹à¤¦à¤§à¤¾à¤°à¤•’ मासिक पतर में धारावाही छपना परारमठहआ। कालानतर में 1897 में यह गरनथ परथम बार पसतकाकार छपा। पनः समपूरण गरनथ इसी वरष (1897) सवामी परेस, मेरठसे परकाशित हआ। इस गरनथ की लोकपरियता इसके अनेक संसकरणों (दवितीय संसकरण 1904, तृतीय संसकरण 1913) से विदित होती है।
दिवाकरपरकाश-à¤à¤¾à¤¸à¤•रपरकाश के परथम तीन अधयायों के खणडन में पं. जवालापरसाद मिशर के अनज पं. बलदेवपरसाद मिशर ने ‘धरमदिवाकर’ नामक गरनथ की रचना की।