Swami Brahmamuni Parivrajak

Father :
Shree Raja Ram

सतयारथपरकाश के अधययन ने इनहें आरयसमाज के सिदधांतों की ओर आकरषित किया। फलतः संसकृत पढ़ने की रचि उतपनन हई। अषटाधयायी परणाली से संसकृत का अधययन करने के लिये ये सवामी पूरणाननद के निकट रहे। वहां पं. बरहमदतत जिजञास इसके सहपाठी थे। कालानतर में काशी रहकर पं. देवनारायण तिवारी से महाà¤à¤¾à¤·à¤¯ का अधययन किया और अनय विदवानों से विविध शासतर पढ़े। कछ काल तक काशी विदयापीठमें अधयापन à¤à¥€ किया। परथम ये पं. परियरतन आरष नाम से जाने गये, ततपशचात 2001 वि. में सवामी वेदाननद तीरथ से संनयास की दीकषा गरहण की और बरहममनि कहलाये। 16 दिसमबर 1977 को सवामीजी का निधन हआ। गरकल विशवविदयालय कांगड़ी ने उनकी विदवता का सममान करते ह 1958 में उनहें विदयामारतणड की उपाधि से सममानित किया था।
ले. का.-वेदà¤à¤¾à¤·à¤¯ वयाखया-ऋगवेदà¤à¤¾à¤·à¤¯ (मं. 7 सू. 61 मंतर 3 से सूकत 68 परयनत) 1972, ऋगवेद दशम मणडल का à¤à¤¾à¤·à¤¯-दो खणड (2031 वि. तथा 2045 वि.), यजरवेदानवयारथ (दस अधयायों के मंतरों का पदारथ और अनवय, 1968), सामवेद à¤à¤¾à¤·à¤¯ (पूरवारचिक) मनिà¤à¤¾à¤·à¤¯ (2026 वि.), अथरववेद मनिà¤à¤¾à¤·à¤¯ (परथम तीन काणड 1974), वेदाधययन परवेशिका।
वेदारथ और वैदिक विवेचन-वैदिक ईशवंदना (1950), मितरावरण की शिकषा (ऋ. मं. 7 सूकत 61, 62) (1935), वैदिक सूरयविजञान (1994 वि.), सामसधा (1963), यमपितृ परिचय-(वेदानतरगत यम वं पितर विषयक मंतरों का विवेचन, (1990 वि.), बरहमवेद का रहसय (1940), विशवविजञान और परमातमबोध-(मनसा परिकरमा के मंतरों की वयाखया) (1941), वैदिक बरहमचरय विजञान (1964), वैदिकवंदन (1958), वेद में ‘असित’ शबद पर क दृषटि (1933), वेद में वेदृकामा या देवकामा (1999 वि.), अथरववेदीय चिकितसा-शासतर, अथरववेदीय मंतर विदया, मंतरों के ऋषि (1974), अथरववेदीय-अतिथि-सतकार और मांस शबद (1962), बरहमपारायण यजञ की शासतरीयता (1966), वैदिक जयोतिष शासतर, वेद में इतिहास नही, सोम सरोवर का सनान, वैदिक मनोविजञान, वेद में दो बड़ी वैजञानिक शाकतियों, यमयमी संवाद सूकत, वैदिक अधयातमसधा, वैदिक योगामृत, वेदाधयययन परवेशिका, वेद के क संदिगध परकरण का विवेचन।
उपनिषद साहितय-ईशोपनिषत का सवरूप (1923), माणडूकयोपनिषद का सवरूप, उपनिषद सधासार, वृहदारणयकोपनिषद कथामाला, छानदोगयोपनिषद कथामाला, उपनिषदों का वेदानत।
सवामी दयाननद विषयक-दयाननद दिगदरशन। करम काणड विषयक गरनथ-बरहमपारायण यजञ की शासतरीयता वं वैदिकता का विवेचन। आरष इतिहास विषयक गरनथ-रामायण दरपण, 1947 महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ शिकषा सधा।
वेदांग विषयक गरनथ-याजञवलकय शिकषा (1967), अवययारथ निबनधनम (1967), निरकत सममरश: (निरकत की संसकृत टीका)।
दरशन विषयक गरनथ-सांखयदरशन संसकृत à¤à¤¾à¤·à¤¯ (1955), नयायदरशन वातसयायन à¤à¤¾à¤·à¤¯ (आंशिक) (1968), वैशेषिक-दरशन संसकृत à¤à¤¾à¤·à¤¯ (1962), वेदानतदरशन संसकृत à¤à¤¾à¤·à¤¯ (1954).
सफट गरनथ-विमान शासतर, आरष योग परदीपिका (1943), बृहदविमान शासतर (1959), योगमारग, वैदिक राषटरीयता (1944), बालजीवन सोपान (1962), यगधरम, राजनीति और विशवशांति (2033 वि.)। जीवनपथ करियातमक मनोविजञान, मानवीय शाकतियों का परिचय और उनका विकास, à¤à¤°à¤®à¤¨à¤¿à¤µà¤¾à¤°à¤£ (बरहमचारी कृषणदतत के पाखणड का खणडन) सवामी बरहममनि के संनयास पूरव के गरनथ परिय गरनथमाला तथा पशचात के गरनथ बरहममनि गरनथमाला के अनतरगत छपे। उनके कछ गरनथों को सारवदेशिक आरय परतिनिधि सà¤à¤¾ तथा आरय साहितय मणडल अजमेर ने à¤à¥€ परकाशित किया। उनके समसत गरंथों की संखया 77 बताई गई है।
वि. अ.-निज जीवनवृततवनिका (आतमकथा) 1961.