12 मारच 1993 रोजाना की तरह ही भारत की आरथिक राजधानी कहे जाने वाला ममबई शहर अपनी दनिया में वयसत था। लोग अपने कामकाज में लगे थे मां अपने बचचो को लिये खाना बना रही थी बेंको में बाबूओ को गराहक जलदी-जलदी कहकर काम निपटवाने में लगे थे कभी फिर मधयाहन भोजन का अवकाश  à¤¹à¥‹ जाये होटलो से लेकर रेलवे सटेशन तक हर क जगह जीवन अपनी दनिया में मसत था  à¤ªà¤° अचानक ये हंसता-खेलता  à¤¶à¤¹à¤° चीख-पकार में बदल गया चारों तरफ बम धमाकों से ममबई दहल  उठी लोग सम नहीं पा रहे थे कि अपनों की लाशे उठायें या खद को बचायें बेंको से रेलवें सटेशन तक सकूल बस, सटेनड़ हर जगह धमाकों के साथ इंसानों की चीखें सनाई दे रही थी। लगभग दो घंटे के अंतराल में करीब तेरह जगह बम धमाके ह जिनमें करीब 265लोग मौत की नींद सो गये 800लोगों के करीब लोग घायल ह और 27 करोड़ के करीब समपतति का नकसान हआ ये सब सरकारी आंकडे थे  यदि लोगों की बातो पर विसवास किया जाये तो मृतकों और घायलो की संखया इस से कहीं अधिक थी। पलिस जांच शरू हई और क समपरदाय विषेश के लोगों के साथ कछ अपने भी शरीक पाये गये जिनहें ये नहीं  पता था कि आखिर माजरा कया है! गिरफतार अभियकतो ने जो बताया वो समची मानवता के कान खोलने वाला था कि हमने बाबरी मसजिद विधवंष का बदला लिया है। चलो मान लिया कछ लोगों ने    पतथर के कछ टकडें गिरा दिये पर तमने तो इंसानियत को ही रोंद दिया तम तो धरम के अंधे होकर  समूची मानव जाति की नजरों मे ही गिर गये! आखिर उन पतथरो के टकडों का बदला इन मांओ की ममता से कयों ? तमहें तनिक भी दया नहीं आई, और आज तम कानून से दया की भीख पर मांग  रहे हो किस आधार पर ?यदि तम दया की भीख अपने परिवार का नाम लेकर मांग रहे हो तो ये भी सोचना कि वो तकरीबन 1000 घायल मृतक भी किसी ना किसी परिवार का हिससा होगें। और देश  à¤•à¥€ शांति सदभावना को भंग करने वाले अपनी मजहबी मानसिकता के पोशण के लिये निदरोश लोगों को मौत नींद सलाने वाले अपराधियो आतंकवादियो  पर दया भाव कैसा ?अकसर इन मामलों में भारतीय मिडि़या   और मानवाधिकार  आयोग को मानवता याद आ जाती है जिस कारण इस बार खद सपरीम कोरट ने   सखत रख अपनाते हये   कहा- कि शहीदों के परिवारो की किसी मानवाधिकार आयोग को कोई चिनता नहीं शीरष  à¤…दालत ने ये  भी सवाल उठाया कि आखिर मानवाधिकार आयोग उन लोगों के परति संवेदनशील  à¤•à¤¯à¥‚ं नही होता जो भूख से दम तोडते है कया मानवाधिकार आयोग के पास आतमहतया करने वाले किसानों शहीद होने वाले      जवानो के परिवारो के लिये समय नहीं है!! कया मानवाधिकार आयोग सिरफ अपराधियो का                 पेरोकार बनकर रह गया? याकूब मेनन को विशेष टाडा अदालत ने 2007 में फांसी की सजा सनायी    थी सजा के खिलाफ याकूब की अपील हाईकोरट सपरीम कोरट में खारिज हई पिछले साल  राषटरपति परणव मखरजी भी याकूब की दया याचिका खरिज कर चूके है नौ अपरैल को याकूब की पनरविचार याचिका खरिज होने के बाद महाराषटर सरकार ने टाडा कोरट की इजाजत लेकर याकूब की फांसी पर काम करना शरू कर दिया। बात क याकब की नहीं निठारी कांड के आरोपी सरेनदर कोली समेत ना जाने कितने  à¤¦à¤°à¤¿à¤‚दे दया याचिका लेकर बैठे है। आज इनहें मानवाधिकार आयोग के साथ मिलकर दया चाहिये किनत    निदरोश लोग और शहीद ह जवानों के परिवारो के भी मानव अधिकार को ये कयू भूल जाते है ।   

ALL COMMENTS (0)