Swami Abhay Dev

Father :
Pandit Ram Prasad

गरकल कांगड़ी के ऋषिकोटि के आचारय ‘अà¤à¤¯’ अपने सादे रहन-सहन, अपरिगरह तयाग, तप, आधयातमिक जीवन और गमà¤à¥€à¤° जञान से पराचीन काल के ऋषि परतीत होते थे। वे अनेक रूपों में हमारे सामने आते हैं। कà¤à¥€ हम उनहें छोटी आय में ही योग के लिये कानतवास करते देखते हैं, कà¤à¥€ साबरमती आरम के साधक और गांधी जी के विशवसत परामरशदाता के रूप में पाते है, कà¤à¥€ सतयागरह आनदोलन में सकरिय à¤à¤¾à¤— लेते और जल जाते देखते हैं, कà¤à¥€ गरकल के आचारय के रूप में विशाल जन समूह के समकष नव-सनातकों को दीकषानत का मारमिक उपदेश करते पाते हैं, कà¤à¥€ आरयसमाज की वेदी से आरयजनता के सममख वैदिक-साहितय के मरमजञ लेखक के रूप में हमारे सामने आते है, कà¤à¥€ शरी अरविनद के योगमारग के पथिक के रूप में अनेक दरशन होते है।
वे छातरों के विकास में रचि रखते थे परà¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤£ देते थे। वरताà¤à¤¯à¤¾à¤¸ करते थे। गरनथ लेखन वं संपादन करते थे। सनातकों के हित चिंतक थे। अपने कारय सवयं करते वं करने की सीख देते थे। सवदेशी विचारक थे।
आपके दवारा लिखी पसतक ‘वैदिक-विनय’ à¤à¤•ति की निररिणी बहा देती है। इस पसतक ने करोड़ों लोगों के हृदय को आसतिकता के महासागर में अवगाहन कराया है। बरहमचरयसूकत की वयाखया à¤à¥€ आपने लिखी है।