वैदिक धरम व संसकृति के परेमी, समाज सधारक, विशव-परसिदध संसथा गरकल कांगड़ी के संसथापक और शिकषा शासतरी, सवतनतरता संगराम के अगरणीय नेता, हिनदओं के रकषक, शदधि आनदोलन के परणेता और शीरष नेता, धरमोपदेशक, साहितयकार सवामी शरदधाननद जी का आज नबबेवां बलिदान दिवस है। 26 दिसमबर, 1926 को 71 वरष की आय में आज के ही दिन क षड़यनतर के अनतरगत क विधरमी ने उनहें रणावसथा में धोखे से गोली मार कर शहीद कर दिया था। सवामीजी का जीवन पराचीन शासतरीय गरकल शिकषा पदधति के पनरदवार सहित ईशवर परदतत वेद दवारा परचलित जञान व विजञान पूरण मानयताओं वं सिदधानतों से यकत सतय वैदिक धरम के परचार व परसार वं हिनद जाति के संगठन व सधार के कारयों के लि समरपित था। आज उनके बलिदान दिवस पर उनको शरदधाजंलि परसतत करते ह हम उनके समय की देश की परखयात हसतियों दवारा उनको दी गई शरदधाजंलियों के माधयम से उनके वयकतितव व कृतितव को जानने व जनाने का परयास कर रहे हैं।

संयकत परानत (वरतमान का उततर परदेश) के छोटे लाट सर जेमस मेसटन ने गरकल वृनदावन में संवत 1923 में दिये अपने भाषण में उनके विषय में कहा था कि ‘मैंने शीघर ही आपकी मखय और परानी गरकल कांगड़ी और उसी समय आपके नेताओं और मितरों में से बहतों से परिचय लाभ किया। इसी समय महातमा मंशीराम जी से मेरा परिचय हआ। मे विशवास है कि उनका विनय मेरे लिये परबल हेत है कि उकत नामी सजजन के विषय में जो सममति मैंने सथिर की है, उसे मैं परकट करूं। पर उनके भावों का सतकार करते ह निःसंकोच इतना अवशय कहूंगा कि क मिनिट भी उनके साथ रहते ह उनके भावों की सतयता और उनके उददेशयों कि उचचता को अनभव न करना असमभव है। दरभागयवश हम सब मंशी नहीं हो सकते।

मौलाना महममद अली ने उनके विषय में लिखा है कि उनका (सवामीजी का) मखय कारय उनके धरम-संगठन के समबनध में था और उस बारे में शंका नहीं की जा सकती। फिर भी इतना तो सही है ही कि वे जिसे अपना धरम मानते थे, उसके लिये काम करने में उनहोंने उललेखनीय लगन दिखायी थी। उनकी हिममत के बारे में शंका ही नहीं थी। साहस और शौरय के वे मिशरण थे। गोरखों की संगीनों के सामने अपनी छाती खोल देने वाले उस बहादर देश परेमी का चितर अपनी नजर के सामने रखना मे बहत अचछा लगता है। सी उमदा मौत के मिलन से उनहें तो कछ नहीं लगता, मगर हमारे लिये यह महान दःखदायक घटना है।

पं. मदन मोहन मालवीय हिनदू धरम के परसिदध नेता थे। बनारस हिनदू विशवविदयालय की सथापना सहित देश की आजादी में उनका उललेखनीय योगदान था। उनहोंने सवामी शरदधाननद जी के परति अपने भावों को परकट करते ह लिखा है कि ‘हमारे परम देशभकत और हिनदू जाति के परम सेवक शरदधाननद जी का देहानत क पतित परष के हाथ से हआ है। सवामी जी इस देश के क चमकते तारे थे। इनका देश-परेम 40 वरष से सरकार को विदित है। पहले तो वे वकालत करते थे। 20 वरष पहले इनहोंने गरकल कांगड़ी सथापित किया और उस संसथा को अपना सरवसव अरपण कर दिया। इनकी देश-भकति कैसी थी, इसका समरण कराने की जरूरत नहीं। आपको पता ही होगा कि दिलली में छाती खोलकर के बनदूकों के सामने खड़े रहे थे। हिनदू महासभा के काम में वे बड़ा भाग लेने वाले थे। शदधि के तो वे आचारय ही थे। हजारों मलकानों को उनहोंने हिनदू बनाया था। सवामी जी को शदधि और संगठन की चिनता थी। 71 वरष की उमर के से सवामी को कोई मार डाले, यह लजजा और शोक की बात है।

सवामीजी के लि तो यह बड़ी बात थी, कयोंकि उनकी सी मृतय हिनदू धरम के मृत शरीर में नया पराण-मनतर फूंकने जैसा है। ....इस परकार दिलली में हमारे क परधान नेता ने धरम की खातिर अपने पराण दिये हैं। सवामी शरदधाननद भी से ही दूसरे शहीद ह हैं। ये किसी धरम के साथ वैर नहीं रखते थे। हिनदओं की सेवा करते थे। इससे हमें कया सीखना है? जैसे तेगबहादर की मृतय से हिनदू-जाति में जागृति आयी थी और औरंगजेब का जोर टूटा था, वैसे ही हमें यह चीज सीखनी है कि हिनदू-जाति का परतयेक मनषय शदधि और संगठन के काम में लग जाये।

सवामी जी का दूसरा उपदेश यह है कि से काम में किसी भी परकार का डर न रखा जाये। उनहोंने शदधि के काम में डर नहीं रखा। इतना ही नहीं, परनत जरा भी अनयाय नहीं किया। वे कहते थे कि मसलमान को हिनदू बनाने का परतयेक हिनदू को अधिकार है। मैं तो कहता हूं कि यह तबलीग (धरम परिवरतन या भरषट करने का आनदोलन) सरवथा बनद हो जाये। ईसाई भी यह काम बनद कर दें। मगर जब हजारों मसलमान और ईसाई हिनदओं को धरम-भरषट करने को बैठे हैं, तब कोई हमें यह नहीं कह सकता कि हिनदओं की शदधि नहीं करनी चाहिये। अलबतता सा करने में हम किसी के परति अनयाय न करें, यह बात सवामी जी हमेशा करते थे और यह भी कहते थे कि यह आनदोलन राषटरीय कता का विरोधी नहीं होना चाहिये। घोर पाप होता हो तो भी हिनदू अपने धरम में दृढ़ रहे और बदला लेने का पाप न करें। भविषय में किसी दिन हिनदू-संतान की निनदा हो, सा नहीं होना चाहिये। सवामी जी के शोकयकत अवसान का समारक किस ढंग से बनाये? क दिन नियत किया जाये, जब सभी मिलें और उनके नाम से क कोष बनाया जाये। उनके जाने से उनके साथ का हमारा समबनध टूट नहीं गया। वे अभी जिनदा हैं।

सपरसिदध राषटरीय कवि शरी रवीनदरनाथ टैगोर ने सवामी शरदधाननद जी का समरण करते ह कहा है कि हमारे देश में जो सतय-वरत को गरहण करने के अधिकारी हैं वं इस वरत के लिये पराण देकर जो पालन करने की शकति रखते हैं, उनकी संखया बहत ही कम होने के कारण हमारे देश की इतनी दरगति है। सी अवसथा जहां है, वहां सवामी शरदधाननद जैसे इतने बड़े वीर की इस परकार मृतय से कितनी हानि हई होगी, इसका वरणन करने की आवशयकता नहीं है। परनत इनके मधय क बात अवशय है कि उनकी मृतय कितनी ही शोचनीय हई हो, किनत इस मृतय ने उनके पराण वं चरितर को उतना ही महान बना दिया है।

देश के सरवोतम वं महान नेता, भारत के परथम गृहमनतरी और उपपरधानमंतरी सरदार बललभभाई पटेल ने सवामी शरदधाननद जी का समरण करते ह लिखा है कि सवामी शरदधाननद जी की याद आते ही 1919 का दृशय मेरी आंखों के सामने खड़ा हो जाता है। सरकारी सिपाही फायर करने की तैयारी में है। सवामी जी छाती खोल कर सामने जाते हैं और कहते हैं, लो, चलाओ गोलियां। उनकी उस वीरता पर कौन मगध नहीं हो जाता? मैं चाहता हूं कि उस वीर संनयासी का समरण हमारे अनदर सदैव वीरता और बलिदान के भावों को भरता रहे।

उपनयास समराट मनशी परेमचनद ने उनको समरण कर लिखा है कि यों तो सवामी जी पराचीन आरय आदरशों के पूरण रूप में परवरतक थे, पर मेरे विचार में राषटरीय शिकषा के पनरतथान में उनहोंने जो काम किया है उसकी कोई नजीर नहीं मिलती। से यग में जब अनय बाजारी चीजों की तरह विदया बिकती है, यह सवामी शरदधाननद जी का ही

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